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गिरिडीह में समाज के लिए मिसाल बने हैं दिव्यांग, आत्मनिर्भर बनकर परिवार का कर रहे भरण पोषण

दिव्यांगों के प्रति लोगों की सोच गलत हैं. लेकिन गिरिडीह जिले के बगोदर प्रखंड के कई दिव्यांगों ने अपनी दिव्यांगता को मात लेकर समाज में मिसाल पेश किया है. दिव्यांगों ने वह काम किया हैं, जो सामान्य व्यक्ति भी नहीं कर सकते हैं. विश्व दिव्यांग दिवस (World disabled day) पर ईटीवी भारत की टीम ने समाज के लिए मिसाल बनने वाले दिव्यांगों से विशेष बातचीत की है.

Divyang has become an example for society
गिरिडीह में समाज के लिए मिसाल बने हैं दिव्यांग
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Published : Dec 3, 2022, 4:14 PM IST

Updated : Dec 3, 2022, 6:49 PM IST

गिरिडीहः दिव्यांग शब्द सुनते ही लोगों के मन में जो तस्वीर बनती है, वह लाचार व्यक्ति की बनती है. लेकिन बगोदर के कुछ दिव्यांगों ने लोगों की सोच बदल दी है और समाज में मिसाल पेश (Divyang has become an example for society) किया है. इन दिव्यांगों में संतोष कुमार, महेश महतो, शाबीर अंसारी, तालेश्वर महतो आदि शामिल हैं. ये दिव्यांग परिवार और समाज के लिए कभी बोझ नहीं बना है. सभी आत्मनिर्भर है और परिवार का भरण पोषण भी कर रहे हैं.

यह भी पढ़ेंः विश्व दिव्यांग दिवस विशेष : ये भी किसी से कम नहीं, आत्मनिर्भर बनने के लिए थोड़े से सहयोग की अपेक्षा

बगोदर प्रखंड के खटैया गांव के रहने वाले संतोष कुमार बीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिव्यांग बच्चों की सेवा में जुटे हैं. ये शारीरीक रूप से कमजोर जरूर हैं. लेकिन इनके हौसले बुलंद और दिव्यांग बच्चों के हौसला बढ़ा रहे हैं. इनकी खासियत यह है कि दूसरों से सहयोग राशि लेकर दिव्यांग बच्चों की मदद करते हैं. संतोष अच्छे से नहीं चल सकते हैं और नहीं बोल पाते हैं. इसके बावजूद दिव्यांगों की सेवा कर रहे हैं. सहयोग राशि से त्योहार के समय दिव्यांग बच्चों के बीच मिठाई और कपड़ों का वितरण करते हैं. इसके साथ ही ठंड के मौसम में दिव्यांग बच्चों के बीच गर्म कपड़ों का वितरण करते हैं.

देखें पूरी खबर

घाघरा गांव के रहने वाले दिव्यांग महेश महतो की कहानी निराली है. महेश जमीन पर रेंगते हुए चलते हैं. इसके बावजूद पीजी की पढ़ाई पूरी की. फिलहाल घाघरा के भुईयांटोली स्थिति उत्क्रमित प्राथमिक विधालय के प्रधान शिक्षक हैं. हालांकि, अब इनके पास थ्री व्हीलर बाइक है और दूर- दराज बाइक की मदद से आते-जाते हैं. महेश कहते हैं कि कॉलेज की पढ़ाई के लिए डुमरी जाते थे, तब उन्हें बस में लटक कर सफर करना पड़ता था. उन्होंने कहा कि भुईयांटोली में शिक्षा का अलख जगाने के लिए पहले मैंने बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देना शुरू किया. इसके बाद पारा शिक्षक के रूप में मेरा चयन हुआ.दिव्यांग तालेश्वर महतो मोबाइल मेकेनिक हैं और इलेक्ट्रॉनिक दुकान चला रहे हैं. कुसमरजा गांव के रहने वाले तालेश्वर ग्रेजुएशन के बाद बीएलएड की पढ़ाई पूरी की. पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ दिनों तक प्राइवेट स्कूल में शिक्षक के रूप में बच्चों को पढ़ाया. इसके बाद व्यवसाय से जुड़ गए. उन्होंने कहा कि दिव्यांग होने के कारण जीवन में कठिनाईयां आती-जाती रही. लेकिन मैंने कभी हार नहीं माना. कुसमरजा गांव के रहने वाले शाबीर अंसारी पांव से दिव्यांग हैं. शाबीर ग्रेजुएशन के साथ साथ डिप्लोमा और आईटीआई की डिग्री हासिल की. इसके बाद गांव के ही प्राइवेट स्कूल सुभाष पब्लिक हाई स्कूल में प्रधानाध्यापक के पद पर कार्यरत हैं. उन्होंने कहा कि दिव्यांगता की वजह से पढ़ने और आगे बढ़ने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा है.

गिरिडीहः दिव्यांग शब्द सुनते ही लोगों के मन में जो तस्वीर बनती है, वह लाचार व्यक्ति की बनती है. लेकिन बगोदर के कुछ दिव्यांगों ने लोगों की सोच बदल दी है और समाज में मिसाल पेश (Divyang has become an example for society) किया है. इन दिव्यांगों में संतोष कुमार, महेश महतो, शाबीर अंसारी, तालेश्वर महतो आदि शामिल हैं. ये दिव्यांग परिवार और समाज के लिए कभी बोझ नहीं बना है. सभी आत्मनिर्भर है और परिवार का भरण पोषण भी कर रहे हैं.

यह भी पढ़ेंः विश्व दिव्यांग दिवस विशेष : ये भी किसी से कम नहीं, आत्मनिर्भर बनने के लिए थोड़े से सहयोग की अपेक्षा

बगोदर प्रखंड के खटैया गांव के रहने वाले संतोष कुमार बीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिव्यांग बच्चों की सेवा में जुटे हैं. ये शारीरीक रूप से कमजोर जरूर हैं. लेकिन इनके हौसले बुलंद और दिव्यांग बच्चों के हौसला बढ़ा रहे हैं. इनकी खासियत यह है कि दूसरों से सहयोग राशि लेकर दिव्यांग बच्चों की मदद करते हैं. संतोष अच्छे से नहीं चल सकते हैं और नहीं बोल पाते हैं. इसके बावजूद दिव्यांगों की सेवा कर रहे हैं. सहयोग राशि से त्योहार के समय दिव्यांग बच्चों के बीच मिठाई और कपड़ों का वितरण करते हैं. इसके साथ ही ठंड के मौसम में दिव्यांग बच्चों के बीच गर्म कपड़ों का वितरण करते हैं.

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घाघरा गांव के रहने वाले दिव्यांग महेश महतो की कहानी निराली है. महेश जमीन पर रेंगते हुए चलते हैं. इसके बावजूद पीजी की पढ़ाई पूरी की. फिलहाल घाघरा के भुईयांटोली स्थिति उत्क्रमित प्राथमिक विधालय के प्रधान शिक्षक हैं. हालांकि, अब इनके पास थ्री व्हीलर बाइक है और दूर- दराज बाइक की मदद से आते-जाते हैं. महेश कहते हैं कि कॉलेज की पढ़ाई के लिए डुमरी जाते थे, तब उन्हें बस में लटक कर सफर करना पड़ता था. उन्होंने कहा कि भुईयांटोली में शिक्षा का अलख जगाने के लिए पहले मैंने बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देना शुरू किया. इसके बाद पारा शिक्षक के रूप में मेरा चयन हुआ.दिव्यांग तालेश्वर महतो मोबाइल मेकेनिक हैं और इलेक्ट्रॉनिक दुकान चला रहे हैं. कुसमरजा गांव के रहने वाले तालेश्वर ग्रेजुएशन के बाद बीएलएड की पढ़ाई पूरी की. पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ दिनों तक प्राइवेट स्कूल में शिक्षक के रूप में बच्चों को पढ़ाया. इसके बाद व्यवसाय से जुड़ गए. उन्होंने कहा कि दिव्यांग होने के कारण जीवन में कठिनाईयां आती-जाती रही. लेकिन मैंने कभी हार नहीं माना. कुसमरजा गांव के रहने वाले शाबीर अंसारी पांव से दिव्यांग हैं. शाबीर ग्रेजुएशन के साथ साथ डिप्लोमा और आईटीआई की डिग्री हासिल की. इसके बाद गांव के ही प्राइवेट स्कूल सुभाष पब्लिक हाई स्कूल में प्रधानाध्यापक के पद पर कार्यरत हैं. उन्होंने कहा कि दिव्यांगता की वजह से पढ़ने और आगे बढ़ने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा है.

Last Updated : Dec 3, 2022, 6:49 PM IST
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