गिरिडीहः जिला में युवाओं ने लोगों को परंपरागत तरीके से तैयार किए गए भोज्य पदार्थ परोसने का काम शुरू किया गया. यह काम स्थानीय युवक व महिलाओं के सहयोग से शुरू किया गया है. यहां परंपरागत ढेकी से मसाला, दाल व चावल को कूटकर उसकी पैकेटिंग की जा रही है. यह सारा काम युवा बैजनाथ महतो छोटू की अगुवाई में हो रहा है. गिरिडीह में हरियर उलगुलान के तहत मसाला बनाने का का देसी अंदाज सबको भा रहा है.
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गिरिडीह के बैजनाथ महतो देसी तरीके से मसाले बना रहे हैं. पहले खुद से ही खेती कर फसल उगाया, बाद में इन फसलों को ढेकी से कूटकर उसकी पैकेटिंग कर बाजार में उतारने का काम शुरू कर दिया. परंपरागत तरीके से अनाज व मसाले की प्रोसेसिंग व पैकेटिंग करने का काम गिरिडीह के उग्रवाद प्रभावित डुमरी के भरखर में किया जा रहा है, वो भी संगठित महिला व पुरुष किसानों द्वारा. इन किसानों को एकजुट करने व रोजगार की नई राह दिखाने का काम बैजनाथ महतो उर्फ छोटू कर रहे हैं.
कोरोना काल में रोग प्रतिरोधक क्षमता घटी तो शुरू किया लोकल फॉर वोकलः बैजनाथ महतो छोटू प्रगतिशील किसान हैं. वर्षों से किसानी का काम करने व फसलों को बाजार तक पहुंचाने का काम करते रहे हैं. आजसू पार्टी के पुराने नेता व पार्टी सुप्रीमो के करीबी इस युवक ने कभी-भी खेती को छोटा नहीं समझा. बैजनाथ कहते हैं झारखंड में जगह जगह नाला, नदी, तालाब है और गांव के लोग खेती, मजदूरी करते रहते हैं. इस बीच कोरोना महामारी ने पैर पसारा और घर-घर तक यह बीमारी फैल गई, जिसमें कइयों की जान चली गई.
इस कोरोना ने एक सवाल खड़ा किया कि आखिर ग्रामीण परिवेश वाले लोगों का रोग प्रतिरोधक क्षमता कम कैसे हो गया. काफी मंथन करने के बाद एक बात समझ में आ गई कि मिलावटी मसाले, तेल व मशीनरी के उपयोग के कारण लोगों के अंदर रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो गई है. इस बीच कोरोन काल के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी का भाषण आया, जिसमें उन्होंने लोकल फॉर वोकल की बात कही. इसके बाद उन्होंने निर्णय लिया कि फसलों को उत्पादित करने के बाद उसे ढेकी में कूटकर आम लोगों तक पहुंचाएंगे.
हरियर उलगुलान की शुरुआतः छोटू ने बताया कि चूंकि वो पहले से ही खेती के प्रति लोगों को जागरूक करने का काम करते रहे हैं. ऐसे में हरियर उलगुलान ट्रस्ट बनाया गया. इस ट्रस्ट से 400 युवा और महिला किसानों को जोड़ा गया, सभी ने मिलकर खेती की. इस बार सिर्फ हल्दी का 10 टन बीज लगाया गया. बंपर पैदावार हुआ तो सवाल सामने आया कि अगर इस फसल को बाजार में बेंचेंगे तो बहुत मामूली मुनाफा होगा. लेकिन उन्होंने हल्दी का पावडर ढेकी के माध्यम से बनाने का निर्णय लिया. इसी तरह विलुप्त हो चुकी गुणवर्धक कोदो की भी खेती की गई. ब्राउन राइस, ब्लैक राइस की भी खेती की गई.
एक साथ चलती है पांच ढेकीः बैजनाथ ने बताया कि भरखर गांव में ढेकी घर बनाया गया है. यहां एक मोटर की सहायता से एक साथ पांच ढेकी चलता है. यहां अलग से पैर से चलने वाला ढेकी भी है. वो बताते हैं कि यहां ढेकी से कुटाई के साथ साथ पैकेटिंग करने की व्यवस्था है. साथ ही मसालों को कुटाई से पहले रोस्ट करने की भी व्यवस्था है. बैजनाथ बताते हैं कि उनके ट्रस्ट की योजना सालों भर खेती करना, ढेकी के माध्यम से गुणवर्धक खाद्य पदार्थ उपलब्ध करवाना है. इससे स्वरोजगार भी बढेगा और जंगल भी बचेगा, जानवरों को चारा भी अच्छी तरह से मिलेगा.
महिला के साथ युवा भी खुशः इस हरियर उलगुलान ट्रस्ट से जुड़ी महिला व युवा भी काफी उत्साहित हैं. महिलाओं का कहना है कि उन्हें रोजगार मिला है. यही बात युवा भी कहते हैं. यहां से जुड़े युवाओं का कहना है खेती, किसानी व अनाज के प्रोसेसिंग से जहां परंपरागत भोजन मिलेगा वहीं रोजगार भी मिल रहा है. ढेकी से कूटकर बनाए गए भोजन का सेवन भी स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी उत्तम होता है.