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ई-नाम से खिल उठे किसानों के मुरझाए चेहरे, उत्पादों का मिलने लगा उचित मूल्य

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Published : May 3, 2020, 2:46 PM IST

गढ़वा के किसानों के लिए बाजार समिति के सचिव राहुल कुमार ने किसानों को प्रेरित कर ई-नाम से जोड़ा और उन्हें हर मोड़ पर सहयोग प्रदान किया. बता दें कि ई-नाम से जुड़ने के बाद किसानों के चेहरे खिल उठे है और उत्पादों का उचित मूल्य मिलने लगा है.

Farmers connected with e-Naam app in Garhwa
बाजार समिति के सचिव के साथ किसान

गढ़वा: राष्ट्रीय कृषि बाजार यानी ई-नाम से गढ़वा के किसानों के मुझाये चेहरे खिलने लगे हैं. अब उनके उत्पादों की उच्ची बोली लग रही है और उच्चतम मूल्य पर ऑनलाइन बिक्री भी होने लगी है. इसी तरह गढ़वा के मंडी में भी झारखंड के विभिन्न जिलों से सब्जी और फल खरीदे जा रहे हैं. किसानों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य दिलाने के साथ-साथ बिचौलियावाद से निजात दिलाने का यह प्रमुख कार्य कर दिखाया है. गढ़वा बाजार समिति के सचिव राहुल कुमार ने किसानों को प्रेरित कर ई-नाम से जोड़ा और उन्हें हर मोड़ पर सहयोग प्रदान किया.

देखें पूरी खबर

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में राष्ट्रीय कृषि बाजार की शुरुआत की थी. जिसे ई-नाम का नाम दिया गया है. जिससे किसानों को निबंधित करना है. इसका एक पोर्टल जारी किया गया. जिसमें कृषि उत्पादों के नाम और मूल्य भी अंकित होते हैं. जिसके माध्यम से देश के किसी कोने से कृषि उत्पादों को खरीदा या बेचा जा सकता है लेकिन किसानों का इस ओर झुकाव संतोषजनक नहीं रहा.

लॉकडाउन में जब फिजिकल मार्केट प्रभावित होने लगे तब किसानों को ई-नाम का महत्व समझ में आया. इस क्षेत्र में सक्रियता दिखाकर ई-नाम के तहत अंतरराज्यीय व्यापार करने वाला झारखंड का गढ़वा पहला जिला बनने का गौरव हासिल किया. गढ़वा का झारखंड के अलावे छतीसगढ़ और उत्तर प्रदेश से ऑनलाइन कारोबार हो रहा है.

किसानों को ई-नाम से जुड़ने के लिय प्रेरित

देश में लॉकडाउन लगने के बाद किसानों का उत्पाद खेतों में ही खराब होने लगा. बाजार समिति गढ़वा से भी किसानों को तीतर-बितर कर दिया गया तब बाजार समिति के सचिव ने किसानों को ई-नाम से जुड़ने के लिय प्रेरित किया. किम कर्तव्य विमूढ़ बने किसानों को सचिव की बात समझ में आ गयी. वे ई-नाम से रजिस्टर्ड होने लगे और ऑनलाइन बिजनेश का राह अपनाने लगे.

ई-नाम से जुड़े किसान

ई-नाम से जुड़े किसानों ने जब ऑनलाइन व्यापार शुरू की तो उनके उत्पाद अपेक्षा से भी ज्यादा मूल्य पर बिकने लगे. बिचौलिया को देने वाले खर्च भी बच गए और सबसे बड़ी बात यह कि सीधे किसानों के खाते में पैसे आने लगे. इसका लाभ देखकर कई छोटे-छोटे किसान भी कृषक उत्पादक समूह बनाकर ई-नाम से जुड़ने लगे.

लॉकडाउन के कारण यूपी के कानपुर और छतीसगढ़ से आने तरबूज सहित कई फल सब्जियां बंद हो गए. जिससे गढ़वा के फल व्यवसायियों की समस्या बढ़ गयी, उनका व्यापार ठप होने लगा तब सचिव ने झारखंड में उत्पादित तरबूज खरीदने की व्यवस्था बनायी. व्यापारियों को हजारीबाग, खूंटी, लोहरदगा जिले से लाइनअप कराया गया.

ये भी देखें- कोरोना वायरस का झारखंड पर आर्थिक प्रभाव, जानिए अर्थशास्त्री हरिश्वर दयाल की जुबानी

ई-नाम के तहत शुरू किया कारोबार

हजारीबाग से गढ़वा के व्यापारियों ने तरबूज का कारोबार ई-नाम के तहत शुरू किया और इसका सुखद परिणाम भी उन्हें मिला. ई-नाम से किसानों और व्यापारियों को जोड़ने का सिलसिला यहीं नहीं रुका बल्कि किसानों के गांव और खेतों तक जा पहुंचा. बाजार समिति के सचिव राहुल कुमार जिले के ओखड़गाड़ा, बिकताम, बसड़िया, दलेली आदि गांव में जाकर किसानों को समझाया.

गढ़वा: राष्ट्रीय कृषि बाजार यानी ई-नाम से गढ़वा के किसानों के मुझाये चेहरे खिलने लगे हैं. अब उनके उत्पादों की उच्ची बोली लग रही है और उच्चतम मूल्य पर ऑनलाइन बिक्री भी होने लगी है. इसी तरह गढ़वा के मंडी में भी झारखंड के विभिन्न जिलों से सब्जी और फल खरीदे जा रहे हैं. किसानों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य दिलाने के साथ-साथ बिचौलियावाद से निजात दिलाने का यह प्रमुख कार्य कर दिखाया है. गढ़वा बाजार समिति के सचिव राहुल कुमार ने किसानों को प्रेरित कर ई-नाम से जोड़ा और उन्हें हर मोड़ पर सहयोग प्रदान किया.

देखें पूरी खबर

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में राष्ट्रीय कृषि बाजार की शुरुआत की थी. जिसे ई-नाम का नाम दिया गया है. जिससे किसानों को निबंधित करना है. इसका एक पोर्टल जारी किया गया. जिसमें कृषि उत्पादों के नाम और मूल्य भी अंकित होते हैं. जिसके माध्यम से देश के किसी कोने से कृषि उत्पादों को खरीदा या बेचा जा सकता है लेकिन किसानों का इस ओर झुकाव संतोषजनक नहीं रहा.

लॉकडाउन में जब फिजिकल मार्केट प्रभावित होने लगे तब किसानों को ई-नाम का महत्व समझ में आया. इस क्षेत्र में सक्रियता दिखाकर ई-नाम के तहत अंतरराज्यीय व्यापार करने वाला झारखंड का गढ़वा पहला जिला बनने का गौरव हासिल किया. गढ़वा का झारखंड के अलावे छतीसगढ़ और उत्तर प्रदेश से ऑनलाइन कारोबार हो रहा है.

किसानों को ई-नाम से जुड़ने के लिय प्रेरित

देश में लॉकडाउन लगने के बाद किसानों का उत्पाद खेतों में ही खराब होने लगा. बाजार समिति गढ़वा से भी किसानों को तीतर-बितर कर दिया गया तब बाजार समिति के सचिव ने किसानों को ई-नाम से जुड़ने के लिय प्रेरित किया. किम कर्तव्य विमूढ़ बने किसानों को सचिव की बात समझ में आ गयी. वे ई-नाम से रजिस्टर्ड होने लगे और ऑनलाइन बिजनेश का राह अपनाने लगे.

ई-नाम से जुड़े किसान

ई-नाम से जुड़े किसानों ने जब ऑनलाइन व्यापार शुरू की तो उनके उत्पाद अपेक्षा से भी ज्यादा मूल्य पर बिकने लगे. बिचौलिया को देने वाले खर्च भी बच गए और सबसे बड़ी बात यह कि सीधे किसानों के खाते में पैसे आने लगे. इसका लाभ देखकर कई छोटे-छोटे किसान भी कृषक उत्पादक समूह बनाकर ई-नाम से जुड़ने लगे.

लॉकडाउन के कारण यूपी के कानपुर और छतीसगढ़ से आने तरबूज सहित कई फल सब्जियां बंद हो गए. जिससे गढ़वा के फल व्यवसायियों की समस्या बढ़ गयी, उनका व्यापार ठप होने लगा तब सचिव ने झारखंड में उत्पादित तरबूज खरीदने की व्यवस्था बनायी. व्यापारियों को हजारीबाग, खूंटी, लोहरदगा जिले से लाइनअप कराया गया.

ये भी देखें- कोरोना वायरस का झारखंड पर आर्थिक प्रभाव, जानिए अर्थशास्त्री हरिश्वर दयाल की जुबानी

ई-नाम के तहत शुरू किया कारोबार

हजारीबाग से गढ़वा के व्यापारियों ने तरबूज का कारोबार ई-नाम के तहत शुरू किया और इसका सुखद परिणाम भी उन्हें मिला. ई-नाम से किसानों और व्यापारियों को जोड़ने का सिलसिला यहीं नहीं रुका बल्कि किसानों के गांव और खेतों तक जा पहुंचा. बाजार समिति के सचिव राहुल कुमार जिले के ओखड़गाड़ा, बिकताम, बसड़िया, दलेली आदि गांव में जाकर किसानों को समझाया.

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