जमशेदपुरः शहर के बिष्टुपुर स्थित वीमेंस कॉलेज में हिंदी विभाग ने 14 सितंबर को हिंदी दिवस पर राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया. 21वीं सदी में हिंदी भाषा, साहित्य और संस्कृति का परिप्रेक्ष्य विषय पर केंद्रित इस वेब संगोष्ठी में बनारस, दिल्ली, कोलकाता सहित रांची और जमशेदपुर के वक्ताओं ने ऑनलाइन हिस्सा लिया. गूगल मीट पर सोमवार सुबह दस बजे से आयोजित कार्यक्रम में प्रधान संरक्षक सह मुख्य आयोजक और वीमेंस कॉलेज की प्राचार्य डॉ. शुक्ला महांती ने स्वागत और उद्घाटन वक्तव्य दिया.
हिंदी में एक लचीलापन
प्राचार्य डॉ. शुक्ला महांती ने कहा कि दुनिया की किसी भाषा की तुलना में हिंदी का शब्दकोश अधिक समृद्ध है. यह लगातार बढ़ भी रहा है क्योंकि हिंदी में एक लचीलापन है जो दूसरी भाषाओं के शब्दों को सहजता से आत्मसात कर लेती है. हिंदी को आगे बढ़ाने में गांधी की भूमिका का ठीक से मूल्यांकन भी करना चाहिए. गांधी ने हिंदी को भारतीय आजादी के सपनों की भाषा बनाया है. हिंदी हमारे सपनों की भाषा है. हम हिंदी में सबसे अधिक सहज और ईमानदार होते हैं.
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हिंदी का भविष्य पाठकीय संस्कृति पर भी करेगा निर्भर
साहित्यकार, समाजशास्त्री और झारखंड राज्य महिला आयोग की पूर्व अध्यक्षा डॉ. महुआ माजी ने कहा कि हिंदी तभी बढ़ेगी जब हम हिंदी को जिएंगे. हिंदी हिन्दी को भी तभी प्राणवायु मिलेगी, जब हिंदी की बोली-वाणी में बात करेंगे. हिंदी करीब अड़तालीस बोलियों का कोलाॅज है. इसलिए सिर्फ संस्कृत से जोड़कर देखना सही नहीं है. दुनिया भर के बड़े रचनाकारों ने अपनी मातृभाषा को ही अपनी सर्वोत्तम रचनाओं का जरिया बनाया. न्गुगी वाॅन थ्योंगो, पाउलो कोएलो, माइकेल मधुसूदन दत्त, रसूल हमजातोव, गेब्रियल गार्सिया मार्केज, महाश्वेता देवी जैसे लोगों ने मातृभाषा में लिखा. हिंदी को बचाने के लिए पाठकीय संस्कृति को बचाना जरूरी है. बाॅलीवुड में हिंदी फिल्मों के जरिए मोटी कमाई करने वाले अधिकांश लोग साक्षात्कार के समय अंग्रेजी बोलते हैं, यह शर्मनाक है. हिंदी को बचाना साझे हिंदुस्तान को बचाना है.
हिंदी में सबसे अधिक सुरक्षित बहुलतावादी लोकतंत्र
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रभाकर सिंह ने कहा कि हिंदी भारत की बहुलतावादी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाली भाषा है. हिंदी प्रेम, प्रतिरोध और श्रम की भाषा है. हिंदी भाषा और संस्कृति के विकास में महात्मा गांधी, प्रेमचंद और रामविलास शर्मा द्वारा बताए गए सूत्र आज 21वीं सदी में हिंदी भाषा के विकास के लिए उतने ही उपयोगी है. हिंदी अपनी जनपदीय भाषाओं से तेज ग्रहण करती है और अपना लोकतांत्रिक स्वरूप विकसित करती है. आज जरूरत है मातृभाषाओं और भारतीय भाषाओं के पोषण के साथ हिंदी अपना स्वरूप विकसित करें. हिंदी भाषा जो प्रशासन में शासन में और शोध में प्रयोग हो रही है, उसमें बदलाव की जरूरत है.
संगोष्ठी में गूगल मीट और यूट्यूब लाइव स्ट्रीमिंग के जरिए 943 प्रतिभागियों ने शिरकत की. संचालन और धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी के संयोजक डाॅ. अविनाश कुमार सिंह ने किया. तकनीकी सहयोग ज्योतिप्रकाश महांती और के. प्रभाकर राव ने किया.