जमशेदपुरः देश की सबसे बड़ी इस्पात निर्माता कंपनी टाटा स्टील ने 113 साल पूरे कर लिए हैं. इस्पात निर्माता कंपनी ने एक शहर बसाया जहां लाखों लोग रहते हैं. टाटा स्टील की उत्पत्ति औद्योगिकीकरण के युग में कदम रखने और भारत को आर्थिक स्वतंत्रता दिलाई. उन्हें थॉमस क्लाइवल एक ब्रिटिश निबंधकार इतिहासकार जिनकी कृतियां विक्टोरियन युग के दौरान बेहद प्रभावशाली थी का यह कथन था कि जो" राष्ट्र लोहे पर नियंत्रण हासिल करता है" वह शीघ्र ही सोने पर नियंत्रण प्राप्त कर लेता है, ने काफी प्रभावित किया वर्ष 1960 में पीएम बोस द्वारा जेएन टाटा को लिखे गए ऐतिहासिक पत्र में ओडिशा के मयूरभंज के लौह अयस्क भंडार के बारे में बात की गई थी.
इस तरह से पूर्वी भारत के आदिवासी क्षेत्र में टाटा अभियान दल का प्रवेश हुआ जो अब तक भारत के पहले स्टील प्लांट की स्थापना के लिए संभावित स्थान की खोज कर रहा था. इस परियोजना के विशेषज्ञ अमेरिका से आए थे और चार्ल्स प्रिंस के मुख्य सलाहकार थे. सर दोराबजी टाटा का जन्म 27 अगस्त को हुआ था, के सबसे बड़े पुत्र थे उन्होंने अपने पिता की दूरदृष्टि को अमलीजामा पहनाने का बीड़ा उठाया.
उन्होंने पूरे राष्ट्र से भारत में स्टील प्लांट बनाने की योजना का हिस्सा बनने की अपील की. उन्होंने 80 हजार भारतीयों को औद्योगिकीकरण की यात्रा में शामिल होने के लिए प्रेरित किया जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली और 3 सप्ताह के भीतर पूरी राशि 26 अगस्त को भारत में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी के रूप में पंजीकृत किया गया.
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स्टील का उत्पादन भी शुरू हुआ. स्थापना से लेकर 1932 तक कंपनी के चेयरमैन के रूप में देश के पहले स्टील प्लांट के निर्माण के लिए लगभग 25 वर्षों तक जमीनी स्तर से लेकर ऊपर तक अथक परिश्रम किया.
उन्होंने हर चुनौती में कठिनाइयों का सामना करने का और इसमें अपना सर्वस्व लगा दिया. सर दोराबजी टाटा श्रमिकों के कल्याण में रुचि रखते थे. अपने कर्मचारियों के प्रति व्यवहार को लेकर हमेशा द्वारा नियंत्रित आदर्श आचरण के प्रति सजग रहें. 1920 में श्रमिक हड़ताल के दौरान जमशेदपुर आया और श्रमिकों की शिकायतों को सुना उनके कार्य श्रमिकों ने हड़ताल समाप्त किया.