जमशेदपुर: झारखंड में TAC का नोटिफिकेशन आने के बाद अब राजनीति शुरू हो गई है. झारखंड दिशोम पार्टी नेता आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने झारखंड सरकार के TAC के नोटिफिकेशन पर अपना विरोध जताया है. सालखन मुर्मू ने अपना बयान जारी करते हुए कहा है कि टीएसी में कानून बनाने और नियुक्ति का अधिकार महामहिम राज्यपाल को है. हम संविधान और जनहित में इस नोटिफिकेशन का विरोध करते हैं.
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खुला संविधान का उल्लंघन
जमशेदपुर के कदमा में रहने वाले पूर्व सांसद, झारखंड दिशोम पार्टी के नेता और आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने झारखंड सरकार के 4 जून 2021 को TAC के नोटिफिकेशन पर विरोध जताया है. उन्होंने बताया है कि TAC यानी आदिवासी सलाहकार परिषद पर अमिताभ कौशल के हस्ताक्षर से झारखंड सरकार को जारी 4 जून 2021 का नोटिफिकेशन संविधान की पांचवी अनुसूची प्रावधानों के तकनीकी और आत्मा के खिलाफ प्रतीत होता है. पांचवी अनुसूची के पार्ट बी की धारा 4 की उपधारा 3 abc के तहत टीएसी के लिए नियम कानून बनाने और नियुक्ति का अधिकार केवल महामहिम राज्यपाल को है. यह अधिकार मुख्यमंत्री को नहीं है. यह अधिसूचना संविधान का खुला उल्लंघन है.
उद्देश्यों के खिलाफ
उन्होंने बताया कि तकनीकी तौर पर TAC का मूल उद्देश्य है आदिवासी हितों की रक्षा और संवर्धन है. टीएसी में अधिकतम 20 सदस्यों में 15 सदस्य अनिवार्य रूप से आदिवासी रखे गए है. लेकिन राज्य सरकार के जारी इस नोटिफिकेशन ने अपनी धारा 11 की उप धारा 4 के तहत कोरम के रूप में केवल 7 सदस्यों की उपस्थिति रखी है. उसमें भी चार सदस्यों के बहुमत से पारित किसी भी निर्णय को टीएसी का निर्णय बताया है, जो टीएसी के गठन और उद्देश्यों के बिल्कुल खिलाफ है.
कोई मुख्यमंत्री TAC का चेयरमैन नहीं हो सकता
सालखन मुर्मू ने बताया कि नोटिफिकेशन की धारा 3 की उपधारा ए और बी के तहत मुख्यमंत्री और आदिवासी कल्याण मंत्री पदेन या रिटायर अधिकारी टीएसी के चेयरमैन और वाइस चेयरमैन बन जाते हैं जिसका प्रवधान संविधान में नहीं है. संविधान में केवल चेयरमैन है और उसकी नियुक्ति राज्यपाल पांचवी अनुसूची की धारा 4 के उपधारा 3 के ए के तहत करते हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ मुकदमा
उसके लिए उनको पहले टीएसी की सदस्यता के लिए योग्य बनना पड़ता है. कोई व्यक्ति मुख्यमंत्री होने के नाते स्वतः TAC का चेयरमैन या अध्यक्ष नहीं बन सकता है. ठीक ऐसे ही मामले पर पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ 17 नवंबर 2016 को झारखंड हाई कोर्ट में मुकदमा दायर किया था. जिसका मकसद था कि जब अध्यक्ष की नियुक्ति ही गैरकानूनी और गलत है, तब 3 नवंबर 2016 को टीएसी में पारित सीएनटी / एसपीटी कानूनों का गलत संशोधन कैसे जायज और कानूनी हो सकते हैं. उन्होने कहा कि झारखंड सरकार का यह नोटिफिकेशन संविधान और राज्यपाल के अधिकार क्षेत्रों को बाईपास करने जैसा है, जो गलत है.