जमशेदपुरः देश की आजादी से पूर्व अंग्रेजों से लोहा लेने वाले तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस देश की आजादी की लड़ाई के साथ लौह नगरी में टाटा वर्कर्स यूनियन का नेतृत्व भी किया, जो यूनियन के लिये एक यादगार पल रहा है. टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष ने बताया कि नेताजी के कार्यकाल में मजदूर और कंपनी कंपनी के हित में कई अहम फैसले लिए गए, जो आज भी कायम है. टाटा वर्कर्स यूनियन नेताजी की जयंती को प्रेरणा दिवस के रूप में मनाती है.
आजादी से पूर्व देश में इस्पात उद्योग में क्रांति लाने वाली टाटा स्टील कंपनी से आजाद हिंद फौज की रचना करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस का सीधा संबंध रहा है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस आजादी की लड़ाई के साथ-साथ जमशेदपुर में टाटा स्टील कंपनी के मजदूरों के नेता भी रहे. टाटा सटील कंपनी की सौ साल पुरानी टाटा वर्कर्स यूनियन के भवन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी यादें आज भी संजोकर रखी हुई है. उनसे जुड़े दस्तावेज, तस्वीरें और उनके लिखे पत्र आज भी इतिहास का गवाही देते हुए उनकी कहानियां बताते हैं. जमशेदपुर का बिष्टुपुर जी टाउन मैदान आज भी उस बात का गवाह है, जहां नेताजी के नेतृत्व में अंतिम बार हड़ताली मजदूरों के साथ सभा हुई थीस जिसके बाद हड़ताल समाप्त हुआ था.
नेताजी ने किया मजदूरों का नेतृत्व
1928 से लेकर 1936 तक नेताजी सुभाष चंद्र बोस टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी की लेबर एसोसिएशन में अध्यक्ष पद पर रहे. जमशेदपुर में टाटा कंपनी में काम करने वाले मजदूरों के हित के लिए 1920 में जमशेदपुर लेबर एसोसिएशन का गठन किया गया, जिसका नेतृत्व एसएन हलदर ने किया. उस दौरान कंपनी में मजदूरों और विभागीय हड़तालों का सिलसिला जारी था. परिस्थिति को देखते हुए मजदूर नेताओं ने युवा क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संपर्क कर उन्हें जमशेदपुर आने का न्योता दिया, महात्मा गांधी ने भी उन्हें जमशेदपुर जाने के लिए कहा था. 18 अगस्त 1928 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस जमशेदपुर पहुंचे और 20 अगस्त को उन्हें सर्वसम्मति से लेबर एसोसिएशन का तीसरा अध्यक्ष घोषित कर दिया गया. नेताजी के कमान संभालते ही कंपनी प्रबंधन को नरम रुख अख्तियार करना पड़ा और नेताजी द्वारा उठाई गई मांगों को प्राथमिकता देते हुए कंपनी प्रबंधन के बीच 12 सितंबर 1928 को सम्मानजनक समझौता हुआ, जिसके बाद मजदूरों का हड़ताल खत्म हुआ.
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लेबर एसोसिएशन का किया नेतृत्व
राष्ट्रीय गतिविधियों में लिप्त होने कारण नेताजी सुभाष चंद्र बोस को कई बार जेल भी जाना पड़ा और वो विदेश भी जाते रहे. लेकिन लेबर एसोसिएशन का नेतृत्व उन्होंने बखूबी निभाई. 1928 से 1937 तक लेबर एसोसिएशन का नेतृत्व करते हुए नेताजी ने टाटा कंपनी के उच्च पदों पर विदेशी अफसरों के स्थान पर सक्षम भारतीय को पदस्थापित करने का दबाव बनाया, जो आज भी कायम है. टाटा वर्कर्स यूनियन के वर्तमान 11वें अध्यक्ष आर रवि प्रसाद बताते हैं कि आज वो जिस यूनियन के जिस पद पर है जिस कुर्सी पर बैठे हैं, इसका एक इतिहास है जो देश के किसी भी इंडस्ट्री में नहीं है. इस कुर्सी से कई ऐसे शख्शियत जुड़े हैं, जिनमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अहम भूमिका निभाई है. उनके कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण फैसले लिए गए, जिस पर कानून बना और आज मजदूर और प्रबंधन के बीच बेहतर संबंध स्थापित है. उन्होंने बताया कि विभागीय बोनस, सेवा की सुरक्षा, पीएफ, मजदूरों के लिए बूट-दास्ताने, एप्रोन, चश्मा जैसे उपकरण की व्यवस्था के अलावा कई प्रस्ताव पर समझौता हुआ. उन्होंने बताया कि 100 साल पुराना टाटा वर्कर्स यूनियन में जितने भी पूर्वज रहे हैं, उनमें नेताजी प्रमुख रहे हैं. नेताजी को टाटा वर्कर्स यूनियन कभी नहीं भूल सकता है. उनकी जयंती को यूनियन एक प्रेरणा दिवस के रूप में मनाती है.
नेताजी सुभाष चंद्र बोस आज भी यूनियन के लिए एक प्रेरणा के स्रोत हैं. टाटा वर्कर्स यूनियन के उपाध्यक्ष शाहनवाज आलम बताते हैं कि नेताजी एक कुशल ट्रेड यूनियन लीडर थे. उनके द्वारा प्रस्तावित नियम आज देश के कानून में मजदूरों के लिए कायम है. जी टाउन मैदान में उनके द्वारा अंतिम बार मजदूरों के साथ सभा हुई, जिसमें नेता जी मज़दूरों को समझाया कि अपनी मांग के साथ कंपनी की शाख बनी रहे इस पर भी ध्यान देना चाहिए और हड़ताल समस्या का समाधान नहीं है, जिसके बाद हड़ताल खत्म हुआ. नेताजी के प्रयास से देश की पहली स्वदेशी कंपनी है, जिसमें मजदूरों को बोनस मिलना शुरू हुआ. नेताजी सुभाष चंद्र बोस देश की आजादी के साथ जमशेदपुर में मजदूर नेता बनकर रहे और उनके बिताए पल ने कंपनी और मजदूर के बीच की दूरी को खत्म करने का काम किया है जिसका आज भी इतिहास गवाह है. ऐसे शख्शियत को लौहनगरी कभी नहीं भूल सकता है.