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पेड़ों में नए पत्ते फूल आने पर बाहा मनाते हैं आदिवासी, जानें क्यों होती है साल के फूल-पत्तों की पूजा, ड्रेस कोड का क्या है मतलब - झारखंड में जल जंगल जमीन

झारखंड में संथाल आदिवासियों ने दिशोम बाहा पर्व मनाया. इस पर्व में जमशेदपुर के संथाल आदिवासी साल वृक्ष के फूल और पत्ते की पूजा करते हैं. इसमें पहन गए पारंपरिक परिधानों से व्यक्ति के सामाजिक स्टेटस का भी अंदाजा लगाया जा सकता है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट

meaning of worship of Sal tree and different dress in Dishom Baha festival of Jharkhand
पेड़ों में नए पत्ते फूल आने पर बाहा मनाते हैं आदिवासी
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Published : Mar 15, 2022, 4:41 PM IST

Updated : Mar 15, 2022, 8:27 PM IST

जमशेदपुर: झारखंड और इसकी परंपरा संस्कृति खास है. प्राकृतिक संसाधनों पेड़ पौधों के प्रति यहां के आदिवासी समाज में लगाव दिखता है, वैसा दूसरे समाजों में ढूंढ़ना मुश्किल है. तभी तो आदिवासी समाज प्रकृति पूजा को उत्सव की तरह मनाता है और ऐसे कई त्योहार हैं जिसमें पेड़-पौधों की पूजा होती है, जिनकी रक्षा संविधान के मुताबिक नागरिक कर्तव्यों में भी शामिल है. होली से पहले मनाया जाने वाला दिशोम बाहा पर्व या बाहा पर्व इसी सोच का हिस्सा है. पेड़ों में नए पत्ते और नए फूल के आगमन से पहले संथाल आदिवासी उत्साह से इस त्योहार को मनाते हैं. साल के वृक्ष की इसमें पूजा होती है. इसमें हजारों लोग शामिल होते हैं.


ये भी पढ़ें-जमशेदपुर में मनाया गया दिशोम बाहा महोत्सव, जानिए कैसे मानते हैं लोग

झारखंड में जल जंगल जमीन की पूजा करने वाला आदिवासी समाज अपनी परंपरा संस्कृति को बखूबी निभाता है. आदिकाल से आदिवासी समाज में मनाए जा रहे त्योहारों के पीछे प्रकृति ही प्रेरणा रही है. इसी कड़ी में आदिवासी संथाल समाज के लोग बसंत ऋतु के बाद होली से पूर्व बाहा पर्व मनाते हैं, जिसमें आदिवासी परंपरा के अनुसार पेड़ पौधों में नए फूल नए पत्तों की पूजा करते हैं. इसके लिए गांव के लोग जाहेर स्थान पर जुटते हैं और हजारों की संख्या में दिशोम बाहा पर्व मनाते हैं. इस पर्व में साल पेड़ के फूल का बड़ा महत्व होता है.

देखें पूरी खबर
ऐसे मनाते हैं दिशोम बाहाः जमशेदपुर में दिशोम बाहा की सुबह आदिवासी समाज के लोग अपने गांव से पंडित जिसे संथाल में नायके बाबा कहा जाता है, उन्हें करनडीह स्थित जाहेर स्थान लेकर आते हैं. जहां अपनी देवी देवताओं और साल के पेड़ की पूजा करते हैं. जाहेर स्थान परिसर में शाकाहारी भोग बनाया जाता है. उपवास रहने वाले पुरुष सामूहिक रूप से एक साथ बैठ कर भोग ग्रहण करते हैं.

ड्रेस कोड भी तयः शाम के वक्त आदिवासी समाज की महिलाएं अपनी परंपरा के तहत लाल साड़ी पहनकर जाहेर स्थान आती हैं जबकि मान्यता के अनुसार अविवाहित लडकियां हरे रंग की साड़ी पहन कर आती हैं. ढोल नगाड़े की धुन पर महिलाएं एक दूसरे का हाथ पकड़ झूमती हैं. पुरुष पारंपरिक परिधान में रहते हैं.
संथाल आदिवासी सुमित्रा सोरेन बताती हैं कि बाहा पर्व में हम प्रकृति की पूजा करते हैं. नायके का स्वागत करते हुए उन्हें जाहेर स्थान लाते हैं और शाम के वक्त उत्साह के साथ ढोल नगाड़े की धुन पर नायके को घर पहुंचाते हैं.

meaning of worship of Sal tree and different dress in Dishom Baha festival of Jharkhand
पेड़ों में नए पत्ते फूल आने पर बाहा मनाते हैं आदिवासी



इसके अलावा संथाल आदिवासी तुसुमणि मार्डी का कहना है कि आदिवासी समाज में आज की पीढ़ी भी अपने पर्व त्योहार की परंपरा संस्कृति को उत्साह से मनाती है. उन्हें इससे लगाव है. तुसुमणि मार्डी का कहना है दिशोम बाहा पर्व में हम साल पेड़ के फूल और नए पत्ते की पूजा करते हैं. पूजा के बाद सभी महिलाएं साल के फूल को अपने बालों में लगाती हैं.

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पेड़ों में नए पत्ते फूल आने पर बाहा मनाते हैं आदिवासी
यह परंपराः मार्डी का कहना है कि बाहा मनाने के लिए करनडीह जाहेर स्थान में आस-पास के गांव के लोग परिवार के साथ आते हैं. नई पीढ़ी भी उत्साह के साथ इस पर्व में शामिल होती है. शाम के वक्त नायके बाबा के साथ उनके शिष्य की घर वापसी होती है. नायके के कंधे पर मिट्टी का कलश रहता है जिसमें महिलाएं पानी भरती हैं. नायके बाबा के एक हाथ में साल का पत्ता और फूल रहता है. इस दौरान रास्ते में जगह-जगह महिलाएं नायके बाबा का पैर धोती हैं. तेल लगाती हैं फिर नायके उन्हें आशीर्वाद देकर आंचल में साल का फूल देते हैं जो शुभ माना जाता है. इस दौरान शिष्य टोकरी और हाथ मे झाड़ू लिए नायके के आगे आगे रास्ता साफ करते चलता है.
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पेड़ों में नए पत्ते फूल आने पर बाहा मनाते हैं आदिवासी
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पेड़ों में नए पत्ते फूल आने पर बाहा मनाते हैं आदिवासी


यह है परंपराः करनडीह जाहेर स्थान से नायके के पीछे हजारों की संख्या में आदिवासी महिलाएं ढोल नगाड़ा मांदर की थाप पर झूमती चलती हैं. इस बाहा पर्व में हर साल समाज के नेता, मंत्री सभी शामिल होते हैं. दिशोम बाहा में झारखंड सरकार के मंत्री चम्पई सोरेन अपने परिवार के साथ शामिल हुए और लोगों को बाहा की बधाई दी.

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पेड़ों में नए पत्ते फूल आने पर बाहा मनाते हैं आदिवासी
मंत्री चम्पई सोरेन ने बताया कि आदिवासी समाज का यह महान पर्व है जिसमें प्रकृति की पूजा की जाती है. साल के फूल पत्ते को लगाया जाता है. उन्होंने बताया कि जिस तरह साल के फूल का रंग नही बदलता है. उसी तरह समाज भी एक समान रहे. आपसी भेद भाव ना हो. साल के पत्ते और फूल साल भर एक जैसे एक रंग के दिखते हैं उसी तरह हमारा समाज भी अपनी परंपरा संस्कृति को नहीं बदलेगा.

जमशेदपुर: झारखंड और इसकी परंपरा संस्कृति खास है. प्राकृतिक संसाधनों पेड़ पौधों के प्रति यहां के आदिवासी समाज में लगाव दिखता है, वैसा दूसरे समाजों में ढूंढ़ना मुश्किल है. तभी तो आदिवासी समाज प्रकृति पूजा को उत्सव की तरह मनाता है और ऐसे कई त्योहार हैं जिसमें पेड़-पौधों की पूजा होती है, जिनकी रक्षा संविधान के मुताबिक नागरिक कर्तव्यों में भी शामिल है. होली से पहले मनाया जाने वाला दिशोम बाहा पर्व या बाहा पर्व इसी सोच का हिस्सा है. पेड़ों में नए पत्ते और नए फूल के आगमन से पहले संथाल आदिवासी उत्साह से इस त्योहार को मनाते हैं. साल के वृक्ष की इसमें पूजा होती है. इसमें हजारों लोग शामिल होते हैं.


ये भी पढ़ें-जमशेदपुर में मनाया गया दिशोम बाहा महोत्सव, जानिए कैसे मानते हैं लोग

झारखंड में जल जंगल जमीन की पूजा करने वाला आदिवासी समाज अपनी परंपरा संस्कृति को बखूबी निभाता है. आदिकाल से आदिवासी समाज में मनाए जा रहे त्योहारों के पीछे प्रकृति ही प्रेरणा रही है. इसी कड़ी में आदिवासी संथाल समाज के लोग बसंत ऋतु के बाद होली से पूर्व बाहा पर्व मनाते हैं, जिसमें आदिवासी परंपरा के अनुसार पेड़ पौधों में नए फूल नए पत्तों की पूजा करते हैं. इसके लिए गांव के लोग जाहेर स्थान पर जुटते हैं और हजारों की संख्या में दिशोम बाहा पर्व मनाते हैं. इस पर्व में साल पेड़ के फूल का बड़ा महत्व होता है.

देखें पूरी खबर
ऐसे मनाते हैं दिशोम बाहाः जमशेदपुर में दिशोम बाहा की सुबह आदिवासी समाज के लोग अपने गांव से पंडित जिसे संथाल में नायके बाबा कहा जाता है, उन्हें करनडीह स्थित जाहेर स्थान लेकर आते हैं. जहां अपनी देवी देवताओं और साल के पेड़ की पूजा करते हैं. जाहेर स्थान परिसर में शाकाहारी भोग बनाया जाता है. उपवास रहने वाले पुरुष सामूहिक रूप से एक साथ बैठ कर भोग ग्रहण करते हैं.

ड्रेस कोड भी तयः शाम के वक्त आदिवासी समाज की महिलाएं अपनी परंपरा के तहत लाल साड़ी पहनकर जाहेर स्थान आती हैं जबकि मान्यता के अनुसार अविवाहित लडकियां हरे रंग की साड़ी पहन कर आती हैं. ढोल नगाड़े की धुन पर महिलाएं एक दूसरे का हाथ पकड़ झूमती हैं. पुरुष पारंपरिक परिधान में रहते हैं.
संथाल आदिवासी सुमित्रा सोरेन बताती हैं कि बाहा पर्व में हम प्रकृति की पूजा करते हैं. नायके का स्वागत करते हुए उन्हें जाहेर स्थान लाते हैं और शाम के वक्त उत्साह के साथ ढोल नगाड़े की धुन पर नायके को घर पहुंचाते हैं.

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पेड़ों में नए पत्ते फूल आने पर बाहा मनाते हैं आदिवासी



इसके अलावा संथाल आदिवासी तुसुमणि मार्डी का कहना है कि आदिवासी समाज में आज की पीढ़ी भी अपने पर्व त्योहार की परंपरा संस्कृति को उत्साह से मनाती है. उन्हें इससे लगाव है. तुसुमणि मार्डी का कहना है दिशोम बाहा पर्व में हम साल पेड़ के फूल और नए पत्ते की पूजा करते हैं. पूजा के बाद सभी महिलाएं साल के फूल को अपने बालों में लगाती हैं.

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पेड़ों में नए पत्ते फूल आने पर बाहा मनाते हैं आदिवासी
यह परंपराः मार्डी का कहना है कि बाहा मनाने के लिए करनडीह जाहेर स्थान में आस-पास के गांव के लोग परिवार के साथ आते हैं. नई पीढ़ी भी उत्साह के साथ इस पर्व में शामिल होती है. शाम के वक्त नायके बाबा के साथ उनके शिष्य की घर वापसी होती है. नायके के कंधे पर मिट्टी का कलश रहता है जिसमें महिलाएं पानी भरती हैं. नायके बाबा के एक हाथ में साल का पत्ता और फूल रहता है. इस दौरान रास्ते में जगह-जगह महिलाएं नायके बाबा का पैर धोती हैं. तेल लगाती हैं फिर नायके उन्हें आशीर्वाद देकर आंचल में साल का फूल देते हैं जो शुभ माना जाता है. इस दौरान शिष्य टोकरी और हाथ मे झाड़ू लिए नायके के आगे आगे रास्ता साफ करते चलता है.
meaning of worship of Sal tree and different dress in Dishom Baha festival of Jharkhand
पेड़ों में नए पत्ते फूल आने पर बाहा मनाते हैं आदिवासी
meaning of worship of Sal tree and different dress in Dishom Baha festival of Jharkhand
पेड़ों में नए पत्ते फूल आने पर बाहा मनाते हैं आदिवासी


यह है परंपराः करनडीह जाहेर स्थान से नायके के पीछे हजारों की संख्या में आदिवासी महिलाएं ढोल नगाड़ा मांदर की थाप पर झूमती चलती हैं. इस बाहा पर्व में हर साल समाज के नेता, मंत्री सभी शामिल होते हैं. दिशोम बाहा में झारखंड सरकार के मंत्री चम्पई सोरेन अपने परिवार के साथ शामिल हुए और लोगों को बाहा की बधाई दी.

meaning of worship of Sal tree and different dress in Dishom Baha festival of Jharkhand
पेड़ों में नए पत्ते फूल आने पर बाहा मनाते हैं आदिवासी
मंत्री चम्पई सोरेन ने बताया कि आदिवासी समाज का यह महान पर्व है जिसमें प्रकृति की पूजा की जाती है. साल के फूल पत्ते को लगाया जाता है. उन्होंने बताया कि जिस तरह साल के फूल का रंग नही बदलता है. उसी तरह समाज भी एक समान रहे. आपसी भेद भाव ना हो. साल के पत्ते और फूल साल भर एक जैसे एक रंग के दिखते हैं उसी तरह हमारा समाज भी अपनी परंपरा संस्कृति को नहीं बदलेगा.
Last Updated : Mar 15, 2022, 8:27 PM IST
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