जमशेदपुर: झारखंड और इसकी परंपरा संस्कृति खास है. प्राकृतिक संसाधनों पेड़ पौधों के प्रति यहां के आदिवासी समाज में लगाव दिखता है, वैसा दूसरे समाजों में ढूंढ़ना मुश्किल है. तभी तो आदिवासी समाज प्रकृति पूजा को उत्सव की तरह मनाता है और ऐसे कई त्योहार हैं जिसमें पेड़-पौधों की पूजा होती है, जिनकी रक्षा संविधान के मुताबिक नागरिक कर्तव्यों में भी शामिल है. होली से पहले मनाया जाने वाला दिशोम बाहा पर्व या बाहा पर्व इसी सोच का हिस्सा है. पेड़ों में नए पत्ते और नए फूल के आगमन से पहले संथाल आदिवासी उत्साह से इस त्योहार को मनाते हैं. साल के वृक्ष की इसमें पूजा होती है. इसमें हजारों लोग शामिल होते हैं.
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झारखंड में जल जंगल जमीन की पूजा करने वाला आदिवासी समाज अपनी परंपरा संस्कृति को बखूबी निभाता है. आदिकाल से आदिवासी समाज में मनाए जा रहे त्योहारों के पीछे प्रकृति ही प्रेरणा रही है. इसी कड़ी में आदिवासी संथाल समाज के लोग बसंत ऋतु के बाद होली से पूर्व बाहा पर्व मनाते हैं, जिसमें आदिवासी परंपरा के अनुसार पेड़ पौधों में नए फूल नए पत्तों की पूजा करते हैं. इसके लिए गांव के लोग जाहेर स्थान पर जुटते हैं और हजारों की संख्या में दिशोम बाहा पर्व मनाते हैं. इस पर्व में साल पेड़ के फूल का बड़ा महत्व होता है.
ड्रेस कोड भी तयः शाम के वक्त आदिवासी समाज की महिलाएं अपनी परंपरा के तहत लाल साड़ी पहनकर जाहेर स्थान आती हैं जबकि मान्यता के अनुसार अविवाहित लडकियां हरे रंग की साड़ी पहन कर आती हैं. ढोल नगाड़े की धुन पर महिलाएं एक दूसरे का हाथ पकड़ झूमती हैं. पुरुष पारंपरिक परिधान में रहते हैं.
संथाल आदिवासी सुमित्रा सोरेन बताती हैं कि बाहा पर्व में हम प्रकृति की पूजा करते हैं. नायके का स्वागत करते हुए उन्हें जाहेर स्थान लाते हैं और शाम के वक्त उत्साह के साथ ढोल नगाड़े की धुन पर नायके को घर पहुंचाते हैं.
![meaning of worship of Sal tree and different dress in Dishom Baha festival of Jharkhand](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/jh-eas-02-bahadishom-splpkg-jh10003_14032022195252_1403f_1647267772_376.jpg)
इसके अलावा संथाल आदिवासी तुसुमणि मार्डी का कहना है कि आदिवासी समाज में आज की पीढ़ी भी अपने पर्व त्योहार की परंपरा संस्कृति को उत्साह से मनाती है. उन्हें इससे लगाव है. तुसुमणि मार्डी का कहना है दिशोम बाहा पर्व में हम साल पेड़ के फूल और नए पत्ते की पूजा करते हैं. पूजा के बाद सभी महिलाएं साल के फूल को अपने बालों में लगाती हैं.
![meaning of worship of Sal tree and different dress in Dishom Baha festival of Jharkhand](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/jh-eas-02-bahadishom-splpkg-jh10003_14032022195252_1403f_1647267772_208.jpg)
![meaning of worship of Sal tree and different dress in Dishom Baha festival of Jharkhand](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/jh-eas-02-bahadishom-splpkg-jh10003_14032022195252_1403f_1647267772_732.jpg)
![meaning of worship of Sal tree and different dress in Dishom Baha festival of Jharkhand](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/jh-eas-02-bahadishom-splpkg-jh10003_14032022195252_1403f_1647267772_323.jpg)
यह है परंपराः करनडीह जाहेर स्थान से नायके के पीछे हजारों की संख्या में आदिवासी महिलाएं ढोल नगाड़ा मांदर की थाप पर झूमती चलती हैं. इस बाहा पर्व में हर साल समाज के नेता, मंत्री सभी शामिल होते हैं. दिशोम बाहा में झारखंड सरकार के मंत्री चम्पई सोरेन अपने परिवार के साथ शामिल हुए और लोगों को बाहा की बधाई दी.
![meaning of worship of Sal tree and different dress in Dishom Baha festival of Jharkhand](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/jh-eas-02-bahadishom-splpkg-jh10003_14032022195252_1403f_1647267772_240.jpg)