ETV Bharat / state

दिशोम बाहा पर्व में छिपा है प्रकृति संरक्षण का संदेश, आइये जानें कैसे मनाते हैं दिशोम बाहा - झारखंड के मंत्री चंपई सोरेन

होली से एक दिन पहले आदिवासियों ने दिशोम बाहा पर्व मनाया. नए फूलों के साथ नए रिश्तों की शुरुआत और प्रकृति पूजा के इस पर्व को लेकर लोगों में उत्साह दिखा. करीब सात हजार लोग इसमें शामिल हुए, आइये बताते हैं आदिवासी समाज के लोग कैसे मनाते हैं दिशोम बाहा पर्व.

major-festival-of-santhal-tribals-dishom-baha-in-jharkhand-celebrated
दिशोम बाहा पर्व में छिपा है प्रकृति संरक्षण का संदेश
author img

By

Published : Mar 29, 2021, 9:34 AM IST

Updated : Mar 30, 2021, 8:33 AM IST

जमशेदपुरः झारखंड में प्रकृति की पूजा करने वाला आदिवासी समाज आधुनिक युग में भी अपनी परंपरा और संस्कृति को बचाए रखने के लिए सजग है. होली से पूर्व संथाल समाज विशाल दिशोम बाहा पर्व मनाता है. प्रकृति की पूजा करने वाला यह समाज जाहेर स्थान से नायके यानी पंडित को अनोखे अंदाज में घर तक पहुंचाता है. यह माना जाता है कि नायके के साथ आदिवासियों के देवता भी रहते हैं.

देखें स्पेशल खबर
ये भी पढ़ें-इस गांव में 150 वर्षों से नहीं खेली जाती होली, अनहोनी का रहता है डर

आदिवासियों ने मनाया दिशोम बाहा पर्व

प्रकृति की पूजा करने वाला आदिवासी समाज और उसके पर्व और त्योहार देश की अनोखी धरोहर हैं. यह धरोहर प्रकृति से जुड़ी हुई है, जिससे आदिवासियों का जुड़ाव अनूठा है. कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला जमशेदपुर के करनडीह दिशोम बाहा जाहेर स्थान में जहां लगभग सात हजार की संख्या में समाज के लोगों ने विशाल दिशोम बाहा मनाया. संथाल समाज में होली से पहले पूर्णिमा के दिन प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में एक जगह उपस्थित होकर दिशोम बाहा मनाते हैं.

major-festival-of-santhal-tribals-dishom-baha-in-jharkhand-celebrated
दिशोम बाहा पर्व में छिपा है प्रकृति संरक्षण का संदेश

ऐसे मनाते हैं पर्व

संथाल समाज में पंडित जिसे नायके कहते हैं, उन्हें सुबह जाहेर स्थान में अपनी देवी देवताओं की पूजा करने के लिए लाया जाता है. पूजा के बाद समाज के कुछ लोग उपवास करते हैं जो पूजा के बाद जाहेर स्थान परिसर में शाकाहारी भोग बनाते हैं, इसे सोढ़े कहा जाता है. भोग ग्रहण करने के बाद आस-पास के गांवों के लोग जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं रहती हैं, सभी जाहेर स्थान में अपने देवी देवताओं को प्रणाम करती हैं और फिर ढोल नगाड़े की थाप पर अपनी परंपरा के अनुसार एक दूसरे का हाथ पकड़ नाचती हैं. देर शाम होने के बाद नायके बाबा को समाज के लोग सम्मान के साथ उनके घर तक पहुंचाते हैं.

major-festival-of-santhal-tribals-dishom-baha-in-jharkhand-celebrated
दिशोम बाहा पर्व में छिपा है प्रकृति संरक्षण का संदेश

जगह-जगह चना और शर्बत का वितरण

इस दौरान रास्ते में जगह-जगह महिलाएं नायके के पैर धोती हैं, तेल लगाती हैं और नायके उन्हें आशीर्वाद देते हैं. महिलाओं के आंचल में साल का फूल देते हैं जो शुभ माना जाता है. नायके के कंधे पर मिट्टी का कलश रहता है जिसमे महिलाएं पानी भरती हैं. हाथ में साल का पत्ता और पूजन सामग्री लेकर नायके चलते हैं. उनके साथ उनके शिष्य भी रहते हैं जो झूमते रहते हैं. नायके के साथ एक शिष्य अपने हाथ में टोकरी, एक हाथ में झाडू लिए नायके के आगे-आगे रास्ता साफ करते चलता है. इस दौरान नायके के आस पास सभी नंगे पांव रहते हैं. कोरोना काल के कारण इस साल नृत्य जाहेर स्थान परिसर में ही सम्पन्न हुआ है. इस दौरान रास्ते में जगह-जगह शर्बत और चना का वितरण किया जाता है.

major-festival-of-santhal-tribals-dishom-baha-in-jharkhand-celebrated
दिशोम बाहा पर्व में छिपा है प्रकृति संरक्षण का संदेश

ये भी पढ़ें-शराब की बिक्री में आई तेजी, होली में हर साल 5 करोड़ की दारू गटक जाते हैं झारखंड के लोग


दिशोम बाहा के इस बड़े उत्सव में झारखंड के मंत्री चंपई सोरेन अपनी पत्नी और परिवार के छोटे बच्जों के साथ पहुंचे और बाहा उत्सव में शामिल हुए . मंत्री चंपई सोरेन ने कहा कि यह प्रकृति की पूजा का पर्व है और इस दिन आदिवासी साल के पत्ते और फूल को कान में लगाते हैं. उन्होंने बताया कि इसका अर्थ है कि जिस तरह पत्ते का रंग नहीं बदलता, हमारा समाज भी अपनी परंपरा को अक्षुण्ण रखेगा. वहीं मंत्री की पत्नी मानकों सोरेन ने कहा कि यह परंपरा हमें विरासत में मिली है, यह हमारी सबसे बड़ा पूजा है.

major-festival-of-santhal-tribals-dishom-baha-in-jharkhand-celebrated
दिशोम बाहा पर्व में छिपा है प्रकृति संरक्षण का संदेश
प्रकृति के संरक्षण का संदेशदिशोम बाहा में पूर्वी सिंहभूम जिला के माझी महाल के देशप्राणिक मधु सोरेन ने बताया कि आदिवासी समाज की संस्कृति की अलग पहचान है, जो प्रकृति के करीब है. इस माहौल को देख कर लग रहा है कि अपना झारखंड कितना सुंदर है. हम अपने देवी देवताओं की पूजा कर आने वाले समय को और बेहतर बनाने की उनसे प्रार्थना करते हैं. नायके को घर से जाहेर स्थान लाते हैं और सम्मान के साथ देर शाम घर पहुंचाते हैं. दिशोम बाहा में आदिवासी समाज उत्साह के साथ सपरिवार शामिल होते हैं. समाज के लोगों की मानें तो उनका साफ तौर पर कहना है कि बाहा मनाकर प्रकृति की पूजा कर प्रकृति को बचाया जा सकता है. बाहा पर्व के जरिये आदिवासी समाज पेड़ पौधों की पूजा करता है, इसमें प्रकृति को बचाने का भी संदेश है.

ये भी पढ़ें-होली में लोगों को नहीं मिल पाएगा हर्बल रंग! पलाश के पेड़ों से हर्बल रंग नहीं हुआ तैयार

संस्कृति के संरक्षण पर जोर
समय के साथ साथ कई बदलाव हुए हैं नई पीढ़ी पुरानी परंपरा से दूर होती जा रही है लेकिन करनडीह जाहेर स्थान में कॉलेज के छात्र दीपक सोरेन उसके पिता के निधन के बाद पढ़ाई के साथ नायके की जिम्मेदारी निभा रहे हैं. नायके दीपक सोरेन का कहना है हम आने वाली पीढ़ी को बताना चाहते हैं कि आदिवासी समाज में पुरानी परंपरा संस्कृति कैसी है इसे बचाने की जरूरत है. नायके दीपक बताते हैं कि समाज के लोग उन्हें घर से सुबह लाते हैं और पूजा पाठ होने के बाद नाचते गाते झूमते हमें घर तक पहुंचाते हैं. हम यही प्राथना किए हैं कि हमारा परिवेश हरा भरा रहे. प्रकृति की कृपा बनी रहे.

कोरोना का दिखा असर
कोरोना काल का असर दिशोम बाहा पर भी पड़ा. इस साल नायके को घर पहुंचाने की प्रक्रिया में कम लोग शामिल हुए. अधिकतर कार्यक्रम जाहेर स्थान परिसर में ही आयोजित किए गए. बाहा मनाने वाले संथाल समाज में इस दिन सभी अपने पारंपरिक परिधान में रहते हैं. करीब 5 से 7 हजार की संख्या में समाज के लोगों की भीड़ रही.
इस भीड़ में आज की पीढ़ी के लोगों ने भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. मिलिसा सोरेन और सोनिया मुर्मू को अपने इस पर्व को लेकर उत्साहित हैं, उनका कहना है बाहा पर्व के जरिये लोगों का आपसी मिलन होता है लड़कियां लाल पाढ़ की साड़ी पहनती हैं. हमे अपने पर्व से प्रेम करना चाहिए.

जमशेदपुरः झारखंड में प्रकृति की पूजा करने वाला आदिवासी समाज आधुनिक युग में भी अपनी परंपरा और संस्कृति को बचाए रखने के लिए सजग है. होली से पूर्व संथाल समाज विशाल दिशोम बाहा पर्व मनाता है. प्रकृति की पूजा करने वाला यह समाज जाहेर स्थान से नायके यानी पंडित को अनोखे अंदाज में घर तक पहुंचाता है. यह माना जाता है कि नायके के साथ आदिवासियों के देवता भी रहते हैं.

देखें स्पेशल खबर
ये भी पढ़ें-इस गांव में 150 वर्षों से नहीं खेली जाती होली, अनहोनी का रहता है डर

आदिवासियों ने मनाया दिशोम बाहा पर्व

प्रकृति की पूजा करने वाला आदिवासी समाज और उसके पर्व और त्योहार देश की अनोखी धरोहर हैं. यह धरोहर प्रकृति से जुड़ी हुई है, जिससे आदिवासियों का जुड़ाव अनूठा है. कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला जमशेदपुर के करनडीह दिशोम बाहा जाहेर स्थान में जहां लगभग सात हजार की संख्या में समाज के लोगों ने विशाल दिशोम बाहा मनाया. संथाल समाज में होली से पहले पूर्णिमा के दिन प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में एक जगह उपस्थित होकर दिशोम बाहा मनाते हैं.

major-festival-of-santhal-tribals-dishom-baha-in-jharkhand-celebrated
दिशोम बाहा पर्व में छिपा है प्रकृति संरक्षण का संदेश

ऐसे मनाते हैं पर्व

संथाल समाज में पंडित जिसे नायके कहते हैं, उन्हें सुबह जाहेर स्थान में अपनी देवी देवताओं की पूजा करने के लिए लाया जाता है. पूजा के बाद समाज के कुछ लोग उपवास करते हैं जो पूजा के बाद जाहेर स्थान परिसर में शाकाहारी भोग बनाते हैं, इसे सोढ़े कहा जाता है. भोग ग्रहण करने के बाद आस-पास के गांवों के लोग जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं रहती हैं, सभी जाहेर स्थान में अपने देवी देवताओं को प्रणाम करती हैं और फिर ढोल नगाड़े की थाप पर अपनी परंपरा के अनुसार एक दूसरे का हाथ पकड़ नाचती हैं. देर शाम होने के बाद नायके बाबा को समाज के लोग सम्मान के साथ उनके घर तक पहुंचाते हैं.

major-festival-of-santhal-tribals-dishom-baha-in-jharkhand-celebrated
दिशोम बाहा पर्व में छिपा है प्रकृति संरक्षण का संदेश

जगह-जगह चना और शर्बत का वितरण

इस दौरान रास्ते में जगह-जगह महिलाएं नायके के पैर धोती हैं, तेल लगाती हैं और नायके उन्हें आशीर्वाद देते हैं. महिलाओं के आंचल में साल का फूल देते हैं जो शुभ माना जाता है. नायके के कंधे पर मिट्टी का कलश रहता है जिसमे महिलाएं पानी भरती हैं. हाथ में साल का पत्ता और पूजन सामग्री लेकर नायके चलते हैं. उनके साथ उनके शिष्य भी रहते हैं जो झूमते रहते हैं. नायके के साथ एक शिष्य अपने हाथ में टोकरी, एक हाथ में झाडू लिए नायके के आगे-आगे रास्ता साफ करते चलता है. इस दौरान नायके के आस पास सभी नंगे पांव रहते हैं. कोरोना काल के कारण इस साल नृत्य जाहेर स्थान परिसर में ही सम्पन्न हुआ है. इस दौरान रास्ते में जगह-जगह शर्बत और चना का वितरण किया जाता है.

major-festival-of-santhal-tribals-dishom-baha-in-jharkhand-celebrated
दिशोम बाहा पर्व में छिपा है प्रकृति संरक्षण का संदेश

ये भी पढ़ें-शराब की बिक्री में आई तेजी, होली में हर साल 5 करोड़ की दारू गटक जाते हैं झारखंड के लोग


दिशोम बाहा के इस बड़े उत्सव में झारखंड के मंत्री चंपई सोरेन अपनी पत्नी और परिवार के छोटे बच्जों के साथ पहुंचे और बाहा उत्सव में शामिल हुए . मंत्री चंपई सोरेन ने कहा कि यह प्रकृति की पूजा का पर्व है और इस दिन आदिवासी साल के पत्ते और फूल को कान में लगाते हैं. उन्होंने बताया कि इसका अर्थ है कि जिस तरह पत्ते का रंग नहीं बदलता, हमारा समाज भी अपनी परंपरा को अक्षुण्ण रखेगा. वहीं मंत्री की पत्नी मानकों सोरेन ने कहा कि यह परंपरा हमें विरासत में मिली है, यह हमारी सबसे बड़ा पूजा है.

major-festival-of-santhal-tribals-dishom-baha-in-jharkhand-celebrated
दिशोम बाहा पर्व में छिपा है प्रकृति संरक्षण का संदेश
प्रकृति के संरक्षण का संदेशदिशोम बाहा में पूर्वी सिंहभूम जिला के माझी महाल के देशप्राणिक मधु सोरेन ने बताया कि आदिवासी समाज की संस्कृति की अलग पहचान है, जो प्रकृति के करीब है. इस माहौल को देख कर लग रहा है कि अपना झारखंड कितना सुंदर है. हम अपने देवी देवताओं की पूजा कर आने वाले समय को और बेहतर बनाने की उनसे प्रार्थना करते हैं. नायके को घर से जाहेर स्थान लाते हैं और सम्मान के साथ देर शाम घर पहुंचाते हैं. दिशोम बाहा में आदिवासी समाज उत्साह के साथ सपरिवार शामिल होते हैं. समाज के लोगों की मानें तो उनका साफ तौर पर कहना है कि बाहा मनाकर प्रकृति की पूजा कर प्रकृति को बचाया जा सकता है. बाहा पर्व के जरिये आदिवासी समाज पेड़ पौधों की पूजा करता है, इसमें प्रकृति को बचाने का भी संदेश है.

ये भी पढ़ें-होली में लोगों को नहीं मिल पाएगा हर्बल रंग! पलाश के पेड़ों से हर्बल रंग नहीं हुआ तैयार

संस्कृति के संरक्षण पर जोर
समय के साथ साथ कई बदलाव हुए हैं नई पीढ़ी पुरानी परंपरा से दूर होती जा रही है लेकिन करनडीह जाहेर स्थान में कॉलेज के छात्र दीपक सोरेन उसके पिता के निधन के बाद पढ़ाई के साथ नायके की जिम्मेदारी निभा रहे हैं. नायके दीपक सोरेन का कहना है हम आने वाली पीढ़ी को बताना चाहते हैं कि आदिवासी समाज में पुरानी परंपरा संस्कृति कैसी है इसे बचाने की जरूरत है. नायके दीपक बताते हैं कि समाज के लोग उन्हें घर से सुबह लाते हैं और पूजा पाठ होने के बाद नाचते गाते झूमते हमें घर तक पहुंचाते हैं. हम यही प्राथना किए हैं कि हमारा परिवेश हरा भरा रहे. प्रकृति की कृपा बनी रहे.

कोरोना का दिखा असर
कोरोना काल का असर दिशोम बाहा पर भी पड़ा. इस साल नायके को घर पहुंचाने की प्रक्रिया में कम लोग शामिल हुए. अधिकतर कार्यक्रम जाहेर स्थान परिसर में ही आयोजित किए गए. बाहा मनाने वाले संथाल समाज में इस दिन सभी अपने पारंपरिक परिधान में रहते हैं. करीब 5 से 7 हजार की संख्या में समाज के लोगों की भीड़ रही.
इस भीड़ में आज की पीढ़ी के लोगों ने भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. मिलिसा सोरेन और सोनिया मुर्मू को अपने इस पर्व को लेकर उत्साहित हैं, उनका कहना है बाहा पर्व के जरिये लोगों का आपसी मिलन होता है लड़कियां लाल पाढ़ की साड़ी पहनती हैं. हमे अपने पर्व से प्रेम करना चाहिए.

Last Updated : Mar 30, 2021, 8:33 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.