ETV Bharat / state

दूसरे प्रदेशों में भी है मूर्तिकार सीमा की बनाई लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों की मांग, जानें कैसे है यह शुद्धता का प्रतीक - जमशेदपुर में लक्ष्मी-गणेश मूर्ति के मूर्तिकार

जमशेदपुर मानगो की रहनेवाली सीमा कुमारी ने गाय के गोबर से लक्ष्मी और गणेश की प्रतिमाएं तैयार की हैं. यही नहीं शुभ लाभ के निशान के साथ काफी संख्या में दीये और धूपबत्ती भी उन्होंने गाय के गोबर से तैयार किया है. इन सभी को रंगने के बाद इसकी खूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं. पढ़ें खास रिपोर्ट.

Lakshmi-Ganesh idol made from cow dung
डिजाइन इमेज
author img

By

Published : Nov 12, 2020, 6:25 PM IST

जमशेदपुर: दीपावली के कुछ ही दिन शेष रह गए हैं. दीपावली के दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा होती है और घरों को लोग दीये से सजाते हैं. वहीं, इसे लेकर शहर के बाजारों में तरह-तरह की मां लक्ष्मी और गणेश की प्रतिमाओं के साथ दीये भी बाजार में बिक रहे हैं. ऐसे में मानगो की रहने वाली सीमा कुमारी ने भी आकर्षक गणेश-लक्ष्मी की प्रतिमाएं तैयार की हैं जो पूरी तरह से गाय के गोबर के बने हैं. यही नहीं उन्होंने देवी-देवता के प्रतिमा के साथ शुभ-लाभ के निशान, दीये और धूपबत्ती भी बनाए हैं.

देखें पूरी खबर

ये भी पढ़ें-बिना जोड़ की बेजोड़ कड़ाही बनाते हैं हजारीबाग के कारीगर, पूजा के समय होता है इसका खास इस्तेमाल

सीमा ने बताया कि दीपावली के दिन लक्ष्मी और गणेश भगवान की नई मूर्ति लाकर पूजा पाठ करते हैं. घरों में दीये जलाए जाते हैं. परंपरा के मुताबिक गाय का गोबर शुद्ध माना जाता है. पूजा के दौरान इसकी जरूरत होती है. इस कारण सीमा ने गाय के गोबर से लक्ष्मी और गणेश की मूर्ति बनाई है.

मूर्ति बनाने की प्रक्रिया

सीमा ने बताया कि पहले गाय के गोबर को सुखाया जाता है, उसके बाद इसमें प्रीमिक्स पाउडर और गोंद मिलाते हैं. गीली मिट्टी की तरह इसे छानने के बाद इसे हाथों से गूंथा जाता है, उसके बाद लक्ष्मी और गणेश की मूर्ति के लिए बनाए गए सांचे में ढाल दिया जाता है. यह जैसे सूख जाती है उसे रंग दिया जाता है. दीये के लिए भी यही प्रक्रिया अपनाते हैं, लेकिन उसमें शुद्धि के लिए जटा मासी, पीली सरसों, विशेष पृष्ठ का छाल, एलोवेरा, मेथी के बीज, इमली के बीज को मिलाया जाता है. इसमें 40% ताजा गोबर और 60% कंडा इस्तेमाल किया जाता है.

इको फ्रेंडली और वातावरण के लिए अच्छा

सीमा का मानना है कि इस प्रकार के दीपक के जलने से घर में हवन जैसा वातावरण हो जाता है. इस कारण पटाखों की गैस को कम करने में सहायता मिलती है. यही नहीं दीप जलाने के बाद इन दीयों से जैविक खाद भी बनाए जा सकते हैं और घरों में रखे गमले और कीचन गार्डेन में उपयोग किया जा सकता है.

वहीं, सीमा के परिवार वाले भी इसके लिए सहयोग करते हैं. गाय का गोबर लाना हो या बाजारों से पेंट. सभी काम में परिवार वालों का सहयोग रहता है. यही नहीं इन सब सामानों को बनाने के समय परिवार का कोई न कोई सदस्य वहां साथ में जरूर बैठा रहता है. सीमा के बनाए गए सामानो की मांग दुसरे प्रदेशों में भी होती है. बहरहाल स्वदेशी सामानों के लिए सीमा कुमारी की ओर से किए गए इस प्रयास की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है.

जमशेदपुर: दीपावली के कुछ ही दिन शेष रह गए हैं. दीपावली के दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा होती है और घरों को लोग दीये से सजाते हैं. वहीं, इसे लेकर शहर के बाजारों में तरह-तरह की मां लक्ष्मी और गणेश की प्रतिमाओं के साथ दीये भी बाजार में बिक रहे हैं. ऐसे में मानगो की रहने वाली सीमा कुमारी ने भी आकर्षक गणेश-लक्ष्मी की प्रतिमाएं तैयार की हैं जो पूरी तरह से गाय के गोबर के बने हैं. यही नहीं उन्होंने देवी-देवता के प्रतिमा के साथ शुभ-लाभ के निशान, दीये और धूपबत्ती भी बनाए हैं.

देखें पूरी खबर

ये भी पढ़ें-बिना जोड़ की बेजोड़ कड़ाही बनाते हैं हजारीबाग के कारीगर, पूजा के समय होता है इसका खास इस्तेमाल

सीमा ने बताया कि दीपावली के दिन लक्ष्मी और गणेश भगवान की नई मूर्ति लाकर पूजा पाठ करते हैं. घरों में दीये जलाए जाते हैं. परंपरा के मुताबिक गाय का गोबर शुद्ध माना जाता है. पूजा के दौरान इसकी जरूरत होती है. इस कारण सीमा ने गाय के गोबर से लक्ष्मी और गणेश की मूर्ति बनाई है.

मूर्ति बनाने की प्रक्रिया

सीमा ने बताया कि पहले गाय के गोबर को सुखाया जाता है, उसके बाद इसमें प्रीमिक्स पाउडर और गोंद मिलाते हैं. गीली मिट्टी की तरह इसे छानने के बाद इसे हाथों से गूंथा जाता है, उसके बाद लक्ष्मी और गणेश की मूर्ति के लिए बनाए गए सांचे में ढाल दिया जाता है. यह जैसे सूख जाती है उसे रंग दिया जाता है. दीये के लिए भी यही प्रक्रिया अपनाते हैं, लेकिन उसमें शुद्धि के लिए जटा मासी, पीली सरसों, विशेष पृष्ठ का छाल, एलोवेरा, मेथी के बीज, इमली के बीज को मिलाया जाता है. इसमें 40% ताजा गोबर और 60% कंडा इस्तेमाल किया जाता है.

इको फ्रेंडली और वातावरण के लिए अच्छा

सीमा का मानना है कि इस प्रकार के दीपक के जलने से घर में हवन जैसा वातावरण हो जाता है. इस कारण पटाखों की गैस को कम करने में सहायता मिलती है. यही नहीं दीप जलाने के बाद इन दीयों से जैविक खाद भी बनाए जा सकते हैं और घरों में रखे गमले और कीचन गार्डेन में उपयोग किया जा सकता है.

वहीं, सीमा के परिवार वाले भी इसके लिए सहयोग करते हैं. गाय का गोबर लाना हो या बाजारों से पेंट. सभी काम में परिवार वालों का सहयोग रहता है. यही नहीं इन सब सामानों को बनाने के समय परिवार का कोई न कोई सदस्य वहां साथ में जरूर बैठा रहता है. सीमा के बनाए गए सामानो की मांग दुसरे प्रदेशों में भी होती है. बहरहाल स्वदेशी सामानों के लिए सीमा कुमारी की ओर से किए गए इस प्रयास की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है.

For All Latest Updates

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.