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जमशेदपुर के निजी और सरकारी अस्पतालों में आप नहीं हैं सुरक्षित, ETV BHARAT की पड़ताल में मिली घोर कमी

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Published : Dec 21, 2020, 10:50 PM IST

जमशेदपुर के सरकारी और निजी अस्पतालों में सुरक्षा की भारी कमी है. सुरक्षा मानकों की अनदेखी, नियम-कानून ताक पर रखकर अस्पताल चलाए जा रहे हैं. जानिए पूरी खबर ईटीवी भारत की गहन पड़ताल के जरिए.

lack of private and government hospital security in jamshedpur
निजी और सरकारी अस्पताल सुरक्षा की कमी

जमशेदपुरः शहर के सरकारी और निजी अस्पतालों में आग लगी तो सैकड़ों मरीजों की जान जा सकती है. ईटीवी भारत की टीम ने शहरी क्षेत्र के अस्पतालों की पड़ताल की. जिसमें चौंकाने वाले खुलासे सामने आए हैं. कैसे बिना सुरक्षा मानक और बिना फायर सेफ्टी के इतने बड़े-बड़े अस्पताल में हजारों मरीज की जान दांव पर लगाई जा रही है.

ETV BHARAT की पड़तालः अस्पताल का हाल

MGM का हाल-बेहाल

कोल्हान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल महात्मा गांधी मेमोरियल अस्पताल (MGM) की स्थापना 1962 में की गई थी. इसका मकसद था ग्रामीण सुदूरवर्ती इलाकों के लोगों को बेहतर चिकित्सा मुहैया कराना. अस्पताल में मरीजों को बेहतर चिकित्सा भी उपलब्ध नहीं हो पा रही है. एमजीएम अस्पताल में अचानक आग लग जाए तो बड़ा हादसा हो सकता है.

खामियों से भरे शहर के अस्पताल

साकची स्थित एमजीएम अस्पताल, परसुडीह स्थित सदर अस्पताल, मानगो स्थित गुरुनानक अस्पताल, जेल मोड़ स्थित लाइफ लाइन अस्पताल, न्यू कोर्ट मोड़ स्थित एपेक्स अस्पताल. ईटीवी भारत की पड़ताल में अपना जा रही फायर सेफ्टी ना के बराबर है. यहां के अग्निशमन यंत्र एक्सपायरी हो चुके हैं. इन अस्पतालों के ओपीडी, आईसीयू वार्ड समेत अस्पताल में पर्याप्त मात्रा में अग्निशमन यंत्र नहीं मिले. कुछ अस्पतालों में अग्निशमन यंत्र तो मिले लेकिन वो एक्सपायर हो चुके हैं. परसुडीह के खासमहल स्थित सदर अस्पताल और निजी अस्पतालों में अचानक आग लगने पर सुरक्षा के कोई व्यापक प्रबंध नहीं किए गए हैं. इन अस्पतालों में अग्निशमन यंत्र सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं.

सरकारी अस्पतालों की हालत

कोल्हान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एमजीएम और सदर अस्पताल में ग्रामीण सुदूरवर्ती जगहों से दो हजार से ज्यादा मरीज प्रतिदिन चिकित्सा कराने आते हैं. यहां ईटीवी भारत की टीम को प्रसव, इमरजेंसी, ओपीडी वार्ड में अग्निशमन यंत्र मात्र दो दिखे. जिनकी रिफिलिंग भी खत्म हो चुकी है. आलम ये है कि पूरे अस्पताल कैंपस में रेत से भरी बाल्टी भी कहीं नहीं दिखी, जिससे आग लगने पर बुझाया जा सके.

निजी अस्पतालों की हालत

मानगो स्थित गुरुनानक अस्पताल, जेल मोड़ स्थित लाइफ लाइन अस्पताल, न्यू कोर्ट मोड़ स्थित एपेक्स अस्पतालों में भी अग्निशमन यंत्र नहीं लगे हैं. गुरुनानक अस्पताल चार मंजिला इमारत पर बनी हुई है. यहां पर प्रथम तल्ले में सिर्फ एक अग्निशमन यंत्र लगा हुआ है. जिसकी अवधि भी समाप्त हो चुकी है. आग लगने पर बजने वाला अलार्म भी खराब हो चुका है. अस्पतालों में आने वाले मरीज बताते हैं कि आग लगने पर भगदड़ के कारण भी कई लोगों की जान जा सकती है.

इसे भी पढ़ें- जमशेदपुर में सड़क पर पैदल चलना भी है जानलेवा, डराते हैं मौत के आंकड़े, नहीं हैं जेबरा क्रॉसिंग और फुट ओवर-ब्रिज की सुविधा


हाई कोर्ट ने मांगा था जवाब

झारखंड हाई कोर्ट ने एमजीएम अस्पताल प्रबंधन कमेटी से वर्ष 2017 में आग लगी तो इससे निपटने के लिए क्या व्यवस्था है. इस पर रिपोर्ट मांगी थी लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने कहा था. आधे से अधिक यंत्र खराब हो चुके हैं, इसे नए तरीके से बनाया जाएगा. इन दावों से उलट एमजीएम अस्पताल के अधीक्षक अलग ही बात बताते हैं. अस्पताल अधीक्षक डॉक्टर संजय कुमार कहते हैं कि 65 अग्निशमन यंत्र लगे हुए हैं. जबकि ईटीवी की टीम को चंद अग्निशमन यंत्र ही दिखे.

पहले भी हो चुकी है घटना

साकची स्थित एमजीएम अस्पताल में 15 दिसंबर 2018 को अस्पताल परिसर में आग लगने से अफरातफरी मची थी. वहीं 23 मार्च 2020 को बिस्टुपुर स्थित टाटा मुख्य अस्पताल के बच्चा वार्ड में आग लग चुकी है. हालांकि कोई बड़ी घटना नहीं घटी.

जमशेदपुरः शहर के सरकारी और निजी अस्पतालों में आग लगी तो सैकड़ों मरीजों की जान जा सकती है. ईटीवी भारत की टीम ने शहरी क्षेत्र के अस्पतालों की पड़ताल की. जिसमें चौंकाने वाले खुलासे सामने आए हैं. कैसे बिना सुरक्षा मानक और बिना फायर सेफ्टी के इतने बड़े-बड़े अस्पताल में हजारों मरीज की जान दांव पर लगाई जा रही है.

ETV BHARAT की पड़तालः अस्पताल का हाल

MGM का हाल-बेहाल

कोल्हान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल महात्मा गांधी मेमोरियल अस्पताल (MGM) की स्थापना 1962 में की गई थी. इसका मकसद था ग्रामीण सुदूरवर्ती इलाकों के लोगों को बेहतर चिकित्सा मुहैया कराना. अस्पताल में मरीजों को बेहतर चिकित्सा भी उपलब्ध नहीं हो पा रही है. एमजीएम अस्पताल में अचानक आग लग जाए तो बड़ा हादसा हो सकता है.

खामियों से भरे शहर के अस्पताल

साकची स्थित एमजीएम अस्पताल, परसुडीह स्थित सदर अस्पताल, मानगो स्थित गुरुनानक अस्पताल, जेल मोड़ स्थित लाइफ लाइन अस्पताल, न्यू कोर्ट मोड़ स्थित एपेक्स अस्पताल. ईटीवी भारत की पड़ताल में अपना जा रही फायर सेफ्टी ना के बराबर है. यहां के अग्निशमन यंत्र एक्सपायरी हो चुके हैं. इन अस्पतालों के ओपीडी, आईसीयू वार्ड समेत अस्पताल में पर्याप्त मात्रा में अग्निशमन यंत्र नहीं मिले. कुछ अस्पतालों में अग्निशमन यंत्र तो मिले लेकिन वो एक्सपायर हो चुके हैं. परसुडीह के खासमहल स्थित सदर अस्पताल और निजी अस्पतालों में अचानक आग लगने पर सुरक्षा के कोई व्यापक प्रबंध नहीं किए गए हैं. इन अस्पतालों में अग्निशमन यंत्र सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं.

सरकारी अस्पतालों की हालत

कोल्हान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एमजीएम और सदर अस्पताल में ग्रामीण सुदूरवर्ती जगहों से दो हजार से ज्यादा मरीज प्रतिदिन चिकित्सा कराने आते हैं. यहां ईटीवी भारत की टीम को प्रसव, इमरजेंसी, ओपीडी वार्ड में अग्निशमन यंत्र मात्र दो दिखे. जिनकी रिफिलिंग भी खत्म हो चुकी है. आलम ये है कि पूरे अस्पताल कैंपस में रेत से भरी बाल्टी भी कहीं नहीं दिखी, जिससे आग लगने पर बुझाया जा सके.

निजी अस्पतालों की हालत

मानगो स्थित गुरुनानक अस्पताल, जेल मोड़ स्थित लाइफ लाइन अस्पताल, न्यू कोर्ट मोड़ स्थित एपेक्स अस्पतालों में भी अग्निशमन यंत्र नहीं लगे हैं. गुरुनानक अस्पताल चार मंजिला इमारत पर बनी हुई है. यहां पर प्रथम तल्ले में सिर्फ एक अग्निशमन यंत्र लगा हुआ है. जिसकी अवधि भी समाप्त हो चुकी है. आग लगने पर बजने वाला अलार्म भी खराब हो चुका है. अस्पतालों में आने वाले मरीज बताते हैं कि आग लगने पर भगदड़ के कारण भी कई लोगों की जान जा सकती है.

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हाई कोर्ट ने मांगा था जवाब

झारखंड हाई कोर्ट ने एमजीएम अस्पताल प्रबंधन कमेटी से वर्ष 2017 में आग लगी तो इससे निपटने के लिए क्या व्यवस्था है. इस पर रिपोर्ट मांगी थी लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने कहा था. आधे से अधिक यंत्र खराब हो चुके हैं, इसे नए तरीके से बनाया जाएगा. इन दावों से उलट एमजीएम अस्पताल के अधीक्षक अलग ही बात बताते हैं. अस्पताल अधीक्षक डॉक्टर संजय कुमार कहते हैं कि 65 अग्निशमन यंत्र लगे हुए हैं. जबकि ईटीवी की टीम को चंद अग्निशमन यंत्र ही दिखे.

पहले भी हो चुकी है घटना

साकची स्थित एमजीएम अस्पताल में 15 दिसंबर 2018 को अस्पताल परिसर में आग लगने से अफरातफरी मची थी. वहीं 23 मार्च 2020 को बिस्टुपुर स्थित टाटा मुख्य अस्पताल के बच्चा वार्ड में आग लग चुकी है. हालांकि कोई बड़ी घटना नहीं घटी.

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