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शॉर्ट फिल्म 'टेली पौंड' ऑस्कर के लिए नामित, जमशेदपुर के कलाकारों ने किया है निर्देशित - जादूगोड़ा में टेली पौंड

शॉर्ट फिल्म टेली पौंड ऑस्कर के लिए नामित हुई है. यह फिल्म मानगो हिल ब्यू कॉलोनी के रहने वाले सैम तिवारी और अनुराग तिवारी ने निर्देशित की है. फिल्म जादूगोड़ा में रहने वाले लोगों के जीवन पर बनाई गई है.

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टेली पौंड ऑस्कर के लिए नामित
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Published : Nov 27, 2020, 2:25 PM IST

जमशेदपुर: शहर के मानगो हिल ब्यू कॉलोनी के रहने वाले सैम तिवारी और अनुराग तिवारी की निर्देशित फिल्म 'टेली पौंड' ऑस्कर फिल्म में नामित हुई है. टेली पोंड ने न्यूयॉर्क और देश में अब तक 50 प्राइज बटोरे हैं. यह शार्ट फिल्म जमशेदपुर से सटे जादूगोड़ा में रहने वाले लोगों के जीवन पर बनाई गई है.

अनुराग तिवारी बताते हैं कि उनके पिता जादूगोड़ा थाने में काम करते थे, उसी समय अनुराग न्यूयॉर्क से शहर लौटे और जादूगोड़ा में टेली पौंड के किनारे कुछ लोगों को देखा, वहां के लोगों के जीवन में कई तरह की चुनौतियों को भी उन्होंने देखा, जिनमें से कुछ लोग कई बीमारियों से लड़ रहे थे.

ऐसे लोगों को देखकर अनुराग की उम्मीद जगी और उन्होंने फिल्म बनाने का फैसला किया. उन्होंने एक शार्ट फिल्म के सहारे जादूगोड़ा की तस्वीर को देश और दुनिया के सामने दिखाया है. सैम और अनुराग दोनों भाइयों की प्रारंभिक शिक्षा शहर के राजेंद्र विद्यालय से हुई. आगे की पढ़ाई करने के लिए दोनों भाई न्यूयॉर्क चले गए.


जादूगोड़ा की कहानी
जमशेदपुर से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर बसे जादूगोड़ा आदिवासी बहुल इलाका है. यह पहाड़ों से घिरी एक छोटी से कॉलोनी है, जहां भारत की एकमात्र सक्रिय यूरेनियम की खान है. यूरेनियम निकालने के बाद बचे हुए कचरे को कारखाने के पास ही फेंक दिया जाता है. इस हजारों टन कचरे के पास बड़ी संख्या में लोग रहते हैं.

जादूगोड़ा में 1967 में यूरेनियम खनन शुरू हुआ, जिसके बाद यहां के लोगों पर कई तरह के खतरे मंडराने लगे थे. लोगों में बांझपन, कैंसर के अलावा भी कई खतरनाक बीमारियों के शुरु में जानकारी नहीं थी, लेकिन कुछ साल बीत जाने के बाद ग्रामीणों को रेडियोधर्मी के बारे में पता चला. खनन से निकलने वाले रेडियाएक्टिव किरणों ने ग्रामीणों के शरीर को अपाहिज कर दिया. खान से निकलने वाला कचरा गांव के दूसरी तरफ फैल जाता है, जहां से रेडियोएक्टिव तत्व हवाओं के सहारे लोगों तक आसानी से पहुंचता है.

इसे भी पढे़ं:- टैलेंट हंट से प्रतिभाओं को तराशेंगे तीरंदाज संघ: अर्जुन मुंडा


टेली पौंड की कहानी

जादूगोड़ा अपने यूरेनियम की खानों के लिए मशहूर है. इन खानों को यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड चलाती है. यहां करीब पांच हजार लोग काम करते हैं. भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग के मुताबिक 65 ग्राम यूरेनियम पाने के लिए फैक्ट्री को एक हजार किलो अयस्क खोदना पड़ता है, जिसके बाद यहां से निकले हुए कचरे को टेली पौंड के सहारे छोटी नदियों में मिला दिया जाता है, जिसे टेली पौंड फिल्म में दिखाया गया है.

जमशेदपुर: शहर के मानगो हिल ब्यू कॉलोनी के रहने वाले सैम तिवारी और अनुराग तिवारी की निर्देशित फिल्म 'टेली पौंड' ऑस्कर फिल्म में नामित हुई है. टेली पोंड ने न्यूयॉर्क और देश में अब तक 50 प्राइज बटोरे हैं. यह शार्ट फिल्म जमशेदपुर से सटे जादूगोड़ा में रहने वाले लोगों के जीवन पर बनाई गई है.

अनुराग तिवारी बताते हैं कि उनके पिता जादूगोड़ा थाने में काम करते थे, उसी समय अनुराग न्यूयॉर्क से शहर लौटे और जादूगोड़ा में टेली पौंड के किनारे कुछ लोगों को देखा, वहां के लोगों के जीवन में कई तरह की चुनौतियों को भी उन्होंने देखा, जिनमें से कुछ लोग कई बीमारियों से लड़ रहे थे.

ऐसे लोगों को देखकर अनुराग की उम्मीद जगी और उन्होंने फिल्म बनाने का फैसला किया. उन्होंने एक शार्ट फिल्म के सहारे जादूगोड़ा की तस्वीर को देश और दुनिया के सामने दिखाया है. सैम और अनुराग दोनों भाइयों की प्रारंभिक शिक्षा शहर के राजेंद्र विद्यालय से हुई. आगे की पढ़ाई करने के लिए दोनों भाई न्यूयॉर्क चले गए.


जादूगोड़ा की कहानी
जमशेदपुर से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर बसे जादूगोड़ा आदिवासी बहुल इलाका है. यह पहाड़ों से घिरी एक छोटी से कॉलोनी है, जहां भारत की एकमात्र सक्रिय यूरेनियम की खान है. यूरेनियम निकालने के बाद बचे हुए कचरे को कारखाने के पास ही फेंक दिया जाता है. इस हजारों टन कचरे के पास बड़ी संख्या में लोग रहते हैं.

जादूगोड़ा में 1967 में यूरेनियम खनन शुरू हुआ, जिसके बाद यहां के लोगों पर कई तरह के खतरे मंडराने लगे थे. लोगों में बांझपन, कैंसर के अलावा भी कई खतरनाक बीमारियों के शुरु में जानकारी नहीं थी, लेकिन कुछ साल बीत जाने के बाद ग्रामीणों को रेडियोधर्मी के बारे में पता चला. खनन से निकलने वाले रेडियाएक्टिव किरणों ने ग्रामीणों के शरीर को अपाहिज कर दिया. खान से निकलने वाला कचरा गांव के दूसरी तरफ फैल जाता है, जहां से रेडियोएक्टिव तत्व हवाओं के सहारे लोगों तक आसानी से पहुंचता है.

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टेली पौंड की कहानी

जादूगोड़ा अपने यूरेनियम की खानों के लिए मशहूर है. इन खानों को यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड चलाती है. यहां करीब पांच हजार लोग काम करते हैं. भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग के मुताबिक 65 ग्राम यूरेनियम पाने के लिए फैक्ट्री को एक हजार किलो अयस्क खोदना पड़ता है, जिसके बाद यहां से निकले हुए कचरे को टेली पौंड के सहारे छोटी नदियों में मिला दिया जाता है, जिसे टेली पौंड फिल्म में दिखाया गया है.

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