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पटल, भिंडी, लौकी भूलिए, बनाइए इस पत्ते की सब्जी, खाने में लगेगा स्वादिष्ट, पेट के साथ दिल के मरीजों के लिए भी लाभदायक - अरबी के पत्ते

अरबी पत्ते की सब्जी स्वाद के साथ ही सेहत के लिए भी काफी लाभकारी है. कोलेस्ट्रॉल को कम करने और आंखों की समस्या आदि बीमारियों में अरबी पत्ते के सेवन को काफी फायदेमंद माना जाता है. इस पत्ते को अरबी का पत्ता/ कच्चू का पत्ता/ एरकोच का पत्ता आदि कई नामों से जाना जाता है. इस अरबी पत्ते की सब्जी बनाने के कई तरीके हैं. आदिवासी या बंगाली समुदाय के लोग अपने-अपने तरीके से इसकी सब्जी बनाते हैं. लेकिन मैथिल समाज में इस पत्ते का अलग ही महत्व है.

recipe of taro leaves in Mithila tradition
Arabi leaves
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Sep 16, 2023, 5:52 PM IST

अरबी के पत्तों का महत्व और बनाने की विधि

जमशेदपुर: स्वाद और सेहत, इन दोनों का मेल कम ही होता है. स्वाद मिला तो सेहत नहीं, सेहत वाले खाने में स्वाद नहीं, लेकिन कुछ ऐसी स्वादिष्ट चीजें भी हैं. जो स्वाद के साथ सेहत का अनूठा उदाहरण पेश करती हैं. बाजार में जब आप हरी सब्जी खरीदने जाते हैं तो हरी सागों के बीच बड़े-बड़े सुंदर पत्तों का एक बंडल रखा नजर जरूर आता है.

इस पत्ते के बंडल को आदिवासी, बंगाली या मिथिला समाज के लोगों के अलावे कम ही लोग पहचानते होंगे. इस पत्ते को अरबी का पत्ता/कच्चू का पत्ता/एरकोच का पत्ता कहा जाता है. इसकी कीमत दस से पंद्रह रुपए प्रति बंडल होती है. इसके एक बंडल में चार व्यक्तियों का परिवार आराम से खा सकता है.

यह भी पढ़ें: लंबा स्वस्थ जीवन! ऐसी दिनचर्या और खाना आपको लंबे समय तक जिंदा रखेगा

अलग-अलग तरीका से बनती है इसकी सब्जी: आदिवासी या बंगाली समुदाय के लोग अपने-अपने तरीके से इसकी सब्जी बनाते हैं. लेकिन मैथिल समाज में इस पत्ते का अलग ही महत्व है. मैथिल समाज के लोग इस पत्ते की सब्जी को काफी शौक से खाते हैं. मैथिल समाज में इसे पत्ते को एरकोच का पत्ता कहा जाता है.

मैथिल समाज के लोग बिना लहसुन प्याज के इसे बनाते हैं: अरबी पत्ते की सब्जी बनाने से पहले पत्ते को तोड़कर धोया जाता है. पानी सूखने के बाद पत्ते की डंडी को तोड़कर अलग किया जाता है. इसके बाद बेसन का घोल तैयार किया जाता है. बेसन का घोल तैयार होने के बाद एक थाली या किसी प्लेट को पलट कर रख दिया जाता है. फिर एक-एक पत्ते में बेसन लगा कर उसे थाली या प्लेट पर रखा जाता है. पत्ता पर पत्ता रखकर एक मोटा परत बना दिया जाता है.

उसके बाद जब सारे पत्तों का परत बन जाता है, तो उसे रोल किया जाता है. रोल करने में काफी सावधानी बरती जाती है. क्योंकि रोल करने के दौरान पत्तों को बिखरने का काफी डर बना रहता है. रोल हो जाने के बाद फिर उसे छोटे-छोटे पीस में काटा जाता है. उसके बाद थोड़ी देर सूखने के बाद उसे सरसों के तेल में तला जाता है. तलने के बाद उसे ग्रेवी में डाल दिया जाता है.

ऐसे तैयार किया जाता है ग्रेवी: अरबी के पत्ते की ग्रेवी बनाने के लिए सरसों (पीला) को पीसा जाता है. उसके बाद कढ़ाई में उस सरसों को फ्राई किया जाता है. फ्राई करने के बाद पानी देकर कुछ देर तक उसे उबाला जाता है. इस दौरान स्वाद के अनुसार हींग के साथ-साथ हल्दी नमक भी डाला जाता है. यही नहीं इस पत्ते को खाने से मुंह में खुजली ना हो, उसके लिए खट्टा पदार्थ आमील (सूखे आम) या नींबू मिलाया जाता है. इसके बाद इसे उबाला जाता है. कुछ देर के बाद ग्रेवी तैयार हो जाता है. उसके बाद उस ग्रेवी में तले हुए एरकोच के पत्ते को डालकर कुछ देर के लिए चूल्हे पर छोड़ दिया जाता है. कुछ देर के बाद यह सब्जी तैयार हो जाती है.

recipe of taro leaves in Mithila tradition
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कई स्वास्थ्य संबंधी फायदे: अरबी के पत्ते के सेवन से स्वास्थ्य संबंधी कई बीमारियों से भी छुटकारा मिलता है. आंखों की समस्या, कोलेस्ट्रॉल की समस्या, एनीमिया के साथ ही पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याओं में अरबी पत्ता काफी लाभकारी होता है. इसमें विटामिन ए, फाइबर और आयरन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं.

अरबी के पत्तों का महत्व और बनाने की विधि

जमशेदपुर: स्वाद और सेहत, इन दोनों का मेल कम ही होता है. स्वाद मिला तो सेहत नहीं, सेहत वाले खाने में स्वाद नहीं, लेकिन कुछ ऐसी स्वादिष्ट चीजें भी हैं. जो स्वाद के साथ सेहत का अनूठा उदाहरण पेश करती हैं. बाजार में जब आप हरी सब्जी खरीदने जाते हैं तो हरी सागों के बीच बड़े-बड़े सुंदर पत्तों का एक बंडल रखा नजर जरूर आता है.

इस पत्ते के बंडल को आदिवासी, बंगाली या मिथिला समाज के लोगों के अलावे कम ही लोग पहचानते होंगे. इस पत्ते को अरबी का पत्ता/कच्चू का पत्ता/एरकोच का पत्ता कहा जाता है. इसकी कीमत दस से पंद्रह रुपए प्रति बंडल होती है. इसके एक बंडल में चार व्यक्तियों का परिवार आराम से खा सकता है.

यह भी पढ़ें: लंबा स्वस्थ जीवन! ऐसी दिनचर्या और खाना आपको लंबे समय तक जिंदा रखेगा

अलग-अलग तरीका से बनती है इसकी सब्जी: आदिवासी या बंगाली समुदाय के लोग अपने-अपने तरीके से इसकी सब्जी बनाते हैं. लेकिन मैथिल समाज में इस पत्ते का अलग ही महत्व है. मैथिल समाज के लोग इस पत्ते की सब्जी को काफी शौक से खाते हैं. मैथिल समाज में इसे पत्ते को एरकोच का पत्ता कहा जाता है.

मैथिल समाज के लोग बिना लहसुन प्याज के इसे बनाते हैं: अरबी पत्ते की सब्जी बनाने से पहले पत्ते को तोड़कर धोया जाता है. पानी सूखने के बाद पत्ते की डंडी को तोड़कर अलग किया जाता है. इसके बाद बेसन का घोल तैयार किया जाता है. बेसन का घोल तैयार होने के बाद एक थाली या किसी प्लेट को पलट कर रख दिया जाता है. फिर एक-एक पत्ते में बेसन लगा कर उसे थाली या प्लेट पर रखा जाता है. पत्ता पर पत्ता रखकर एक मोटा परत बना दिया जाता है.

उसके बाद जब सारे पत्तों का परत बन जाता है, तो उसे रोल किया जाता है. रोल करने में काफी सावधानी बरती जाती है. क्योंकि रोल करने के दौरान पत्तों को बिखरने का काफी डर बना रहता है. रोल हो जाने के बाद फिर उसे छोटे-छोटे पीस में काटा जाता है. उसके बाद थोड़ी देर सूखने के बाद उसे सरसों के तेल में तला जाता है. तलने के बाद उसे ग्रेवी में डाल दिया जाता है.

ऐसे तैयार किया जाता है ग्रेवी: अरबी के पत्ते की ग्रेवी बनाने के लिए सरसों (पीला) को पीसा जाता है. उसके बाद कढ़ाई में उस सरसों को फ्राई किया जाता है. फ्राई करने के बाद पानी देकर कुछ देर तक उसे उबाला जाता है. इस दौरान स्वाद के अनुसार हींग के साथ-साथ हल्दी नमक भी डाला जाता है. यही नहीं इस पत्ते को खाने से मुंह में खुजली ना हो, उसके लिए खट्टा पदार्थ आमील (सूखे आम) या नींबू मिलाया जाता है. इसके बाद इसे उबाला जाता है. कुछ देर के बाद ग्रेवी तैयार हो जाता है. उसके बाद उस ग्रेवी में तले हुए एरकोच के पत्ते को डालकर कुछ देर के लिए चूल्हे पर छोड़ दिया जाता है. कुछ देर के बाद यह सब्जी तैयार हो जाती है.

recipe of taro leaves in Mithila tradition
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कई स्वास्थ्य संबंधी फायदे: अरबी के पत्ते के सेवन से स्वास्थ्य संबंधी कई बीमारियों से भी छुटकारा मिलता है. आंखों की समस्या, कोलेस्ट्रॉल की समस्या, एनीमिया के साथ ही पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याओं में अरबी पत्ता काफी लाभकारी होता है. इसमें विटामिन ए, फाइबर और आयरन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं.

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