जमशेदपुरः शहर में रहने वाली महिलाएं आज समाज के हर क्षेत्र में कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं. कई ऐसी महिलाएं हैं जो झारखंड के मानचित्र के अलावा देश के मानचित्र में अपनी पहचान बनाई है. जबकि कुछ ऐसी भी महिलाएं हैं जो समाज में अपनी मेहनत और जुनून के साथ कुछ ऐसा कर दिखाया है जिसके कारण ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं उन्हें प्रेरणा मानती है.
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जमशेदपुर शहर से 5 किलोमीटर दूर ग्रामीण क्षेत्र जानीगोडा गांव में रहने वाली ग्लोरिया पूर्ति आज ग्रामीण क्षेत्र की सैकड़ों लड़कियों को खुद के साथ जोड़कर उन्हें सशक्त बनाया है. ग्लोरिया का बचपन गरीबी और अभाव में बीता. वो अपने भाई-बहनों को पढ़ाना चाहती थीं और खुद भी पढ़ाई करना चाहती थीं. यही वजह थी कि वह खुद को सशक्त बनाने के लिए घर से बाहर निकलकर गांव की लड़कियों को अपने साथ जोड़ना शुरु किया और एक समूह बनाकर संस्थाओं की मदद से प्रशिक्षण लेकर रोजगार के क्षेत्र में कदम बढ़ाया.
इस दौरान ग्लोरिया ने अगरबत्ती, मोमबत्ती बनाना, मशरूम की खेती और फूड प्रोसेसिंग का काम शुरू किया. उन्होंने अपने साथ लड़कियों को जोड़ा और धीरे-धीरे रोजगार के साथ-साथ अपने साथ जुड़ी लड़कियों को शिक्षित भी किया. ग्लोरिया बताती हैं कि सिर्फ एक दिन नहीं हर दिन महिलाओं का है उन्हें अपने अंदर की शक्ति को जगाने की जरूरत है.
ग्लोरिया के संपर्क में आने वाली सरजामदा गांव की रहने वाली बसंती बास्के आज जल सहिया का काम कर रही हैं. स्वच्छ भारत अभियान के तहत गांव में स्वच्छता के प्रति ग्रामीणों को जागरूक कर रही हैं. बसंती बताती हैं कि गांव का विकास नहीं हो रहा था. ग्लोरिया ॉसे मिलने के बाद मुझे मार्गदर्शन मिला और मैंने आज अपनी मंजिल को पाया है.
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कई ग्रामीण लड़कियों को घर से बाहर निकलने की इजाजत परिवार वालों ने नहीं दी, फिर भी ग्लोरिया पूर्ति को देखकर लड़कियों के दृढ़ संकल्प लिया और सशक्तिकरण का कारवां बढ़ता चला गया. इस कड़ी में साल 2000 में सेंटेंग तिग्गा ग्लोरिया के संपर्क में आईं और प्रशिक्षण प्राप्त कर तेजस्विनी परियोजना से जुड़ गई है. आज समाज की किशोरियों को शिक्षा और सामाजिक कार्यों के प्रति जागरूक कर रही हैं. सेंटेंग तिग्गा का कहना है कि जनप्रतिनिधि सिर्फ चुनाव के वक्त समाज गांव के विकास का आश्वासन देते है, फिर मुड़कर वापस नहीं आते. अब महिलाएं खुद की सशक्त बनाने के लिए कदम बढ़ा चुकी हैं.
बीकॉम की पढ़ाई करने के बाद घर की चारदिवारी में रहने वाली कुसुम ग्लोरिया पूर्ति की संपर्क में आकर चापाकल बनाने का प्रशिक्षण लिया. प्रखंड में प्रशिक्षण लेने के बाद कुसुम चापाकल बनाने की मिस्री बन गईं. हालांकि गांव परिवार के लोग उसे मिस्री बनने से सहमत नहीं थे. शुरुआती दौर में कुसुम अपने गांव की खराब चापाकल को बनाया और अबतक 70 से ज्यादा खराब चापाकल को बना चुकी हैं, जिससे लोगों की प्यास बुझ रही है. कुसुम कहती हैं कि आज उसे गर्व होता है कि उसके पिता को लोग उनकी बेटी के नाम से पहचानते हैं.