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नरक से बदतर है सबर जनजाति के लोगों की जिंदगी, कहा- अगर सांसद आते तो नहीं पीना पड़ता नाले का पानी

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Published : Mar 28, 2019, 7:44 PM IST

घाटशिला,पूर्वी सिंहभूम: झारखंड में सबर एक विलुप्त होती जनजाति है. इन लोगों पर सरकार का विशेष ध्यान होता है. लेकिन घाटशिला के रामचंद्रपुर सबर बस्ती के लोग अपने सांसद से नाराज हैं. उनका कहना है इन पांच सालों में हम पर किसी ने ध्यान नहीं दिया.

पानी ले जाती महिलाएं

दरअसल, घाटशिला प्रखंड मुख्यालय से महज चार-पांच किलोमीटर की दूरी पर बसाई गई रामचंद्रपुर सबर बस्ती के लोग अपने जनप्रतिनिधि से खासे नाराज हैं. उनका कहना है कि हमारे सांसद को पांच सालों में एक बार भी हमारी याद नहीं आई. अगर आती तो हमलोगों को नाले का पानी नहीं पीना पड़ता.

Forbidden tribe
पानी ले जाती महिलाएं

इस बस्ती को 1997 में सरकारी योजना के तहत बसाया गया था. शुरुआती दौर में यहां 24 सबर परिवार रहते थे. जो अब घटकर महज 10-12 रह गए हैं. प्रखंड मुख्यालय के करीब होने के बावजूद रामचंद्रपुर सबर टोला विकास से कोसों दूर है. वर्षों पहले बनाए गए घर जर्जर हो गए हैं. पेयजल के लिए चापाकल लगाए गए, लेकिन चापाकल खराब हो चुके हैं. सबर टोला के लोग नाले का पानी पेयजल के लिए कर रहे हैं. एक छोटे से गड्ढे में नहाते भी हैं और उसी का पानी पीने के लिए भी उपयोग किया जा रहा है. बस्ती के लोग जंगल की लकड़ी पर पूरी तरह निर्भर हैं. सबर बस्ती बनने के बाद आज तक इन्हें सरकारी सुविधाएं बेहतर ढंग से नहीं मिल पाई हैं.

इन्हें सांसद का नाम तक पता नहीं है, क्षेत्र के सांसद विद्युत वरण महतो के बस्ती पहुंचने के सवाल पर बताया कि अगर ये सांसद हैं तो आज तक हमारी बस्ती में क्यों नहीं आए. कहते हैं चुनाव आ गया है, अब बड़े-बड़े नेता कई वादे लेकर पहुंच सकते हैं.बस्ती में स्थापना के समय लगाए गए चापाकल अब खराब हो चुके हैं. गड्ढे का पानी पीने के कारण लोग अक्सर बीमार रहते हैं. इन बच्चों के लिए खराब चापाकल खेलने की वस्तु बन गई है. सबर बस्ती की फूलमणि सबर और तिलका सबर ने बताया पानी के लिए गड्ढे के पानी का उपयोग करते हैं.

दरअसल, घाटशिला प्रखंड मुख्यालय से महज चार-पांच किलोमीटर की दूरी पर बसाई गई रामचंद्रपुर सबर बस्ती के लोग अपने जनप्रतिनिधि से खासे नाराज हैं. उनका कहना है कि हमारे सांसद को पांच सालों में एक बार भी हमारी याद नहीं आई. अगर आती तो हमलोगों को नाले का पानी नहीं पीना पड़ता.

Forbidden tribe
पानी ले जाती महिलाएं

इस बस्ती को 1997 में सरकारी योजना के तहत बसाया गया था. शुरुआती दौर में यहां 24 सबर परिवार रहते थे. जो अब घटकर महज 10-12 रह गए हैं. प्रखंड मुख्यालय के करीब होने के बावजूद रामचंद्रपुर सबर टोला विकास से कोसों दूर है. वर्षों पहले बनाए गए घर जर्जर हो गए हैं. पेयजल के लिए चापाकल लगाए गए, लेकिन चापाकल खराब हो चुके हैं. सबर टोला के लोग नाले का पानी पेयजल के लिए कर रहे हैं. एक छोटे से गड्ढे में नहाते भी हैं और उसी का पानी पीने के लिए भी उपयोग किया जा रहा है. बस्ती के लोग जंगल की लकड़ी पर पूरी तरह निर्भर हैं. सबर बस्ती बनने के बाद आज तक इन्हें सरकारी सुविधाएं बेहतर ढंग से नहीं मिल पाई हैं.

इन्हें सांसद का नाम तक पता नहीं है, क्षेत्र के सांसद विद्युत वरण महतो के बस्ती पहुंचने के सवाल पर बताया कि अगर ये सांसद हैं तो आज तक हमारी बस्ती में क्यों नहीं आए. कहते हैं चुनाव आ गया है, अब बड़े-बड़े नेता कई वादे लेकर पहुंच सकते हैं.बस्ती में स्थापना के समय लगाए गए चापाकल अब खराब हो चुके हैं. गड्ढे का पानी पीने के कारण लोग अक्सर बीमार रहते हैं. इन बच्चों के लिए खराब चापाकल खेलने की वस्तु बन गई है. सबर बस्ती की फूलमणि सबर और तिलका सबर ने बताया पानी के लिए गड्ढे के पानी का उपयोग करते हैं.

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