ETV Bharat / state

जमशेदपुरः दिव्यांगों के हुनर से खूबसूरत हो रहे दीये, विदेशों में भी भारतीय परंपरा की बढ़ा रहे शान - जमशेदपुर में जीविका स्कूल

जमशेदपुर के सोनारी स्थित जीविका स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे दिव्यांग होते हुए भी लोगों को स्वावलंबी बनने की सीख दे रहे हैं. ये 30 बच्चे अपनी आजीविका के लिए संस्था की ओर से लाए गए दीये में रंग भरते हैं ताकि उसकी बिक्री से मिलने वाली रकम से उनका पालन पोषण हो सके.दिवाले के लिए सजाए गए इनके दीये और कलाकृतियों को देखकर लोग तारीफ कर रहे हैं.

Divyang makes Diya beautiful in Jamshedpur
जमशेदपुर में दिव्यांग दीयों को खूबसूरत बना रहे
author img

By

Published : Nov 4, 2020, 11:01 PM IST

जमशेदपुर: भले ही दिवाली पर मिट्टी के दीये जलाना हमारी परंपरा है पर इन दीयों को खूबसूरत बनाने का जज्बा देखना हो तो जीविका स्कूल चले आइए. यहां दीयों पर ब्रश से रंग भरते 30 दिव्यांगों को देखकर किसी का भी दिल वाह कह उठेगा. लक्ष्मी गणेश की मूर्ति हो, दीपावली के लिए दीये हों, या अन्य अवसरों पर दिए जाने वाले उपहार, सभी इनकी कारीगरी की मिसाल हैं. ये दीये अमेरिका, आस्ट्रेलिया समेत कई देशों में भारतीयों की दीपावली को रोशन करते हैं.

देखें स्पेशल खबर

संस्था में पढ़ते हैं 30 बच्चे

सोनारी की संस्था की सचिव सुखदीप कौर कहती हैं कि गणेश चतुर्थी हो या दीपावली दीये के बिना हमारी परंपरा अधूरी है. जीविका के बच्चों के सजाए दीये इतने आकर्षक हैं कि ये त्योहार में चार चांद लगा देंगे. इसके लिए बच्चे महीनों पहले से काम शुरू कर देते हैं. दस साल से ये दिव्यांग संस्था में पढ़ते हुए खुद अपनी आजीविका भी कमाते हैं. प्रदेश के तमाम गांवों के कुम्हारों से दीये और मिट्टी की मूर्तियां खरीदकर उनके घरों में खुशी भी लाते हैं. वे बताती हैं कि ये बच्चे समान्य दीयों को रंगों से कलाकृतियों को सजाते हैं. इसके लिए इन्हें हम प्रशिक्षित करते हैं.

ये भी पढ़ें-कोयले के पानी से बुझती है रामगढ़ के इस गांव की प्यास, जानिए क्या है ग्रामीणों की मजबूरी

चार रुपये से डेढ़ सौ तक में मिलेंगे आकर्षक सामान

संस्था के संचालनकर्ता अवतार सिंह कहते हैं कि बच्चों को हम इसके लिए ट्रेनिंग देते हैं ताकि वे आत्मनिर्भर बन सके. इसी से इनका पालन-पोषण भी होता है. बच्चों की कारीगरी से सुंदर बने दीये, मूर्तियां और सजावट के सामान महज चार रुपये से डेढ़ सौ रुपये तक में मिल जाएंगे. इनके बनाए पेपर बैग, कपड़े के बैग, शगुन बैग के तो लोग दीवाने हैं. बहुत से स्कूल, दूसरे देशों के परिचित खरीदारी कर इनकी मदद भी करते हैं अपना घर भी खूबसूरत बनाते हैं.उन्होंने बताया कि इसके लिए वे जमशेदपुर के ग्रामीण क्षेत्रों से ऑर्डर देकर दीये मंगाते हैं. कुछ समान कोलकाता से भी मंगाते हैं. हालांकि इस साल ये सामान नहीं आ पाए. इससे काफी दिक्कत आ रहीं हैं.

पेपर बैग, कपड़े के बैग भी देखने लायक

विदेशों में रहने वाले कई परिचित बच्चों की मदद करने के मकसद से इन दीयों को मंगाते हैं. शहर के स्कूलों में भी इन बच्चों के सजाई कलाकृतियां मंगाई जाती हैं. हालांकि लॉकडाउन की वजह से स्कूल बंद होने के कारण इस बार इनके बनाए गए दीये स्कूल नहीं ले जा सके. ये बच्चे पेपर बैग, कपड़े के बैग, शगुन बैग भी बनाते हैं.

ये भी पढ़ें-कोरोना में कुम्हारों की उम्मीद, दीये लाएंगे खुशहाली की दीपावली

त्योहार पर किसी की मदद से नेक कोई काम नहीं

वहीं इन बच्चों के बनाए दीयों को खरीदने आईं नीरा नाडवणी का कहना है कि दिव्यांगों के बनाए दीये खरीदकर आप इनकी मदद कर सकते हैं. इससे आपका घर तो सुंदर बनेगा ही, त्योहार पर पारंपरिक खूबसूरत दीये जला सकेंगे. दिव्यांगों की मदद भी कर सकेंगे, जो त्योहार के दिन सबसे नेक काम होगा. उनका कहना है कि वो अपने लिए तो दीये यहां से खरीदती ही हैं. दूसरों को भी यहां से दीये खरीदने के लिए प्रेरित करती हैं.

जमशेदपुर: भले ही दिवाली पर मिट्टी के दीये जलाना हमारी परंपरा है पर इन दीयों को खूबसूरत बनाने का जज्बा देखना हो तो जीविका स्कूल चले आइए. यहां दीयों पर ब्रश से रंग भरते 30 दिव्यांगों को देखकर किसी का भी दिल वाह कह उठेगा. लक्ष्मी गणेश की मूर्ति हो, दीपावली के लिए दीये हों, या अन्य अवसरों पर दिए जाने वाले उपहार, सभी इनकी कारीगरी की मिसाल हैं. ये दीये अमेरिका, आस्ट्रेलिया समेत कई देशों में भारतीयों की दीपावली को रोशन करते हैं.

देखें स्पेशल खबर

संस्था में पढ़ते हैं 30 बच्चे

सोनारी की संस्था की सचिव सुखदीप कौर कहती हैं कि गणेश चतुर्थी हो या दीपावली दीये के बिना हमारी परंपरा अधूरी है. जीविका के बच्चों के सजाए दीये इतने आकर्षक हैं कि ये त्योहार में चार चांद लगा देंगे. इसके लिए बच्चे महीनों पहले से काम शुरू कर देते हैं. दस साल से ये दिव्यांग संस्था में पढ़ते हुए खुद अपनी आजीविका भी कमाते हैं. प्रदेश के तमाम गांवों के कुम्हारों से दीये और मिट्टी की मूर्तियां खरीदकर उनके घरों में खुशी भी लाते हैं. वे बताती हैं कि ये बच्चे समान्य दीयों को रंगों से कलाकृतियों को सजाते हैं. इसके लिए इन्हें हम प्रशिक्षित करते हैं.

ये भी पढ़ें-कोयले के पानी से बुझती है रामगढ़ के इस गांव की प्यास, जानिए क्या है ग्रामीणों की मजबूरी

चार रुपये से डेढ़ सौ तक में मिलेंगे आकर्षक सामान

संस्था के संचालनकर्ता अवतार सिंह कहते हैं कि बच्चों को हम इसके लिए ट्रेनिंग देते हैं ताकि वे आत्मनिर्भर बन सके. इसी से इनका पालन-पोषण भी होता है. बच्चों की कारीगरी से सुंदर बने दीये, मूर्तियां और सजावट के सामान महज चार रुपये से डेढ़ सौ रुपये तक में मिल जाएंगे. इनके बनाए पेपर बैग, कपड़े के बैग, शगुन बैग के तो लोग दीवाने हैं. बहुत से स्कूल, दूसरे देशों के परिचित खरीदारी कर इनकी मदद भी करते हैं अपना घर भी खूबसूरत बनाते हैं.उन्होंने बताया कि इसके लिए वे जमशेदपुर के ग्रामीण क्षेत्रों से ऑर्डर देकर दीये मंगाते हैं. कुछ समान कोलकाता से भी मंगाते हैं. हालांकि इस साल ये सामान नहीं आ पाए. इससे काफी दिक्कत आ रहीं हैं.

पेपर बैग, कपड़े के बैग भी देखने लायक

विदेशों में रहने वाले कई परिचित बच्चों की मदद करने के मकसद से इन दीयों को मंगाते हैं. शहर के स्कूलों में भी इन बच्चों के सजाई कलाकृतियां मंगाई जाती हैं. हालांकि लॉकडाउन की वजह से स्कूल बंद होने के कारण इस बार इनके बनाए गए दीये स्कूल नहीं ले जा सके. ये बच्चे पेपर बैग, कपड़े के बैग, शगुन बैग भी बनाते हैं.

ये भी पढ़ें-कोरोना में कुम्हारों की उम्मीद, दीये लाएंगे खुशहाली की दीपावली

त्योहार पर किसी की मदद से नेक कोई काम नहीं

वहीं इन बच्चों के बनाए दीयों को खरीदने आईं नीरा नाडवणी का कहना है कि दिव्यांगों के बनाए दीये खरीदकर आप इनकी मदद कर सकते हैं. इससे आपका घर तो सुंदर बनेगा ही, त्योहार पर पारंपरिक खूबसूरत दीये जला सकेंगे. दिव्यांगों की मदद भी कर सकेंगे, जो त्योहार के दिन सबसे नेक काम होगा. उनका कहना है कि वो अपने लिए तो दीये यहां से खरीदती ही हैं. दूसरों को भी यहां से दीये खरीदने के लिए प्रेरित करती हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.