जमशेदपुर: शहर के बिष्टुपुर स्थित होटल बुलेवर्ड द्वितीय विश्व युद्ध की अनसुनी कहानी को बयां करता है. होटल में द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ब्रिटिश सैनिकों के साथ अमेरिकी वायु सेना के सैनिक ठहरे थे.
6 महीनों में बनाया गया होटल
होटल के संस्थापक पीडी डिकोस्टा को 1939 में टाटा स्टील कंपनी ने विदेशी मेहमानों को ठहराने के लिए 1939 में एक होटल बनाने का आदेश पीडी डिकोस्टा को मिला था, लेकिन बहुत ही कम समय में इसे पूरा करना भी एक चुनौती थी. जिसके बाद डिकोस्टा परिवार ने कोलकाता के होटल के सामग्री से अपने ईट भट्टा के मजदूरों की सहायता से मात्र 6 महीने में ही होटल बनाकर तैयार कर दिया था.
ब्रिटिश एयर फोर्स का बेस कैंप था
1939 में टाटा स्टील के विदेशी मेहमानों को ठहराने के लिए स्थापित बुलेवर्ड होटल द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश एयर फोर्स के अधिकारियों का बेस हुआ करता था. यहीं से वे 45 मिनट की दूरी पर चाकुलिया में स्थित द्वितीय विश्व युद्ध के एयर बेस को ऑपरेट किया करते थे.
एक रुपये में उपलब्ध कराया भोजन
होटल के 28 कमरों में ब्रिटिश सेना के अफसर ठहरे थे और प्रति दिन का किराया खाने के साथ एक रुपया 12 आना और बिना खाना के एक रुपये दिया करते थे. आज भी यह होटल शहर में सेवाएं दे रहा है.
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डेढ़ साल तक होटल में ठहरे थे सेना के अधिकारी
सेना के अधिकारी लगभग डेढ़ साल तक होटल में ठहरे थे. ब्रिटिश सेना के अधिकारियों के लिए उस जमाने की अनेकों कारें भी लगाई गई थीं और इन्हीं कारों से अधिकारी निर्माणाधीन एयरपोर्ट तक आना-जाना करते थे.
परिवार जिसने इतिहास में बनाई अपनी जगह
डिकोस्टा परिवार मूलतः गोवा के मूल निवासी हैं. रोनाल्ड डिकोस्टा के दादा पी. डी. डिकोस्टा टाटा दानापुर से जमशेदपुर में सिविल मैकेनिकल वर्क का काम करते थे. उनके पिता का जन्म नागपुर में हुआ था. जहां उन्होंने स्कूली शिक्षा भी प्राप्त की थी. इसके बाद उनके पिता ने कोलकाता से इंजीनियरिंग की तालीम हासिल की थी. जॉन पढ़ाई खत्म करने के बाद जमशेदपुर में उन्होंने अपना उद्योग स्थापित किया और अपना ईट भट्टा का निर्माण किया. जिसमें तकरीबन तीन हजार मजदूर कार्य करते थे.
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान निभायी अहम भूमिका
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जमशेदपुर में रहने वाले इस परिवार की भूमिका अहम थी. पी.डी डिकोस्टा युद्ध के दौरान आग जलाकर जमशेदपुर वासियों को सतर्क किया करते थें. आग जलाने के दरमियान शहर की लाइन पूरी तरह से बंद हो जाया करती थी. जिसके बाद शहर से दूर दलमा घाटी की लाइट को जलाया जाता था. ताकि हमलावर दलमा घाटी को ही जमशेदपुर शहर माने और भटक जायें.