ETV Bharat / state

गौरवशाली इतिहास रहा है भूमिज आदिवासियों का, सूर्य के हैं उपासक

आदिवासी हमेशा कौतुहल के विषय रहे हैं, उनकी संस्कृति-सभ्यता, इतिहास में हर किसी की दिलचस्पी रही है. झारखंड में तो आदिवासी सभ्यता का लंबा इतिहास देखने को मिलता है यहां आज भी कुल 32 जनजातियां रहती हैं. लेकिन इन 32 जनजातियों में लोग संथाल, उरांव, खड़िया आदि से तो वाकिफ हैं पर सिंहभूम में रहने वाली प्रमुख जनजाति भूमिज को बहुत कम जान पाए हैं. इस आदिवासी दिवस इस भूमिज जनजाति की सभ्यता-संस्कृति से आपको रूबरू कराने की कोशिश है हमारा यह विशेष आलेख-

आज भी अपनी परंपराओं को सहेजे जी रहे हैं भूमिज जनजाति के लोग
author img

By

Published : Aug 8, 2019, 11:36 PM IST

पुर्वी सिंहभुम: जिले में मुख्य रुप से निवास करने वाले भूमिज आदिवासी सिंगबोंगा यानी सूर्य के उपासक होते हैं. झारखंड के अलावा ये ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम में सघन रूप से और त्रिपुरा, बिहार, अरुणाचल प्रदेश, अंडमान निकोबार, दिल्ली, महाराष्ट्र और बांग्लादेश में बहुत कम संख्या में निवास करते हैं. 2001 की जनगणना के अनुसार अकेले झारखंड में इनकी आबादी करीब 2 लाख है, जबकि पूरे देश में इनकी आबादी 11 लाख है.

देखें यह स्पेशल स्टोरी


प्रकृति प्रेम की अनूठी मिसाल
भूमिज शब्द का अर्थ है भूमि से जुड़ा. कहते हैं इनका यह नाम इनके बसने के तरीके के कारण पड़ा है. इनके बसने का तरीका यह था कि एक दिशा में तीर छोड़ा दिया जाता, फिर कुछ ग्रामीण उसे ढूंढने निकलते, अगर वह तीर जमीन पर पड़ा मिलता तो भूमिज वहां नहीं बसते. ये लोग वहीं बस्ते थे जहां पर तीर किसी पेड़ से चुभा मिले. इनके मुताबिक इस तरह प्रकृति यह संकेत देती है कि उन्हें कहां बसना चाहिए.


तीर-धनुष से अनोखा है रिश्ता
पुराने समय में यह जनजाति पशु-पक्षियों का शिकार कर जीवनयापन करते थे. ऐसे में तीर-धनुष से इनका रिश्ता अनोखा माना जाता है. वर्तमान में भी ये लोग अपने घरों में तीर-धनुष रखते हैं. इतना ही नहीं किसी बच्चे के जन्म लेने के बाद ये नाड़ी तीर से ही काटते हैं.


कैसी है इनकी सभ्यता-संस्कृति
इतिहासकारों का कहना है कि भूमिज समाज की सभ्यता सिंधु घाटी के सभ्यता से पहले की है. अन्य जनजातियों की तरह भूमिज जनजाति के लोग भी प्रकृति के पुजारी होते हैं. इनकी संस्कृति-सभ्यता मुंडा, उरांव आदि जनजातियों से काफी मिलती है हालांकि इनपर हिंदू धर्म का प्रभाव विशेष रूप से है.


घर के सामने गाड़ते हैं पत्थर
भूमिज जनजाति के लोग अपने पूर्वजों की अस्थियों को घर के सामने दरवाजे पर गाड़ते हैं. उसे सासिंदरी कहा जाता है. इसके अलावा एक खड़े पत्थर पर मृतक के बारे में जानकारी लिखी जाती है. जिसे निशानदिरी कहा जाता है. मकर सक्रांति के दिन चादर ओढ़ाकर, इसकी पूजा भी की जाती है.


इनका सबसे महत्वपूर्ण स्थल है अखड़ा और जाहेरथान
भूमिज जनजाति के लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्थल होता है अखरा और जाहेरथान अखरा यानि सामुदायिक मिलन स्थल और जाहेरथान यानी पूजा स्थल. ऐसे जगहों पर ही सब लोग एकत्र होकर सामुदायिक पूजा अथवा समाज के लिए महत्वपूर्ण फैसले लेते हैं.


ऐसी होती है इनकी वेशभुषा
सफेद पर लाल रंग की पट्टी की साड़ी भूमिज महिलाओं की पारंपरिक साड़ी है. जिसे भूमिज जनजाति की महिलाएं किसी भी विशेष अवसर पर पहनती हैं. पूजा हो या शादी-विवाह ये एकदम सादे वेशभुषा में ही सजकर तैयार होती हैं. वहीं मादर पत्ता इनका विशेष श्रृंगार है. जिसे ये बालों में इसलिए भी लगाती है क्योंकि इनका मानना है इससे किसी की नजर नहीं लगती.

bhumij tribe in jharkhand
सफेद पर लाल रंग की पट्टी की साड़ी भूमिज महिलाओं की वेशभुषा


घर के बाहर बनाती हैं अल्पना
चित्र या भित्ती चित्र जिसकी परंपरा मोहनजोदड़ो-सिंधु सभ्यता से जुड़ी है, वह कला इनमें आज भी जिंदा है. भूमिज औरतें अभी भी अलग-अलग मौसम में अलग अल्पनाएं बनाकर प्रकृति प्रेम का विशेष प्रदर्शन करती हैं.


लड़ी है कई लड़ाईयां
इतिहास के पन्नों में भूमिज जनजाति के लोगों ने अपने हक के लिए कई बार आवाज उठाई है. मोहनजोदड़ो व हड़प्पा के जमाने में भी भूमिज जमीन को बचाने के लिए वे संघर्ष करते रहते थे. इन्होंने अंग्रेजों से भी कई बार लोहा लिया है. 1769 में चुआड़ विद्रोह, पलामू में सरदारी विद्रोह तथा 1798 से लेकर 1805 तक ये लगातार अपने हक के लिए आवाज उठाते रहे.


विपन्नता है हावी
इतने गौरवशाली इतिहास को संजोये ये भूमिज जनजाति आज विपन्नता में जीने को मजबूर हैं. विकास की रोशनी से कोसों दूर ये लोग आज भी जंगलों में खपड़े का घर बनाकर पारंपरिक तरीके से अपना जीवन-यापन करते हैं.

bhumij tribe in jharkhand
जंगलों में खपड़े का घर बनाकर रहते हैं भूमिज जनजाति के लोग
यह जनजाति आज भी अपनी भूमि से जुड़े रहकर अपनी सभ्यता-संस्कृति की हिफाजत में लगे हैं. लेकिन जरूरत है कि सरकार, प्रशासन, आम लोगों को इनके संरक्षण के लिए आगे आना होगा.

पुर्वी सिंहभुम: जिले में मुख्य रुप से निवास करने वाले भूमिज आदिवासी सिंगबोंगा यानी सूर्य के उपासक होते हैं. झारखंड के अलावा ये ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम में सघन रूप से और त्रिपुरा, बिहार, अरुणाचल प्रदेश, अंडमान निकोबार, दिल्ली, महाराष्ट्र और बांग्लादेश में बहुत कम संख्या में निवास करते हैं. 2001 की जनगणना के अनुसार अकेले झारखंड में इनकी आबादी करीब 2 लाख है, जबकि पूरे देश में इनकी आबादी 11 लाख है.

देखें यह स्पेशल स्टोरी


प्रकृति प्रेम की अनूठी मिसाल
भूमिज शब्द का अर्थ है भूमि से जुड़ा. कहते हैं इनका यह नाम इनके बसने के तरीके के कारण पड़ा है. इनके बसने का तरीका यह था कि एक दिशा में तीर छोड़ा दिया जाता, फिर कुछ ग्रामीण उसे ढूंढने निकलते, अगर वह तीर जमीन पर पड़ा मिलता तो भूमिज वहां नहीं बसते. ये लोग वहीं बस्ते थे जहां पर तीर किसी पेड़ से चुभा मिले. इनके मुताबिक इस तरह प्रकृति यह संकेत देती है कि उन्हें कहां बसना चाहिए.


तीर-धनुष से अनोखा है रिश्ता
पुराने समय में यह जनजाति पशु-पक्षियों का शिकार कर जीवनयापन करते थे. ऐसे में तीर-धनुष से इनका रिश्ता अनोखा माना जाता है. वर्तमान में भी ये लोग अपने घरों में तीर-धनुष रखते हैं. इतना ही नहीं किसी बच्चे के जन्म लेने के बाद ये नाड़ी तीर से ही काटते हैं.


कैसी है इनकी सभ्यता-संस्कृति
इतिहासकारों का कहना है कि भूमिज समाज की सभ्यता सिंधु घाटी के सभ्यता से पहले की है. अन्य जनजातियों की तरह भूमिज जनजाति के लोग भी प्रकृति के पुजारी होते हैं. इनकी संस्कृति-सभ्यता मुंडा, उरांव आदि जनजातियों से काफी मिलती है हालांकि इनपर हिंदू धर्म का प्रभाव विशेष रूप से है.


घर के सामने गाड़ते हैं पत्थर
भूमिज जनजाति के लोग अपने पूर्वजों की अस्थियों को घर के सामने दरवाजे पर गाड़ते हैं. उसे सासिंदरी कहा जाता है. इसके अलावा एक खड़े पत्थर पर मृतक के बारे में जानकारी लिखी जाती है. जिसे निशानदिरी कहा जाता है. मकर सक्रांति के दिन चादर ओढ़ाकर, इसकी पूजा भी की जाती है.


इनका सबसे महत्वपूर्ण स्थल है अखड़ा और जाहेरथान
भूमिज जनजाति के लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्थल होता है अखरा और जाहेरथान अखरा यानि सामुदायिक मिलन स्थल और जाहेरथान यानी पूजा स्थल. ऐसे जगहों पर ही सब लोग एकत्र होकर सामुदायिक पूजा अथवा समाज के लिए महत्वपूर्ण फैसले लेते हैं.


ऐसी होती है इनकी वेशभुषा
सफेद पर लाल रंग की पट्टी की साड़ी भूमिज महिलाओं की पारंपरिक साड़ी है. जिसे भूमिज जनजाति की महिलाएं किसी भी विशेष अवसर पर पहनती हैं. पूजा हो या शादी-विवाह ये एकदम सादे वेशभुषा में ही सजकर तैयार होती हैं. वहीं मादर पत्ता इनका विशेष श्रृंगार है. जिसे ये बालों में इसलिए भी लगाती है क्योंकि इनका मानना है इससे किसी की नजर नहीं लगती.

bhumij tribe in jharkhand
सफेद पर लाल रंग की पट्टी की साड़ी भूमिज महिलाओं की वेशभुषा


घर के बाहर बनाती हैं अल्पना
चित्र या भित्ती चित्र जिसकी परंपरा मोहनजोदड़ो-सिंधु सभ्यता से जुड़ी है, वह कला इनमें आज भी जिंदा है. भूमिज औरतें अभी भी अलग-अलग मौसम में अलग अल्पनाएं बनाकर प्रकृति प्रेम का विशेष प्रदर्शन करती हैं.


लड़ी है कई लड़ाईयां
इतिहास के पन्नों में भूमिज जनजाति के लोगों ने अपने हक के लिए कई बार आवाज उठाई है. मोहनजोदड़ो व हड़प्पा के जमाने में भी भूमिज जमीन को बचाने के लिए वे संघर्ष करते रहते थे. इन्होंने अंग्रेजों से भी कई बार लोहा लिया है. 1769 में चुआड़ विद्रोह, पलामू में सरदारी विद्रोह तथा 1798 से लेकर 1805 तक ये लगातार अपने हक के लिए आवाज उठाते रहे.


विपन्नता है हावी
इतने गौरवशाली इतिहास को संजोये ये भूमिज जनजाति आज विपन्नता में जीने को मजबूर हैं. विकास की रोशनी से कोसों दूर ये लोग आज भी जंगलों में खपड़े का घर बनाकर पारंपरिक तरीके से अपना जीवन-यापन करते हैं.

bhumij tribe in jharkhand
जंगलों में खपड़े का घर बनाकर रहते हैं भूमिज जनजाति के लोग
यह जनजाति आज भी अपनी भूमि से जुड़े रहकर अपनी सभ्यता-संस्कृति की हिफाजत में लगे हैं. लेकिन जरूरत है कि सरकार, प्रशासन, आम लोगों को इनके संरक्षण के लिए आगे आना होगा.
Intro:एंकर--पूर्वी सिंहभूम के हाता में रहने वाली एक प्रमुख जनजाति भूमिज की चर्चा कम होती है.भूमिज आदिवासी सिंगबोंगा यानी सूर्य के उपासक होते हैं.इनके समाज के लोग असम,पश्चिम बंगाल,पूर्वी सिंहभूम समेत अन्य जगहों पर निवास करते हैं.भूमिज समाज की सभ्यता सिंधु घाटी के सभ्यता से पहले की है।2001 की जनगणना के अनुसार इनकी आबादी करीब दो लाख है.भूमिज जनजाति के लोग अपने पूर्वजों की अस्थियों को घर के सामने दरवाजे पर गाड़ते हैं.पेश है यह रिपोर्ट।


Body:वीओ1--यह तस्वीर है भूमिज जनजाति की जहाँ खड़े पत्थर पर मृतक के बारे में जानकारी लिखी रहती है.जिसे निशनदिरी कहा जाता है.भूमिज अपने पूर्वज के अस्थियों को घर के आंगन या बाहर में गाड़ते हैं.इतना ही नहीं मकर सक्रांति के दिन पत्थर पर चादर तथा उनके नाम अंकित किए जाते हैं.
बाइट--शम्भू सरदार(भूमिज जनजाति व्यक्ति)
वीओ2--भूमिज शब्द का अर्थ है भूमि से जुड़ा.इनके बसने का तरीका यह था कि एक दिशा में तीर छोड़ा जाता और फिर उसे कुछ ग्रामीण ढूंढने निकलते अगर वह तीर जमीन पर पड़ा मिलता तो भूमिज वहाँ नहीं बस्ते थें.कहा जाता है कि ये लोग वहीं बस्ते थें जहाँ पर तीर किसी पेड़ से चुभा मिले. इनके मुताबिक प्रकृति ने यह संकेत दिया है यहाँ बस जाओ और ये लोग वहीं बस जाते थे.पुरातन समय में पसु, पक्षियों का शिकार कर जीवन यापन करते थें.वर्तमान में भी ये लोग अपने घरों में तीर-धनुष रखते हैं.किसी बच्चे के जन्म लेने के बाद नाड़ी तीर से ही काटी जाता है.
बाइट--कृष्णा सरदार(भूमिज जनजाति व्यक्ति)
वीओ3--भूमिज जनजाति के लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्थल होता है अखड़ा और जाहेरथान अखड़ा यानी सामुदायिक मिलन स्थल और जाहेरथान यानी पूजा स्थल जहाँ इनके लोगों का मिलान होता है.इनकी पारंपरिक साड़ी लाल रंग-व सफेद होती है. पूजा के समय ये पारंपरिक साड़ी पहनने का रीति-रिवाज है.
भूमिज औरतें अभी भी अलग-अलग मौसम में अलग अल्पनाएं बनाती हैं.भूमिज औरतें कहीं बाहर जाने पर मादर पत्ता अपने बालों पर लगाती हैं.इनका मानना है इससे किसी भी प्रकार का नज़र दोष नहीं होता है.
बाइट--सावित्री सरदार(भूमिज जनजाति महिला)





Conclusion:इतिहास के पन्नों में भूमिज जनजाति के लोगों ने अंग्रेजों से कई बार लोहा लिया है.मोहनजोदड़ो व हड़प्पा के जमाने में भी भूमिज जमीन को बचाने के लिए संघर्ष करते रहते थे.ये लोग आज भी जंगलों में खपड़े का घर बनाकर रहते हैं.
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.