जमशेदपुर: झारखंड की राजधानी रांची समेत पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार को जमशेदपुर और महुलिया से जोडने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग-33 इन दिनों 'मौत के सड़क' नाम से कुख्यात होती जा रहा है. 160 किलोमीटर में फैली इस सड़क में दुर्घटनाओं से लोगों की मौत होना आम बात हो गयी है. पिछली सरकार ने इस राजमार्ग को दुरुस्त करने के लिए बड़े-बड़े दावे किये थे, लेकिन इसके बाद भी सड़क की स्थिति जस की तस बनी हुई है.
यहां हर कदम में होते हैं हादसे
जानकारी के अनुसार वर्ष 2015 में कांड्रा के पास तीन लोगों की जान चली गयी थी. 2017 में दलमा वन्य अभ्यारण के पास टाटा मैजिक से टकराकर पांच व्यक्तियों की मौत हो गया थी. राजधानी रांची से सटे इलाके, तमाड़, बुंडू, कांड्रा, चौका के पास राष्ट्रीय राजमार्ग की सड़कों की स्थिति जर्जर हो चुकी है. लोगों का कहना है कि सरकारें सत्ता में आई और गई, लेकिन सड़क की स्थिति नहीं बदली. जिसके कारण आवागमन में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
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वादे पर खरी नहीं उतरी सरकार
स्थानीय लोगों का कहना है कि जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, तब केंद्रीय पथ परिवहन मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस ने सड़क को सुदूर करने की बात कही थी. वर्ष 2011 में अर्जुन मुंडा ने भी सड़क बनाने की बात कही थी. वर्ष 2015 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार राज्य में और केंद्र में थी, तब भी इस सड़क के हाल में कोई बदलाव नहीं आया. इसका निर्माण कार्य अब तक अधूरा है और लोगों को आवागमन में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
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निर्माण कार्य है अधूरा
लोगों ने कहा कि तय समय सीमा के अनुसार जून 2015 तक इसका निर्माण कार्य पूरा हो जाना था, पांच वर्ष बीत जाने के बाद भी सड़क का निर्माण कार्य अधूरा पड़ा है. निजी कंपनी मधुकॉन ने निर्माण कार्य पूरा करने का आश्वासन दिया था. लेकिन इसे अब तक नहीं बनाया गया है. धूल की चादर ओढ़े इस सड़क पर राहगीरों का चलना मुश्किल हो गया है.