दुमका: हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (World Mental Health Day 2022) के रूप में मनाया जाता है. आज की भागदौड़ और तनावपूर्ण जिंदगी में लोग मानसिक रोग के शिकार हो जा रहे हैं. कभी-कभी परिस्थितियां इतनी बिगड़ जाती है कि इलाज जरूरी हो जाता है. दुमका का मानसिक अस्पताल मनोरोगियों के लिए काफी बेहतर साबित हो रहा है लेकिन, इस बीच अस्पताल सुविधाओं की कमी से जूझ रहा है.
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दुमका में संथाल परगना का एकमात्र मानसिक अस्पताल: संथाल परगना प्रमंडल के मुख्यालय दुमका में जिला मानसिक स्वास्थ्य केंद्र (Dumka Mental Health Center) स्थापित है. यहां प्रतिदिन 20 से 25 मरीज इलाज के लिए आते हैं. लगभग 500 से अधिक मरीजों का यहां से रेगुलर इलाज चल रहा है. यह मरीज पूरे संथाल परगना प्रमंडल के छह जिलों के साथ-साथ सीमावर्ती बिहार के भागलपुर, जमुई और बांका जिला के साथ-साथ पश्चिम बंगाल के बीरभूम, मुर्शिदाबाद जिले के होते हैं. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि दुमका का यह मानसिक अस्पताल मनोरोगियों के लिए काफी उपयोगी साबित हो रहा है.
कोरोनाकाल के बाद मानसिक अवसाद के मरीजों की संख्या में वृद्धि: इस स्वास्थ्य केंद्र के मनोचिकित्सीय परामर्शी जुल्फीकार अली भुट्टो कहते हैं कि कोरोना काल और उसके बाद मानसिक अवसाद के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. उस दौरान काफी लोगों को रोजगार में परेशानी हुई. छोटी मोटी नौकरियां समाप्त हो गई. रोजगार-धंधे बंद हो गए. स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा, कई लोगों की असामयिक मृत्यु हो गई. इन सब कारणों से बड़ी संख्या में लोग और लोगों का जनजीवन प्रभावित हुआ. इन करणों से लोगों को मानसिक समस्या उत्पन्न हुई. वहीं दूसरी ओर तनावपूर्ण जीवन जीने वाले और सच्चाई का सामना नहीं करने वाले व्यक्ति मनोरोगी हो जाते हैं. वे कहते हैं कि अगर कोई स्टूडेंट परीक्षा में सफल नहीं हो पाता तो उन्हें यह समझना चाहिए कि फिर से मेहनत कर सफलता पाई जा सकती है. एक असफलता से जीवन रुक नहीं जाता. कहने का अर्थ है कि धैर्य के अभाव में लोग विचलित हो जाते हैं और धीरे-धीरे वे मानसिक बीमारी की ओर अग्रसर हो जाते हैं. धैर्य धारण करना, सच्चाई से अवगत होना काफी जरूरी है. इसके साथ ही जो व्यक्ति मानसिक अवसाद से गुजर रहे हैं उन्हें उनके परिवार और मित्रों का सपोर्ट भी बेहद जरूरी होता है.
दवा के साथ की जाती है काउंसिलिंग: मनोचिकित्सीय परामर्शी बताते हैं कि हमारे यहां हर उम्र के मरीज आते हैं. यहां उन्हें मुफ्त दवाईयां दी जाती है, साथ ही काउंसलिंग की जाती है. कभी-कभी यह काउंसलिंग व्यक्तिगत के साथ साथ पारिवारिक भी होती है. अगर कोई मरीज यह कहता है कि मुझे मेरे परिवार वाले परेशान करते हैं, किसी बात को लेकर ताना मारते हैं तो हम लोग वैसी स्थिति में पूरे परिवार को अपने यहां बुलाते हैं और उन्हें समझाते हैं कि आपकी अवहेलना या फिर ताना मारने से कोई मानसिक रोगी बन चुका है, इसे रोकिए.
आधारभूत संरचना और मानव संसाधन से जूझ रहा है यह अस्पताल: भले ही दुमका का जिला मानसिक स्वास्थ्य केंद्र काफी महत्वपूर्ण है और एक बड़े इलाके के लोगों को मनोचिकित्सा प्रदान कर रहा है लेकिन, दो पुराने कमरे में चल रहा यह स्वास्थ्य केंद्र, जिसकी दीवारों पर दरारें नजर आती हैं. इसे और बेहतर बनाने की आवश्यकता है. मनोचिकित्सीय परामर्शी जुल्फीकार अली भुट्टो कहते हैं कि हमारे इस अस्पताल का इंफ्रास्ट्रक्चर और बढ़िया होना चाहिए. जबकि मानव संसाधन की भी कमी है. साल 2006 में जब यह अस्पताल बना था उसी वक्त तय किए गए स्ट्रेंथ पर यह चल रहा है. इस अस्पताल के लिए एक मनोचिकित्सक, एक मनोचिकित्सीय परामर्शी समेत पांच पद सृजित हैं, जिसमें क्लिनिकल साईक्लॉजिस्ट का पद रिक्त है.
झारखंड सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता: मनोरोग आज एक आम बीमारी बनता जा रहा है. दुमका के मनोचिकित्सा केंद्र से काफी लोग जुड़े हैं और इलाज करवा रहे हैं. ऐसे में झारखंड सरकार को चाहिए कि इस पर उचित ध्यान दें. यहां जो भी आधारभूत संरचना या मानव संसाधन की कमी है उसे पूरा करें ताकि यह अस्पताल ज्यादा बेहतर कार्य कर सकें.