दुमका: 2019 खत्म होने को है और नया साल दस्तक देने को है, यह समय पिकनिक के लिए सबसे अच्छा माना जाता है, ऐसे में लोगों का पर्यटन स्थलों पर आना-जाना शुरू हो गया है. इसी क्रम में दुमका के प्रसिद्ध मलूटी में भी सैलिनियों का दौरा शुरू हो गया है. दुमका के शिकारीपाड़ा में स्थित मलूटी को मंदिरों का गांव भी कहा जाता है, जहां हर साल लाखों लोग पूजा-अर्चना के साथ मनोरंजन की दृष्टि से घूमने आते हैं.
मंदिर क्यों है खास
मंदिरों का गांव कहलाने वाले मलूटी में काशी की तर्ज पर ही भगवान शिव के मंदिर अधिक हैं. यही कारण है कि इसे गुप्त काशी भी कहा जाता है.17वीं-8वीं सदी में बने यहां के मंदिर की दिवारों पर टेराकोटा से निर्मित टाइल्स लगे हैं, जिनपर रामायण और महाभारत काल के चित्रण के साथ-साथ नौका विहार, नृत्यकला आदि चित्रित हैं. मलूटी के मंदिरों का निर्माण विशेष आकार की ईंटों से किया गया है, जिनकी दीवारों की चौड़ाई करीब दो फीट है. वहीं यहां पर मां मौलिक्षा के मंदिर में पूजा अर्चना करने दूर-दूर से भक्त पहुंचते हैं.
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होती है अच्छी आमदनी
मलूटी के मंदिरों में पूजा-अर्चना करने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि यहां का काफी नाम है, जिस कारण यहां घूमने आए. वहीं उनका यह भी कहना है कि यहां आकर काफी अच्छा लगता है, मन को शांति मिलती है. वही यहां के दुकानदारों का कहना है कि अच्छी संख्या में सैलानी आते हैं, जिससे उनको अच्छी आमदनी प्राप्त होती है.
जीर्ण-शीर्ण हो रहे हैं मंदिर
मलूटी के मंदिर कई सदी पुराने हैं और रखरखाव के अभाव में जीर्ण शीर्ण होते जा रहे हैं. यहां के108 मंदिर में अब 72 मंदिर ही शेष रह गए हैं. ऐसे में बचे हुए मंदिरों के जीर्णोद्धार का काम चल रहा है. इसकी शुरुआत 2 अक्टूबर 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऑनलाइन शुरू की थी लेकिन काम अब तक पूरा नहीं हो सका है.
क्या कहते हैं स्थानीय लोग
स्थानीय लोगों का कहना है कि मंदिरों के जीर्णोद्धार का काम तेज गति से हो, लेकिन सरकार काम धीमा कर रही है, जिससे लोग सरकार से नाराज चल रहे हैं. स्थानीय निवासी गोपाल चटर्जी ने यहां के मंदिरों को पर्यटन के मानचित्र में लाने के लिए काफी मेहनत की है उन्हें हाल ही के दिनों में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने सम्मानित भी किया था. उनका कहना है कि इन मंदिरों को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिले, वहीं मंदिरों के जीर्णोद्धार का काम तेजी से हो इसके लिए मेन पावर बढ़ाई जाए.