दुमका: सरकार कल्याणकारी योजनाओं पर बड़ी राशि खर्च करती है, लेकिन इसकी मॉनिटरिंग नहीं करती कि उस योजना लाभ उन तक पहुंचा कि नहीं जिनके लिए योजना बनाई गई है और राशि आवंटित की गई है. इसका बड़ा नमूना झारखंड की उपराजधानी दुमका में कामकाजी महिला छात्रावास को देखकर लगाया जा सकता है. जिसके निर्माण के बाद भी महिलाएं इसका लाभ नहीं ले पा रही हैं.
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क्या है पूरा मामला: 2018 में झारखंड सरकार की तत्कालीन समाज कल्याण मंत्री डॉ. लुईस मरांडी ने अपने विधानसभा क्षेत्र में एक कामकाजी महिला छात्रावास का शिलान्यास किया था. इसकी राशि 50 लाख रुपये थी. छात्रावास का निर्माण कार्य सिर्फ एक साल में पूरा कर दिया गया. इस भवन का उद्घाटन 2019 में लुईस मरांडी ने ही किया था. छात्रावास में वैसी महिलाओं को रहने की सुविधा प्रदान करनी थी जो दूसरे जगह से आकर अकेले सरकारी या गैर सरकारी संस्था में काम कर रही है और ऊंचे दर पर किराए का मकान लेकर रहती है. अकेली महिलाओं का कहीं अंजान जगह पर रहने में सुरक्षा भी एक मुद्दा होता है. इस छात्रावास में महिलाओं को काफी कम दर पर रहने की व्यवस्था की जानी थी, साथ ही साथ सामूहिक रूप से महिलाएं रहती और उनके लिए सुरक्षा के प्रबंध होते. कुल मिलाकर कामकाजी महिलाओं के लिए यह काफी अच्छी योजना थी जिसे धरातल पर उतार दिया गया था.
तीन वर्षों से लटका है ताला: कामकाजी महिला छात्रावास का निर्माण एक अच्छे उद्देश्य के साथ हो तो गया लेकिन आज तक चालू नहीं हो सका. इसमें बड़ा ताला लटका नजर आता है. ऐसे में एक बड़ा सवाल यह है कि जब इसे चालू ही नहीं करना था तो फिर इसका निर्माण ही क्यों कराया गया. इसमें 50 लाख की राशि जो खर्च हुई उसके औचित्य पर सवाल खड़े हो रहे हैं. इस मामले में सरकार और दुमका जिला प्रशासन को ध्यान देने की आवश्यकता है. जिस उद्देश्य से इसका निर्माण हुआ वह पूरा हो, यह सुनिश्चित होना चाहिए.