दुमकाः जिले के मयूराक्षी नदी पर मसानजोर डैम स्थापित है. इसके निर्माण में 144 गांव की जमीन अधिग्रहित की गई थी जिसमें हजारों लोग विस्थापित हुए थे. दुमका के जामा प्रखंड में ऐसे ही विस्थापितों का गांव है नोनी, हथवारी, सकरीगली और बाघाकोल इन गांव के लगभग 200 परिवार विस्थापित हुए थे.
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विस्थापितों को सिंचाई सुविधा नहीं
भले ही इन विस्थापित परिवार का सैकड़ों एकड़ भूमि मसानजोर डैम में समा गया हो पर थोड़ी बहुत जो कृषि योग्य भूमि बची हुई है, उसमें सिंचाई की किसी तरह की सुविधा नहीं है. नतीजा होता है कि खेतों में उपज नाममात्र का है.
क्या कहते हैं विस्थापित
मसानजोर डैम के विस्थापितों का कहना है कि वे भले ही पहले जमींदार थे लेकिन उनकी जमीन डैम में चली गई. अभी उनके खेतों के लिए सिंचाई की कोई सुविधा नहीं है. यहां तक कि रहने का कुछ विस्थापितों का अपना घर तक नहीं है. वे आज गरीबी में जीवन जी रहे हैं. शहर में जाकर मजदूरी का कार्य कर रहे हैं जहां देखने वाला कोई नहीं है.
सरकार से मदद की लगा रहे हैं गुहार
विस्थापितों का कहना है कि डैम प्रबंधन के साथ उनके जमीन का लीज 50 वर्षों का था. अगर सरकार उन्हें सुविधा नहीं दे पाती तो उनका जमीन ही वापस कर दे.
बता दें कि, मसानजोर डैम में पश्चिम बंगाल का स्वामित्व है. 1952 में जब इसकी आधारशिला रखी गई थी तो पश्चिम बंगाल सरकार और बिहार सरकार के बीच में समझौता हुआ था. आज विस्थापित के परिवार काफी परेशान हैं लेकिन यह मामला दो राज्यों के बीच हुए समझौते का है इसलिए जिला स्तर के अधिकारी इस पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं.