दुमका: संथालपरगना में कृषि के विकास और किसानों को आधुनिक खेती के तौर तरीकों से अवगत कराने के लगभग चार दशक पहले दुमका में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की ओर से क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र स्थापित किया गया था. शुरुआत में तो सबकुछ ठीक ठाक रहा लेकिन वर्तमान समय में इसकी स्थिति डांवाडोल है. खुद इसे सरकार के मदद की आवश्यकता है.
ये भी पढ़ें- दुमका में बीएयू के जोनल रिसर्च सेंटर से किसानों को नहीं मिल रहा फायदा, धूल फांक रही करोड़ों की मशीनें
शहर के बीचोबीच है यह अनुसंधान केन्द्र
दुमका शहर के खूंटा बांध इलाके के 25 एकड़ जमीन पर इस अनुसंधान केंद्र में फसलों पर रिसर्च होना था. किसानों को आधुनिक किस्म के पौधे-बीज और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराना था. लेकिन पर्याप्त संसाधनों के अभाव में इस संस्थान का बेहतर उपयोग नहीं हो पा रहा है.
इस कृषि अनुसंधान केंद्र में लगभग एक दशक पूर्व आधुनिक किस्म के पौधे तैयार करने के लिए एक करोड़ की लागत से टिशू कल्चर लैब स्थापित किया गया था. लेकिन आज वह किसी काम का नहीं है. फसलों के हार्वेस्टर के लिए 3 साल पहले 40 लाख की लागत से एक मशीन मंगाई गई, पर उसे चलाने वाला ही कोई नहीं है. जाहिर है कि मशीन सफेद हाथी साबित हो रहा है. सरकार की राशि बेकार हो रही है. किसानों को जो फायदा मिलना था वह नहीं मिल पा रहा है.
बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी का यह जोनल रिसर्च सेंटर मैन पावर की भी कमी से जूझ रहा है. यहां वैज्ञानिकों के 15 पद स्वीकृत हैं लेकिन वर्तमान में पदस्थापित पर सिर्फ तीन. वहीं फील्ड और ऑफिस कर्मी के 30 पद हैं जबकि कार्यरत हैं सिर्फ आठ. पूरे आंकड़े को देखे तो स्वीकृत पद के 20% कर्मी ही यहां कार्यरत हैं. जाहिर है कि काम जैसे तैसे हो पा रहा है.
क्या कहते हैं किसान और जनप्रतिनिधि
कृषि अनुसंधान केंद्र को लेकर किसान और जनप्रतिनिधि दोनों काफी निराश हैं. उनका कहना है कि यह अनुसंधान केंद्र कृषि क्षेत्र में काफी लाभदायक साबित हो सकता है, लेकिन कमियों की वजह से ऐसा नहीं हो पा रहा है. वे सरकार से इस पर ध्यान देने की मांग कर रहे हैं.
ये भी पढ़ें- BAU के छात्रों का जलवाः राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों में हुआ चयन, कुलपति ने दी बधाई
क्या कहते हैं रिसर्च सेंटर के अधिकारी
बीएयू के रिसर्च सेंटर के कमियों के संबंध में ईटीवी भारत की टीम ने यहां के प्रभारी सह निदेशक पीबी साहा से बात की. उन्होंने बताया कि अपने संसाधनों के हिसाब से हमलोग काम कर रहे हैं. पर कुछ कमियां हैं, कुछ खामियां हैं, जिसे ऊपर के अधिकारियों को अवगत करा दिया गया है और उनके स्तर पर सब कुछ ठीक करने का प्रयास किया जा रहा है.
करोड़ों रुपए की लागत से किसानों के लिए तो अनुसंधान केन्द्र बना पर सरकारी उदासीनता की वजह से इसका परफॉर्मेंस काफी लचर है. जरूरत है इस पर ध्यान देने की ताकि किसानों के खेत और चेहरे दोनों पर चमक नजर आए.