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1932 के दाव का संथाल में हेमंत को मिल सकता है जबरदस्त फायदा, लगभग 75% आबादी इसके दायरे में

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति (1932 Khatian based domicile policy) बनाने का फैसला लिया है. इस फैसले का हेमंत के गढ़ माने जाने वाले संथाल पर क्या असर होगा इसकी चर्चा हो रही है. आखिर क्या है संथान की स्थिति जानते हैं इस रिपोर्ट में...

effect of 1932 Khatian based domicile policy in Santhal
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Published : Sep 17, 2022, 5:13 PM IST

दुमका: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कैबिनेट ने 1932 के खतियान को स्थानीयता (1932 Khatian based domicile policy) का आधार माना है. पूरे राज्य में इसे लेकर एक चर्चा छिड़ गई है कि आने वाले समय में महागठबंधन खासतौर पर झारखंड मुक्ति मोर्चा को इसका कितना लाभ मिलेगा. अगर हम संथालपरगना प्रमंडल की बात करें तो हेमंत कैबिनेट के इस निर्णय से उन्हें जबरदस्त फायदा होता नजर आ रहा है. इसकी बड़ी वजह यह है कि लगभग पूरे प्रमंडल की कुल आबादी का लगभग 75% जनसंख्या 1932 के दायरे में आ जाएंगी. अभी वर्तमान समय में आदिवासी-मूलवासी की संख्या यहां निर्णायक स्थिति में है.

ये भी पढ़ें- जिसके पास होगा 1932 का कागज, वही कहलायेगा 'झारखंडी', जानिए क्या हैं हेमंत सरकार के फैसले के मायने


शायद यही वजह है कि संथाल के किसी भी जिले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के इस निर्णय के बाद विरोध में कहीं कोई प्रदर्शन नहीं हुआ, बयानबाजी नहीं हुई. उल्टे दुमका सांसद सुनील सोरेन कहते हैं कि मैं भी इसके विरोध में नहीं हूं, पर यह लोगों को दिग्भ्रमित करने के लिए लाया गया है.

संथाल में 18 विधानसभा और तीन लोकसभा सीट: संथाल क्षेत्र के 18 विधानसभा सीट में 07 सीट अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए रिजर्व है. आपको हम बता दें कि इन सभी 07 सीटों पर वर्तमान समय में झारखंड मुक्ति मोर्चा का कब्जा है. वहीं अगर हम लोकसभा सीट की बात करें तो 03 में से 02 सीट ST के लिए रिजर्व है. हालांकि इसमें दो पर भाजपा और एक पर झामुमो का कब्जा है. विधानसभा सीट में 35% और लोकसभा में 66% सीट आदिवासियों के लिए सुरक्षित होना इस बात को दर्शाता है कि यह क्षेत्र आदिवासी बहुल है. सबसे बड़ी बात यह है कि पूरे संथाल क्षेत्र में जो भी आदिवासी समाज के लोग हैं लगभग सभी 1932 के खतियान धारी हैं. इसमें संथाल और पहाड़िया समुदाय के आदिवासी हैं. दुमका सांसद सुनील सोरेन कहते हैं कि कहीं-कहीं यह जानकारी मिलती है कि बिहार के पूर्णिया या कटिहार इलाके से सौ-पचास संथाल परिवार के लोग हाल के दशक में इस क्षेत्र में आकर बसे हैं, लेकिन उनका कोई विशेष प्रभाव नहीं है. कुल मिलाकर जितने भी आदिवासी परिवार हैं सभी के पास 1932 का खतियान है.

आंकड़ों पर डाले नजर: संथालपरगना प्रमंडल में 06 जिले हैं दुमका, देवघर, साहेबगंज, गोड्डा, पाकुड़ और जामताड़ा. 2011 की जनसंख्या की अगर हम बात करें तो लगभग 70 लाख आबादी पूरे प्रमंडल की है. इसमें लगभग 28% आदिवासी और 45 से 50 % मूलवासियों की है. इस मूलवासी में संथाल-पहाड़िया को छोड़कर अनुसूचित जाति, मुस्लिम और अन्य कई जातियां बनिया, यादव, तेली, कोइरी, ब्राह्मण, कुम्हार, मायरा-मोदक और अन्य जाति शामिल हैं. हालांकि काफी संख्या में वैसे भी लोग हैं जिनके पास 1932 का खतियान नहीं है. ये लोग देश आजादी के बाद या पिछले 40-50 वर्षों में बिहार-पश्चिम बंगाल से आकर संथाल क्षेत्र में बसे हैं. इनकी भी आबादी बढ़ते-बढ़ते 20 से 25% तक पहुंच गई है. इनमें से अधिकांश लोग देवघर, गोड्डा, साहिबगंज, पाकुड़ और दुमका जिले में निवास करते हैं. इसमें देवघर-गोड्डा में बिहार के अलग-अलग जिलों से लोग आये. जबकि साहिबगंज-पाकुड़ में पश्चिम बंगाल के लोग आकर बसे हैं. वहीं दुमका में बिहार के भागलपुर-बांका और निकटवर्ती पश्चिम बंगाल के लोग आकर बसे हैं, जिनके पास 1932 का खतियान नहीं है.

ये भी पढ़ें- चिट्ठी के बाद वाली सियासत में मन वाली राजनीति, सीएम हेमंत को कितना फायदा, कितना नुकसान


क्या कहते हैं इतिहासकार: संथाल क्षेत्र में 1932 के खतियान के संबंध में दुमका के प्रसिद्ध इतिहासकार और संथालपरगना महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य सुरेंद्र झा कहते हैं कि एक बड़ी आबादी 1932 खतियान धारी है. यहां पहाड़िया समुदाय तो सदियों से बसे हुए हैं लेकिन जहां तक संथाल समाज की बात है तो वे भी 1793 के से 1820 के बीच यहां आए. संथाल हूल के बाद अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में अपने प्रशासन को मजबूत करने के लिए 1855 में संथाल परगना को जिला बनाया. 1872 में संथाल परगना रेगुलेशन एक्ट पारित हुआ. इसी में यह निर्णय लिया गया कि लैंड (भूमि) का सर्वे सेटेलमेंट होगा. 1872 से वुड सर्वे सेटेलमेंट शुरू हुआ जो 1884 तक चला. उसके बाद पुनः 1908 में मेगपर्सन सर्वे सेटलमेंट हुआ. संथाल क्षेत्र में 1932 जो सर्वे सेटेलमेंट हुआ उसे गेन्जर सर्वे सेटलमेंट कहा जाता है. वर्तमान में 1932 के इसी सेटलमेंट को स्थानीयता का आधार माना गया है.



क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक: 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता लागू करने की घोषणा का संथाल परगना प्रमंडल में क्या प्रभाव पड़ेगा, इस पर ईटीवी भारत की टीम ने संयुक्त बिहार सरकार के पूर्व मंत्री कमलाकांत सिन्हा और स्थानीय राजनीतिक विश्लेषक शिवशंकर चौधरी से बात की. इन दोनों ने बताया कि इस क्षेत्र में आदिवासी और मूलवासी 1932 के खतियान धारी है जिसकी आबादी लगभग 75% है. ऐसे में हेमंत सोरेन ने 1932 का जो निर्णय लिया है उसका व्यापक प्रभाव संथाल क्षेत्र में पड़ेगा. राजनीतिक विश्लेषक शिवशंकर चौधरी कहते हैं कि इसका लाभ झारखंड मुक्ति मोर्चा को होता आया है और आगे भी होता रहेगा. इसका बड़ा सबूत यह है कि संथाल परगना के 18 विधानसभा सीट में वर्तमान में 09 सीट झामुमो के कब्जे में हैं. खास तौर पर यहां जो एसटी के लिए 07 रिजर्व सीट है वह सभी झामुमो के खाते में हैं. इसमें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का बरहेट विधानसभा भी शामिल है. अगर महागठबंधन की बात करें तो 18 में से 05 सीट कांग्रेस के पास है. कुल मिलाकर 14 सीट महागठबंधन के दलों के पास है तो अगर 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता नीति अगर यहां के आदिवासियों और मूलवासियों को समझ में आ जाता है तो निश्चित रूप से झामुमो और उनके सहयोगी दलों को काफी लाभ होने जा रहा है. वहीं बिहार सरकार के पूर्व मंत्री कमलाकांत सेना जो पोड़ैयाहाट विधानसभा से विधायक रहे हैं, वे कहते हैं कि 1932 का खतियान तो यहां के अधिकांश लोगों के पास है पर यह लागू हो पाएगा या नहीं इस पर संशय की स्थिति है. यह भी हो सकता है यह एक राजनीतिक स्टंट साबित हो.

ये भी पढ़ें- Dumka Public Opinion: 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति पर लोगों की प्रतिक्रिया


क्या कहते हैं दुमका सांसद सुनील सोरेन: 1932 के आधार पर स्थानीयता को लेकर दुमका लोकसभा सीट से भाजपा सांसद सुनील सोरेन कहते हैं कि मैं भी इसका विरोधी नहीं हूं लेकिन मुख्यमंत्री ने लोगों को दिग्भ्रमित करने के लिए यह घोषणा की है. ऐसा प्रयास काफी पहले भी बाबूलाल मरांडी के द्वारा हुआ था जो धरातल पर नहीं उतरा. वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी जानते हैं कि इसका अंजाम क्या होगा, यह होने वाला नहीं है. यह सब राज्य के माहौल को अस्थिर करने के लिए किया गया है.



बड़ी आबादी होगी लाभान्वित: इस तरह देख रहे हैं कि पूरे संथालपरगना प्रमंडल की बड़ी आबादी 1932 खतियान धारी है और अगर इसके आधार पर स्थानीयता धरातल पर उतर जाती है तो इस क्षेत्र के लोग काफी लाभान्वित होंगे. हेमंत कैबिनेट के डिसीजन के बाद लोगों को नाचते-गाते तो देखा जा सकता है पर एक भी विरोध प्रदर्शन या रैली नहीं देखा गया.

दुमका: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कैबिनेट ने 1932 के खतियान को स्थानीयता (1932 Khatian based domicile policy) का आधार माना है. पूरे राज्य में इसे लेकर एक चर्चा छिड़ गई है कि आने वाले समय में महागठबंधन खासतौर पर झारखंड मुक्ति मोर्चा को इसका कितना लाभ मिलेगा. अगर हम संथालपरगना प्रमंडल की बात करें तो हेमंत कैबिनेट के इस निर्णय से उन्हें जबरदस्त फायदा होता नजर आ रहा है. इसकी बड़ी वजह यह है कि लगभग पूरे प्रमंडल की कुल आबादी का लगभग 75% जनसंख्या 1932 के दायरे में आ जाएंगी. अभी वर्तमान समय में आदिवासी-मूलवासी की संख्या यहां निर्णायक स्थिति में है.

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शायद यही वजह है कि संथाल के किसी भी जिले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के इस निर्णय के बाद विरोध में कहीं कोई प्रदर्शन नहीं हुआ, बयानबाजी नहीं हुई. उल्टे दुमका सांसद सुनील सोरेन कहते हैं कि मैं भी इसके विरोध में नहीं हूं, पर यह लोगों को दिग्भ्रमित करने के लिए लाया गया है.

संथाल में 18 विधानसभा और तीन लोकसभा सीट: संथाल क्षेत्र के 18 विधानसभा सीट में 07 सीट अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए रिजर्व है. आपको हम बता दें कि इन सभी 07 सीटों पर वर्तमान समय में झारखंड मुक्ति मोर्चा का कब्जा है. वहीं अगर हम लोकसभा सीट की बात करें तो 03 में से 02 सीट ST के लिए रिजर्व है. हालांकि इसमें दो पर भाजपा और एक पर झामुमो का कब्जा है. विधानसभा सीट में 35% और लोकसभा में 66% सीट आदिवासियों के लिए सुरक्षित होना इस बात को दर्शाता है कि यह क्षेत्र आदिवासी बहुल है. सबसे बड़ी बात यह है कि पूरे संथाल क्षेत्र में जो भी आदिवासी समाज के लोग हैं लगभग सभी 1932 के खतियान धारी हैं. इसमें संथाल और पहाड़िया समुदाय के आदिवासी हैं. दुमका सांसद सुनील सोरेन कहते हैं कि कहीं-कहीं यह जानकारी मिलती है कि बिहार के पूर्णिया या कटिहार इलाके से सौ-पचास संथाल परिवार के लोग हाल के दशक में इस क्षेत्र में आकर बसे हैं, लेकिन उनका कोई विशेष प्रभाव नहीं है. कुल मिलाकर जितने भी आदिवासी परिवार हैं सभी के पास 1932 का खतियान है.

आंकड़ों पर डाले नजर: संथालपरगना प्रमंडल में 06 जिले हैं दुमका, देवघर, साहेबगंज, गोड्डा, पाकुड़ और जामताड़ा. 2011 की जनसंख्या की अगर हम बात करें तो लगभग 70 लाख आबादी पूरे प्रमंडल की है. इसमें लगभग 28% आदिवासी और 45 से 50 % मूलवासियों की है. इस मूलवासी में संथाल-पहाड़िया को छोड़कर अनुसूचित जाति, मुस्लिम और अन्य कई जातियां बनिया, यादव, तेली, कोइरी, ब्राह्मण, कुम्हार, मायरा-मोदक और अन्य जाति शामिल हैं. हालांकि काफी संख्या में वैसे भी लोग हैं जिनके पास 1932 का खतियान नहीं है. ये लोग देश आजादी के बाद या पिछले 40-50 वर्षों में बिहार-पश्चिम बंगाल से आकर संथाल क्षेत्र में बसे हैं. इनकी भी आबादी बढ़ते-बढ़ते 20 से 25% तक पहुंच गई है. इनमें से अधिकांश लोग देवघर, गोड्डा, साहिबगंज, पाकुड़ और दुमका जिले में निवास करते हैं. इसमें देवघर-गोड्डा में बिहार के अलग-अलग जिलों से लोग आये. जबकि साहिबगंज-पाकुड़ में पश्चिम बंगाल के लोग आकर बसे हैं. वहीं दुमका में बिहार के भागलपुर-बांका और निकटवर्ती पश्चिम बंगाल के लोग आकर बसे हैं, जिनके पास 1932 का खतियान नहीं है.

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क्या कहते हैं इतिहासकार: संथाल क्षेत्र में 1932 के खतियान के संबंध में दुमका के प्रसिद्ध इतिहासकार और संथालपरगना महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य सुरेंद्र झा कहते हैं कि एक बड़ी आबादी 1932 खतियान धारी है. यहां पहाड़िया समुदाय तो सदियों से बसे हुए हैं लेकिन जहां तक संथाल समाज की बात है तो वे भी 1793 के से 1820 के बीच यहां आए. संथाल हूल के बाद अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में अपने प्रशासन को मजबूत करने के लिए 1855 में संथाल परगना को जिला बनाया. 1872 में संथाल परगना रेगुलेशन एक्ट पारित हुआ. इसी में यह निर्णय लिया गया कि लैंड (भूमि) का सर्वे सेटेलमेंट होगा. 1872 से वुड सर्वे सेटेलमेंट शुरू हुआ जो 1884 तक चला. उसके बाद पुनः 1908 में मेगपर्सन सर्वे सेटलमेंट हुआ. संथाल क्षेत्र में 1932 जो सर्वे सेटेलमेंट हुआ उसे गेन्जर सर्वे सेटलमेंट कहा जाता है. वर्तमान में 1932 के इसी सेटलमेंट को स्थानीयता का आधार माना गया है.



क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक: 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता लागू करने की घोषणा का संथाल परगना प्रमंडल में क्या प्रभाव पड़ेगा, इस पर ईटीवी भारत की टीम ने संयुक्त बिहार सरकार के पूर्व मंत्री कमलाकांत सिन्हा और स्थानीय राजनीतिक विश्लेषक शिवशंकर चौधरी से बात की. इन दोनों ने बताया कि इस क्षेत्र में आदिवासी और मूलवासी 1932 के खतियान धारी है जिसकी आबादी लगभग 75% है. ऐसे में हेमंत सोरेन ने 1932 का जो निर्णय लिया है उसका व्यापक प्रभाव संथाल क्षेत्र में पड़ेगा. राजनीतिक विश्लेषक शिवशंकर चौधरी कहते हैं कि इसका लाभ झारखंड मुक्ति मोर्चा को होता आया है और आगे भी होता रहेगा. इसका बड़ा सबूत यह है कि संथाल परगना के 18 विधानसभा सीट में वर्तमान में 09 सीट झामुमो के कब्जे में हैं. खास तौर पर यहां जो एसटी के लिए 07 रिजर्व सीट है वह सभी झामुमो के खाते में हैं. इसमें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का बरहेट विधानसभा भी शामिल है. अगर महागठबंधन की बात करें तो 18 में से 05 सीट कांग्रेस के पास है. कुल मिलाकर 14 सीट महागठबंधन के दलों के पास है तो अगर 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता नीति अगर यहां के आदिवासियों और मूलवासियों को समझ में आ जाता है तो निश्चित रूप से झामुमो और उनके सहयोगी दलों को काफी लाभ होने जा रहा है. वहीं बिहार सरकार के पूर्व मंत्री कमलाकांत सेना जो पोड़ैयाहाट विधानसभा से विधायक रहे हैं, वे कहते हैं कि 1932 का खतियान तो यहां के अधिकांश लोगों के पास है पर यह लागू हो पाएगा या नहीं इस पर संशय की स्थिति है. यह भी हो सकता है यह एक राजनीतिक स्टंट साबित हो.

ये भी पढ़ें- Dumka Public Opinion: 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति पर लोगों की प्रतिक्रिया


क्या कहते हैं दुमका सांसद सुनील सोरेन: 1932 के आधार पर स्थानीयता को लेकर दुमका लोकसभा सीट से भाजपा सांसद सुनील सोरेन कहते हैं कि मैं भी इसका विरोधी नहीं हूं लेकिन मुख्यमंत्री ने लोगों को दिग्भ्रमित करने के लिए यह घोषणा की है. ऐसा प्रयास काफी पहले भी बाबूलाल मरांडी के द्वारा हुआ था जो धरातल पर नहीं उतरा. वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी जानते हैं कि इसका अंजाम क्या होगा, यह होने वाला नहीं है. यह सब राज्य के माहौल को अस्थिर करने के लिए किया गया है.



बड़ी आबादी होगी लाभान्वित: इस तरह देख रहे हैं कि पूरे संथालपरगना प्रमंडल की बड़ी आबादी 1932 खतियान धारी है और अगर इसके आधार पर स्थानीयता धरातल पर उतर जाती है तो इस क्षेत्र के लोग काफी लाभान्वित होंगे. हेमंत कैबिनेट के डिसीजन के बाद लोगों को नाचते-गाते तो देखा जा सकता है पर एक भी विरोध प्रदर्शन या रैली नहीं देखा गया.

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