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धनबाद के इन गांवों में आज भी है पानी की किल्लत, नदी का पानी पीने को लोग मजबूर

धनबाद के अति नक्सल प्रभावित इलाका माने जाने वाले टुंडी इलाके में आजादी के 75 साल बाद भी पीने के पानी की किल्लत जस की तस बनी हुई है. लोग बराकर नदी का पानी पीने को मजबूर हैं. इस इलाके में 40 से ज्यादा घर हैं और इनके लिए बस एक ही चापाकल लगा हुआ है, जो ज्यादातर खराब रहता है.

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धनबाद के इन गांवों में आज भी है पानी की किल्लत, नदी का पानी पीने को मजबूर लोग
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Published : Apr 25, 2021, 12:43 PM IST

Updated : Apr 26, 2021, 9:55 AM IST

धनबाद: कोयलांचल की गिनती झारखंड के समृद्ध क्षेत्रों में होती है. धनबाद में धन की कोई कमी नहीं है, कोयले का अकूत भंडार है. लेकिन यहां के लोगों को भी कई परेशानियां हैं. उन्हीं में से एक है पानी की. जिले अति नक्सल प्रभावित इलाका माने जाने वाले टुंडी इलाके में पीने के पानी की किल्लत है. लोग बराकर नदी का पानी पीने को मजबूर हैं.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

इसे भी पढ़ें- धनबाद:ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करने प्रशासन ने कमर कसी, डीसी ने जारी किए ये निर्देश

टुंडी प्रखंड के चरक कला इलाके के कुरहवा टोला में 40 से ज्यादा घर हैं. पूरे गांव में मात्र एक ही चापाकल है, जो ज्यादातर खराब रहता है. इसके अलावा पूरे गांव में एक भी कुआं नहीं है. लगभग 1 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय कर गांव की महिलाएं पानी लाने जाती हैं और उसी पानी से अपने काम निपटाती हैं.

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बराकर नदी का पानी लेने को मजबूर महिलाएं

आजादी के 75 वर्ष बाद भी गांव के लोग गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए हैं और बिजली, पानी, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं से महरूम हैं. गांव तक पहुंचने वाली सड़क जर्जर है. बीजेपी से गिरिडीह सांसद रवींद्र कुमार पांडेय पांच बार सांसद रहे हैं, लेकिन गांवों की बदहाली जस की तस हुई है. इस बार गिरिडीह लोकसभा से AJSU के चंद्र प्रकाश चौधरी सांसद बने हैं. चुनाव जीतने के बाद उन्होंने कभी गांव की तरफ पलटकर नहीं देखा.

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आजादी के 75 साल बाद भी पानी का अभाव

स्थानीय महिलाओं ने बताया कि इन जगहों पर वोट के समय ही नेता दिखते हैं. बड़े-बड़े वादे करते हैं और सपने दिखा कर चले जाते हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा के पूर्व मंत्री भी रह चुके वर्तमान विधायक मथुरा प्रसाद महतो ने भी गांव की बदहाली को दूर करने में अब तक कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है. नेता तो छोड़िए, अधिकारियों ने भी गांवों की कोई सुध नहीं ली है. ये नजारा सिर्फ इसी टोला का नहीं है, बल्कि अगल-बगल के कई गांव में इस तरह के हालात हैं. महिलाओं ने अपनी मजबूरी साझा करते हुए कहा कि बरसात के दिनों में बाढ़ वाला गंदा पानी भी पीना पड़ता है. कहीं-कहीं इस नदी में ऐसा नजारा हो गया है कि सिर्फ चट्टान ही दिखते हैं और बालू ना के बराबर है. ऐसे में जब बालू ही नहीं रहेगा, तो इन महिलाओं को नदी का पानी भी पीना नसीब नहीं हो पाएगा. बताते चलें कि बालू का अवैध कारोबार धड़ल्ले से दिन में होता है लेकिन प्रशासन को इसकी खबर तक नहीं है. बिना डाक के ही वहां से सैकड़ों ट्रैक्टर और हाइवा प्रतिदिन बालू का उठाव करते हैं.

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पानी के अभाव में नदी का पानी पीते हैं लोग

ईटीवी भारत हमेशा से ही जन सरोकार से जुड़ी खबरों को प्राथमिकता देता आया है. स्थानीय लोगों ने बताया कि इन जगहों का रुख बहुत ही कम लोग करते हैं. ग्रामीणों ने इस खबर को बनाने के लिए ईटीवी भारत की टीम को धन्यवाद दिया. अब देखने वाली बात ये होगी कि स्थानीय जनप्रतिनिधि और जिला अधिकारी कितना संज्ञान लेते हैं.

धनबाद: कोयलांचल की गिनती झारखंड के समृद्ध क्षेत्रों में होती है. धनबाद में धन की कोई कमी नहीं है, कोयले का अकूत भंडार है. लेकिन यहां के लोगों को भी कई परेशानियां हैं. उन्हीं में से एक है पानी की. जिले अति नक्सल प्रभावित इलाका माने जाने वाले टुंडी इलाके में पीने के पानी की किल्लत है. लोग बराकर नदी का पानी पीने को मजबूर हैं.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

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टुंडी प्रखंड के चरक कला इलाके के कुरहवा टोला में 40 से ज्यादा घर हैं. पूरे गांव में मात्र एक ही चापाकल है, जो ज्यादातर खराब रहता है. इसके अलावा पूरे गांव में एक भी कुआं नहीं है. लगभग 1 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय कर गांव की महिलाएं पानी लाने जाती हैं और उसी पानी से अपने काम निपटाती हैं.

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बराकर नदी का पानी लेने को मजबूर महिलाएं

आजादी के 75 वर्ष बाद भी गांव के लोग गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए हैं और बिजली, पानी, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं से महरूम हैं. गांव तक पहुंचने वाली सड़क जर्जर है. बीजेपी से गिरिडीह सांसद रवींद्र कुमार पांडेय पांच बार सांसद रहे हैं, लेकिन गांवों की बदहाली जस की तस हुई है. इस बार गिरिडीह लोकसभा से AJSU के चंद्र प्रकाश चौधरी सांसद बने हैं. चुनाव जीतने के बाद उन्होंने कभी गांव की तरफ पलटकर नहीं देखा.

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आजादी के 75 साल बाद भी पानी का अभाव

स्थानीय महिलाओं ने बताया कि इन जगहों पर वोट के समय ही नेता दिखते हैं. बड़े-बड़े वादे करते हैं और सपने दिखा कर चले जाते हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा के पूर्व मंत्री भी रह चुके वर्तमान विधायक मथुरा प्रसाद महतो ने भी गांव की बदहाली को दूर करने में अब तक कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है. नेता तो छोड़िए, अधिकारियों ने भी गांवों की कोई सुध नहीं ली है. ये नजारा सिर्फ इसी टोला का नहीं है, बल्कि अगल-बगल के कई गांव में इस तरह के हालात हैं. महिलाओं ने अपनी मजबूरी साझा करते हुए कहा कि बरसात के दिनों में बाढ़ वाला गंदा पानी भी पीना पड़ता है. कहीं-कहीं इस नदी में ऐसा नजारा हो गया है कि सिर्फ चट्टान ही दिखते हैं और बालू ना के बराबर है. ऐसे में जब बालू ही नहीं रहेगा, तो इन महिलाओं को नदी का पानी भी पीना नसीब नहीं हो पाएगा. बताते चलें कि बालू का अवैध कारोबार धड़ल्ले से दिन में होता है लेकिन प्रशासन को इसकी खबर तक नहीं है. बिना डाक के ही वहां से सैकड़ों ट्रैक्टर और हाइवा प्रतिदिन बालू का उठाव करते हैं.

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पानी के अभाव में नदी का पानी पीते हैं लोग

ईटीवी भारत हमेशा से ही जन सरोकार से जुड़ी खबरों को प्राथमिकता देता आया है. स्थानीय लोगों ने बताया कि इन जगहों का रुख बहुत ही कम लोग करते हैं. ग्रामीणों ने इस खबर को बनाने के लिए ईटीवी भारत की टीम को धन्यवाद दिया. अब देखने वाली बात ये होगी कि स्थानीय जनप्रतिनिधि और जिला अधिकारी कितना संज्ञान लेते हैं.

Last Updated : Apr 26, 2021, 9:55 AM IST
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