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झारखंड के आदिवासियों की अनोखी परंपराः खौलते तेल से निकालते हैं पकवान, हर साल लगता है मेला

धनबाद में आदिवासी समुदाय के लोग अपनी अनोखी परंपरा के लिए जाने जाते हैं. इस समुदाय के लोग अपने इष्ट देवता को खुश करने के लिए अनोखी पूजा करते हैं. कहीं पर मिट्टी का ढेला सिर पर रखकर पूजा की जाती है तो कहीं पर खौलते गर्म तेल में हाथ घुसा कर पकवान को निकाला जाता है. कोयलांचल के अनेक हिस्सों में मेले को लगाए जाने का सिलसिला जारी है.

झारखंड के आदिवासियों की अनोखी परंपराः खौलते तेल से निकालते हैं पकवान, हर साल लगता है मेला
तेल में हाथ डालता युवक
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Published : Jan 20, 2020, 7:56 PM IST

धनबादः झारखंड को आदिवासियों का प्रदेश कहा जाता है. वैसे तो संताल परगना में आदिवासियों की संख्या काफी अधिक है लेकिन धनबाद में भी आदिवासियों की संख्या कम नहीं. इस समुदाय के लोग जहां कहीं भी रहते हैं अपनी अनोखी परंपरा के लिए जाने जाते हैं. कोयलांचल धनबाद में भी आदिवासी समुदाय के लोग अपने इष्ट देवता को खुश करने के लिए अनोखी पूजा करते हैं.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

लोगों का हुजूम

धनबाद में 14 जनवरी के बाद से ही जिले के कोने-कोने में मेला लगने की शुरुआत हो जाती है. सभी जगह कुछ अनोखी परंपरा को लेकर मेला लगाया जाता है. कहीं पर मिट्टी का ढेला सिर पर रखकर पूजा की जाती है तो कहीं पर खोलते गर्म तेल में हाथ घुसा कर पकवान को निकाला जाता है. कोयलांचल के अनेक हिस्सों में मेले को लगाए जाने का सिलसिला जारी है. धनबाद के गोविंदपुर इलाके के काशीटांड में आदिवासी समुदाय के लोग लगभग डेढ़ सौ वर्षो से अधिक समय से मेला देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं. इस मेले को देखने से ज्यादा दिलचस्पी लोगों को आदिवासी समुदाय का नाचना-गाना के साथ खौलते गर्म तेल में हाथ घुसा कर पकवान निकालना रहता है.

इष्ट देवता की पूजा

पूजा में शामिल लोग बताते हैं कि यह उनके इष्ट देवता की पूजा है. इस पूजा को करके उन्हें खुश करने का प्रयास किया जाता है. जो कुछ भी मनोकामना मांगी जाती है वह इष्ट देवता को प्रसन्न करने से मनोकामना पूरी हो जाती है. उन्होंने कहा की उनके पूर्वजों ने जो परंपरा की शुरुआत की थी, उसे वे लगातार चलाने का प्रयास कर रहे हैं. उनके अनुसार लोग पहले पूजा करते थे जो बाद में धीरे-धीरे परंपरा के रूप में मनाया जाने लगा और उनके बुजुर्गों की ओर से शुरू की गई पूजा को आज भी आदिवासी समुदाय के नई पीढ़ी के युवा भी मनाते आ रहे हैं.

धनबादः झारखंड को आदिवासियों का प्रदेश कहा जाता है. वैसे तो संताल परगना में आदिवासियों की संख्या काफी अधिक है लेकिन धनबाद में भी आदिवासियों की संख्या कम नहीं. इस समुदाय के लोग जहां कहीं भी रहते हैं अपनी अनोखी परंपरा के लिए जाने जाते हैं. कोयलांचल धनबाद में भी आदिवासी समुदाय के लोग अपने इष्ट देवता को खुश करने के लिए अनोखी पूजा करते हैं.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

लोगों का हुजूम

धनबाद में 14 जनवरी के बाद से ही जिले के कोने-कोने में मेला लगने की शुरुआत हो जाती है. सभी जगह कुछ अनोखी परंपरा को लेकर मेला लगाया जाता है. कहीं पर मिट्टी का ढेला सिर पर रखकर पूजा की जाती है तो कहीं पर खोलते गर्म तेल में हाथ घुसा कर पकवान को निकाला जाता है. कोयलांचल के अनेक हिस्सों में मेले को लगाए जाने का सिलसिला जारी है. धनबाद के गोविंदपुर इलाके के काशीटांड में आदिवासी समुदाय के लोग लगभग डेढ़ सौ वर्षो से अधिक समय से मेला देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं. इस मेले को देखने से ज्यादा दिलचस्पी लोगों को आदिवासी समुदाय का नाचना-गाना के साथ खौलते गर्म तेल में हाथ घुसा कर पकवान निकालना रहता है.

इष्ट देवता की पूजा

पूजा में शामिल लोग बताते हैं कि यह उनके इष्ट देवता की पूजा है. इस पूजा को करके उन्हें खुश करने का प्रयास किया जाता है. जो कुछ भी मनोकामना मांगी जाती है वह इष्ट देवता को प्रसन्न करने से मनोकामना पूरी हो जाती है. उन्होंने कहा की उनके पूर्वजों ने जो परंपरा की शुरुआत की थी, उसे वे लगातार चलाने का प्रयास कर रहे हैं. उनके अनुसार लोग पहले पूजा करते थे जो बाद में धीरे-धीरे परंपरा के रूप में मनाया जाने लगा और उनके बुजुर्गों की ओर से शुरू की गई पूजा को आज भी आदिवासी समुदाय के नई पीढ़ी के युवा भी मनाते आ रहे हैं.

Intro:धनबाद: झारखंड प्रदेश को आदिवासियों का प्रदेश कहा जाता है. आदिवासी हितों की रक्षा के लिए ही झारखंड अलग राज्य का निर्माण हुआ था. वैसे तो संथाल परगना में आदिवासियों की संख्या काफी अधिक है लेकिन धनबाद में भी आदिवासियों की संख्या कम नहीं. इस समुदाय के लोग जहां कहीं भी रहते हैं अपनी अनोखी परंपरा के लिए जाने जाते हैं. कोयलांचल धनबाद में भी आदिवासी समुदाय के लोग अपने इष्ट देवता को खुश करने के लिए अनोखी पूजा करते हैं.Body:कोयलांचल धनबाद में 14 जनवरी के बाद से ही जिले के कोने-कोने में मेला लगने की शुरुआत हो जाती है.सभी जगह कुछ अनोखी परंपरा को लेकर मेला लगाया जाता है.कहीं पर मिट्टी का ढेला सिर पर रखकर पूजा की जाती है तो कहीं पर खोलते गर्म तेल में हाथ घुसा कर पकवान को निकाला जाता है.कोयलांचल के अनेक हिस्सों में मेले को लगाए जाने का सिलसिला जारी है.

यह नजारा धनबाद जिले के गोविंदपुर इलाके के काशीटांड का है. इस गांव में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं इस गांव में लगभग सौ-डेढ़ सौ वर्षो से अधिक समय से एक मेला लगता है जिस मेले को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. इस मेले को देखने से ज्यादा दिलचस्पी लोगों को आदिवासी समुदाय के द्वारा नाचते -गाते खोलते गर्म तेल में हाथ घुसा कर पकवान निकाले जाने में दिखती है और यह लोग इसी नजारे को देखने के लिए भारी संख्या में पहुंचते हैं.

पूजा में शामिल लोगों ने बताया कि यह हमारे इष्ट देवता की पूजा है. इस पूजा को करके उन्हें खुश करने का प्रयास किया जाता है जो कुछ भी मनोकामना मांगी जाती है वह इष्ट देवता को प्रसन्न करने से मनोकामना पूरी हो जाती है. उन्होंने कहा की हमारे पूर्वजों ने जो परंपरा की शुरुआत की थी उसे हम लगातार चलाने का प्रयास कर रहे हैं.

मेला देखने आए लोगों ने बताया कि काफी दिनों से वह इस प्रकार की मेला देखने के लिए आते हैं उन्होंने कहा मेला देखने से ज्यादा दिलचस्पी गरम तेल में हाथ घुसा कर पकवान निकाले जाने के लिए ही होती है. इसे ही देखने के लिए यहां पर पहुंचे हैं उन्होंने कहा कि यह कोई देवीय शक्ति ही है जिसके चलते गरम तेल में हाथ घुसाने के बाद भी हाथ नहीं जलता है. वरना हल्का सा गर्म तेल का छिंटा लगने पर भी शरीर जल जाता है.

मौजूद लोगों ने बतलाया की हमारे पूर्वजों का कहना है कि लगभग डेढ़ सौ वर्षों से इस प्रकार की पूजा यहां हो रही है.अच्छी फसल होने के बाद लोग खुशी से अपने ग्राम देवता और इष्ट देवता की पूजा करते हैं यही परंपरा के अनुसार लोग पहले पूजा करते थे जो बाद में धीरे-धीरे परंपरा के रूप में मनाया जाने लगा. और उनके बुजुर्गों के द्वारा शुरू की गई पूजा को आज भी आदिवासी समुदाय के नई पीढ़ी के युवा भी मनाते आ रहे हैं.Conclusion:इसे आस्था कहे या अंधविश्वास लेकिन जिस तरीके से खोलते गर्म तेल में हाथ घुसा कर पकवान को पकाया जाता है और लोगों के बीच उसे बांटा जाता है और उसके बावजूद भी किसी का हाथ नहीं जलता यह सोचने वाली बात है. पूजा के बाद आज तक कभी भी किसी का हाथ नहीं जला है.जिस कारण लोगों की आस्था इस पूजा पर और बढ़ जाती है. काफी दूर-दूर से लोग अपनी मनोकामनाओं को मांग कर यहां आते हैं और पूरा होने पर बलि भी देते हैं.

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1.पूजा में शामिल आदिवासी
2. सुबोध गोप- मेला देखने आए ग्रामीण
3.किशुन किस्कु- स्थानीय आदिवासी
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