धनबादः झारखंड को आदिवासियों का प्रदेश कहा जाता है. वैसे तो संताल परगना में आदिवासियों की संख्या काफी अधिक है लेकिन धनबाद में भी आदिवासियों की संख्या कम नहीं. इस समुदाय के लोग जहां कहीं भी रहते हैं अपनी अनोखी परंपरा के लिए जाने जाते हैं. कोयलांचल धनबाद में भी आदिवासी समुदाय के लोग अपने इष्ट देवता को खुश करने के लिए अनोखी पूजा करते हैं.
लोगों का हुजूम
धनबाद में 14 जनवरी के बाद से ही जिले के कोने-कोने में मेला लगने की शुरुआत हो जाती है. सभी जगह कुछ अनोखी परंपरा को लेकर मेला लगाया जाता है. कहीं पर मिट्टी का ढेला सिर पर रखकर पूजा की जाती है तो कहीं पर खोलते गर्म तेल में हाथ घुसा कर पकवान को निकाला जाता है. कोयलांचल के अनेक हिस्सों में मेले को लगाए जाने का सिलसिला जारी है. धनबाद के गोविंदपुर इलाके के काशीटांड में आदिवासी समुदाय के लोग लगभग डेढ़ सौ वर्षो से अधिक समय से मेला देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं. इस मेले को देखने से ज्यादा दिलचस्पी लोगों को आदिवासी समुदाय का नाचना-गाना के साथ खौलते गर्म तेल में हाथ घुसा कर पकवान निकालना रहता है.
इष्ट देवता की पूजा
पूजा में शामिल लोग बताते हैं कि यह उनके इष्ट देवता की पूजा है. इस पूजा को करके उन्हें खुश करने का प्रयास किया जाता है. जो कुछ भी मनोकामना मांगी जाती है वह इष्ट देवता को प्रसन्न करने से मनोकामना पूरी हो जाती है. उन्होंने कहा की उनके पूर्वजों ने जो परंपरा की शुरुआत की थी, उसे वे लगातार चलाने का प्रयास कर रहे हैं. उनके अनुसार लोग पहले पूजा करते थे जो बाद में धीरे-धीरे परंपरा के रूप में मनाया जाने लगा और उनके बुजुर्गों की ओर से शुरू की गई पूजा को आज भी आदिवासी समुदाय के नई पीढ़ी के युवा भी मनाते आ रहे हैं.