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धनबाद से हैट्रिक लगाने की जुगत में पीएन सिंह, दूसरी ओर अपनी लॉयल्टी प्रूव करने में लगे 'आजाद'

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Published : May 10, 2019, 12:46 PM IST

धनबाद लोकसभा क्षेत्र में 12 मई को मतदान होने है. चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार पीएन सिंह और कांग्रेस उम्मीदवार कीर्ति झा आजाद की आमने सामने हैं. इसी टक्कर में दोनों पार्टी के उम्मीदवार अपने अपने तरीके से लोगों को लुभाने में जुटे हैं.

धनबाद से बीजेपी प्रत्याशी पीएन सिंह

रांचीः धनबाद से दिल्ली जाने की जुगत में लगे निवर्तमान सांसद पीएन सिंह का कड़ा मुकाबला दिल्ली से धनबाद पहुंचे कांग्रेस उम्मीदवार कीर्ति झा आजाद से माना जा रहा है. हाल ही में बीजेपी से अपने लॉयल्टी कांग्रेस की तरफ शिफ्ट करने वाले आजाद जहां पहली बार धनबाद की धरती से चुनावी समर में उतरे हैं. वहीं, पीएन सिंह का पूरा पोलिटिकल कैरियर धनबाद में बीता है.

पीएन सिंह विधानसभा से 3 बार विधायक रह चुके हैं. धनबाद संसदीय इलाके से दो बार सांसद बन चुके हैं. इसबार इस संसदीय सीट से अपनी हैट्रिक लगाने की कोशिश में लगे हैं. अपने संसदीय सीट से हैट्रिक लगाने की उम्मीद लगाए सिंह के लिए सिंह मेंशन के सिद्धार्थ गौतम एक चेकप्वाइंट बने हुए हैं. सिद्धार्थ, नीरज सिंह हत्याकांड में जेल में बंद झरिया विधायक संजीव सिंह के सबसे छोटे भाई है और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं.

कोयलांचल की राजनीति की धुरी रहा है सिंह मेंशन

धनबाद के राजनीतिक इतिहास को पलट कर देखे तो सिंह मेंशन को इग्नोर कर वहां राजनीति किसी भी दल के लिए अबतक संभव नहीं हो पाई है. हालांकि, बदलते वक्त के साथ सिंह मेंशन की जकड़ ढीली जरूर हुई है. अब भी धनबाद में इस परिवार की राजनीति में भूमिका रही है. यही वजह है कि जैसे ही सिद्धार्थ ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना पर्चा दाखिल किया बीजेपी ने संजीव सिंह की पत्नी को पार्टी ज्वाइन करवा दिया. बैलेंस बनाने के मकसद से बीजेपी और झरिया विधायक की पत्नी से चुनाव प्रचार भी करवा रही है.

क्या है आबादी का समीकरण

दरअसल धनबाद में कांग्रेस को एक तरफ जहां ब्राह्मण, भूमिहार और अन्य पिछड़ा वर्ग में खासकर यादव आबादी से उम्मीद है. वहीं, बीजेपी अपने परंपरागत वोटर के ऊपर टिकी हुई है. शहरी वोटरों की तरफ भी बीजेपी का भरोसा बरकरार है. अगर इलाकों के आधार पर जातिगत समीकरण को देखें तो धनबाद संसदीय सीट के बोकारो और निरसा विधानसभा इलाके में ब्राह्मणों की मजबूत उपस्थिति है. वहीं, चंदनक्यारी ऐसा इलाका है जहां भूमिहार और यादव वोटरों की आबादी अच्छी है. धनबाद और बोकारो विधानसभा के अलावा दूसरे 4 असेंबली इलाकों में मुसलमानों की आबादी भी बड़ी संख्या में है. एक अनुमान के हिसाब से 20 लाख से अधिक वोटरों वाले इस संसदीय इलाके में ब्राह्मण और मुसलमानों की 20 फीसदी से भी अधिक आबादी है.

ये भी पढ़ें- धनबाद में सीएम रघुवर दास ने जनसभा को किया संबोधित, खाली रही सैकड़ों कुर्सियां

पिछले चुनावों में ये रही है वोट की हिस्सेदारी

पिछले लोकसभा चुनावों के वोट शेयर को देखें तो बीजेपी का लगभग 48 फीसदी वोट शेयर रहा जबकि कांग्रेस 22 फीसदी, जेवीएम 8 फीसदी और मासस 9 फीसदी से अधिक वोट शेयर पर सिमटा रहा. मौजूदा राजनीतिक समीकरण के हिसाब से कांग्रेस जेवीएम और मासस फिलहाल एक प्लेटफॉर्म पर है. ऐसे में बीजेपी के लिए धनबाद से दिल्ली की यात्रा इस बार आसान नहीं है.

वैसे तो धनबाद संसदीय क्षेत्रों में 6 में से केवल 1 विधानसभा इलाका विपक्षी दलों के कब्जे में है लेकिन बाकी 5 विधानसभा क्षेत्रों में विपक्षी दल कमजोर स्थिति में नहीं है. वहीं संसदीय चुनाव की बात करें तो राज्य गठन के बाद से हुए तीन चुनावों में दो बार बीजेपी को ये सीट मिला था जबकि 2004 में कांग्रेस ने यहां से जीत हासिल की थी. बता दें कि इस सीट के लिए 12 मई को मतदान होना है.

रांचीः धनबाद से दिल्ली जाने की जुगत में लगे निवर्तमान सांसद पीएन सिंह का कड़ा मुकाबला दिल्ली से धनबाद पहुंचे कांग्रेस उम्मीदवार कीर्ति झा आजाद से माना जा रहा है. हाल ही में बीजेपी से अपने लॉयल्टी कांग्रेस की तरफ शिफ्ट करने वाले आजाद जहां पहली बार धनबाद की धरती से चुनावी समर में उतरे हैं. वहीं, पीएन सिंह का पूरा पोलिटिकल कैरियर धनबाद में बीता है.

पीएन सिंह विधानसभा से 3 बार विधायक रह चुके हैं. धनबाद संसदीय इलाके से दो बार सांसद बन चुके हैं. इसबार इस संसदीय सीट से अपनी हैट्रिक लगाने की कोशिश में लगे हैं. अपने संसदीय सीट से हैट्रिक लगाने की उम्मीद लगाए सिंह के लिए सिंह मेंशन के सिद्धार्थ गौतम एक चेकप्वाइंट बने हुए हैं. सिद्धार्थ, नीरज सिंह हत्याकांड में जेल में बंद झरिया विधायक संजीव सिंह के सबसे छोटे भाई है और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं.

कोयलांचल की राजनीति की धुरी रहा है सिंह मेंशन

धनबाद के राजनीतिक इतिहास को पलट कर देखे तो सिंह मेंशन को इग्नोर कर वहां राजनीति किसी भी दल के लिए अबतक संभव नहीं हो पाई है. हालांकि, बदलते वक्त के साथ सिंह मेंशन की जकड़ ढीली जरूर हुई है. अब भी धनबाद में इस परिवार की राजनीति में भूमिका रही है. यही वजह है कि जैसे ही सिद्धार्थ ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना पर्चा दाखिल किया बीजेपी ने संजीव सिंह की पत्नी को पार्टी ज्वाइन करवा दिया. बैलेंस बनाने के मकसद से बीजेपी और झरिया विधायक की पत्नी से चुनाव प्रचार भी करवा रही है.

क्या है आबादी का समीकरण

दरअसल धनबाद में कांग्रेस को एक तरफ जहां ब्राह्मण, भूमिहार और अन्य पिछड़ा वर्ग में खासकर यादव आबादी से उम्मीद है. वहीं, बीजेपी अपने परंपरागत वोटर के ऊपर टिकी हुई है. शहरी वोटरों की तरफ भी बीजेपी का भरोसा बरकरार है. अगर इलाकों के आधार पर जातिगत समीकरण को देखें तो धनबाद संसदीय सीट के बोकारो और निरसा विधानसभा इलाके में ब्राह्मणों की मजबूत उपस्थिति है. वहीं, चंदनक्यारी ऐसा इलाका है जहां भूमिहार और यादव वोटरों की आबादी अच्छी है. धनबाद और बोकारो विधानसभा के अलावा दूसरे 4 असेंबली इलाकों में मुसलमानों की आबादी भी बड़ी संख्या में है. एक अनुमान के हिसाब से 20 लाख से अधिक वोटरों वाले इस संसदीय इलाके में ब्राह्मण और मुसलमानों की 20 फीसदी से भी अधिक आबादी है.

ये भी पढ़ें- धनबाद में सीएम रघुवर दास ने जनसभा को किया संबोधित, खाली रही सैकड़ों कुर्सियां

पिछले चुनावों में ये रही है वोट की हिस्सेदारी

पिछले लोकसभा चुनावों के वोट शेयर को देखें तो बीजेपी का लगभग 48 फीसदी वोट शेयर रहा जबकि कांग्रेस 22 फीसदी, जेवीएम 8 फीसदी और मासस 9 फीसदी से अधिक वोट शेयर पर सिमटा रहा. मौजूदा राजनीतिक समीकरण के हिसाब से कांग्रेस जेवीएम और मासस फिलहाल एक प्लेटफॉर्म पर है. ऐसे में बीजेपी के लिए धनबाद से दिल्ली की यात्रा इस बार आसान नहीं है.

वैसे तो धनबाद संसदीय क्षेत्रों में 6 में से केवल 1 विधानसभा इलाका विपक्षी दलों के कब्जे में है लेकिन बाकी 5 विधानसभा क्षेत्रों में विपक्षी दल कमजोर स्थिति में नहीं है. वहीं संसदीय चुनाव की बात करें तो राज्य गठन के बाद से हुए तीन चुनावों में दो बार बीजेपी को ये सीट मिला था जबकि 2004 में कांग्रेस ने यहां से जीत हासिल की थी. बता दें कि इस सीट के लिए 12 मई को मतदान होना है.

Intro:रांची। देश के कोल कैपिटल धनबाद से दिल्ली जाने की जुगत में लगे निवर्तमान सांसद पशुपतिनाथ सिंह का कड़ा मुकाबला दिल्ली से धनबाद पहुंचे कांग्रेस उम्मीदवार कीर्ति झा आजाद से माना जा रहा है। हाल ही में बीजेपी से अपने लॉयल्टी कांग्रेस की तरफ शिफ्ट करने वाले आजाद जहां पहली बार धनबाद की धरती से चुनावी समर में उतरे हैं। वही पीएन सिंह का पूरा पोलिटिकल कैरियर धनबाद में बीता है। सिंह विधानसभा से 3 बार विधायक रह चुके हैं और धनबाद संसदीय इलाके से दो बार सांसद बन चुके हैं। सिंह इसबार इस संसदीय सीट से अपनी हैट्रिक लगाने की कोशिश में लगे हैं।




Body:अपने संसदीय सीट से हैट्रिक लगाने की उम्मीद लगाए सिंह के लिए सिंह मेंशन के सिद्धार्थ गौतम एक चेकप्वाइंट बने हुए हैं। सिद्धार्थ, नीरज सिंह हत्याकांड में जेल में बंद झरिया विधायक संजीव सिंह के सबसे छोटे भाई हैं और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं।

कोयलांचल की राजनीति की धुरी रहा है सिंह मेंशन
धनबाद के राजनीतिक इतिहास को पलट कर देखें तो सिंह मेंशन को इग्नोर कर वहां राजनीति किसी भी दल के लिए अबतक संभव नहीं हो पाई है। हालांकि बदलते वक्त के साथ सिंह मेंशन की जकड़ ढीली जरूर हुई है लेकिन अब भी धनबाद में इस परिवार की वहां की राजनीति में भूमिका है। यही वजह है कि जैसे ही सिद्धार्थ ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना पर्चा दाखिल किया बीजेपी ने संजीव सिंह की पत्नी को पार्टी ज्वाइन करवा दिया। बैलेंस बनाने के मकसद से बीजेपी और झरिया विधायक की पत्नी से चुनाव प्रचार भी करवा रही है।




Conclusion:क्या है आबादी का समीकरण
दरअसल धनबाद में कांग्रेस को एक तरफ जहां ब्राह्मण, भूमिहार और अन्य पिछड़ा वर्ग में खासकर यादव आबादी से उम्मीद है। वहीं बीजेपी अपने परंपरागत वोटर के ऊपर टिकी हुई है। साथ ही शहरी वोटरों की तरफ भी बीजेपी का भरोसा बरकरार है। अगर इलाकों के आधार पर जातिगत समीकरण को देखें तो धनबाद संसदीय सीट के बोकारो और निरसा विधानसभा इलाके में ब्राह्मणों की मजबूत उपस्थिति है। वहीं चंदनक्यारी ऐसा इलाका है जहां भूमिहार और यादव वोटरों की आबादी अच्छी है। जबकि धनबाद और बोकारो विधानसभा के अलावे अन्य 4 असेंबली इलाकों में मुसलमानों की आबादी भी बड़ी संख्या में है। एक अनुमान के हिसाब से 20 लाख से अधिक वोटरों वाले इस संसदीय इलाके में ब्राह्मण और मुसलमान की 20% से भी अधिक आबादी है।

पिछले चुनावों में ये रही है वोट की हिस्सेदारी
पिछले लोकसभा चुनावों के वोट शेयर को देखें तो भाजपा का लगभग 48 प्रतिशत वोट शेयर रहा जबकि कांग्रेस 22 प्रतिशत, जेवीएम 8 प्रतिशत और मासस 9 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर पर सिमटा रहा। मौजूदा राजनीतिक समीकरण के हिसाब से कांग्रेस जेवीएम और मासस फिलहाल एक प्लेटफॉर्म पर हैं। ऐसे में बीजेपी के लिए धनबाद से दिल्ली की यात्रा इस बार आसान नहीं है।
वैसे तो धनबाद संसदीय इलाकों में छह में से केवल एक विधानसभा इलाका विपक्षी दलों के कब्जे में है लेकिन बाकी 5 विधानसभा क्षेत्रों में विपक्षी दल कमजोर स्थिति में नहीं है। वहीं संसदीय चुनाव की बात करें तो राज्य गठन के बाद से हुए तीन चुनावों में दो बार भाजपा को यह सीट मिली थी जबकि 2004 में कांग्रेस ने यहां से जीत हासिल की थी। बता दें कि इस सीट के लिए 12 मई को मतदान होना है।
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