निरसाः आदिवासियों के प्रमुख पर्व करमा पूजा 2021 (KARAMA PUJA 2021) की गुरुवार को शुरुआत हो गई. तीन दिवसीय इस उत्सव को लेकर आदिवासी भाई-बहनों में उत्साह है. भाइयों की दीर्घायु के लिए तीन दिन तक पूजा-उपासना के साथ यह पर्व मनाया जाएगा. साथ ही भाई-बहन नाच-गाकर खुशियां मनाएंगे. तीसरे दिन करम डाल के विसर्जन के साथ करम पर्व संपन्न होगा.
इस कड़ी में पंचेत कुड़मी विकास मोर्चा के बैनर तले निरसा विधानसभा के कलियासोल प्रखंड के बेनागोड़िया फुटबॉल मैदान में करम महोत्सव का आयोजन किया गया. इसमें कलियासोल प्रखंड के बेनागोड़िया बड़बाड़ी, लेदाहरिया, पतलाबाड़ी, लखीपुर, सावलापुर, दहीबाड़ी आदि गांवों से कुल 51 करम दलों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया.
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करम महोत्सव में विभिन्न क्षेत्रों से आई महिलाओं और युवतियों ने आदिवासी वाद्ययंत्रों की धुन पर जावा गीत और नृत्य की प्रस्तुति दी. इसमें करीब 500 से अधिक युवाओं ने प्रस्तुति दी. सभी ने अपनी प्रस्तुति से दर्शकों का मन मोह लिया.
मोर्चा की ओर से सभी जावा नृत्य दलों को पुरस्कृत किया गया. मोर्चा के केन्द्रीय प्रवक्ता सोमनाथ महतो ने कहा कि यह पर्व बहनों की ओर से भाइयों की दीर्घायु के लिए मनाया जाता है. इसके अलावा अपनी सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखने के लिए युवाओं को इससे जोड़ने के लिए आयोजन किया गया था.
क्यों की जाती है करम
सोमनाथ महतो ने बताया कि हम प्रकृति पूजक हैं और हमारा मानना है कि प्रकृति हमारी रक्षा (फिर चाहे वह धूप हो, बारिश हो) करती है, इसलिए हम करम महोत्सव में हम करम डाल (वृक्ष की डाल) धरती में गाड़ते हैं और उसकी पूजा करते हैं.
महतो ने बताया पूजा की कड़ी में ही हम खुशियां मनाते हैं और आदिवासी संस्कृति के मुताबिक नाच-गाकर खुशियां मनाते हैं. इसके अलावा करम पर्व रक्षाबंधन जैसा ही आदिवासियों का त्योहार है, जिसे बहनें भाइयों की दीर्घायु के लिए मनाती है.
ऐसे की जाती है पूजा
करमा पर्व एवं एकादशी का व्रत करने वाले भाई-बहन संजोत के दिन नदियों में स्नान करते हैं. इसके बाद करम अखाड़ों में पूजा-अर्चना करते हैं और करमा के जावा की 5 बार परिक्रमा करते हैं और नृत्य-गीत की प्रस्तुति देते हैं.
बाद में अगले दिन भाई-बहन 7 बार जावा को जगाते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं. शाम को फुल लोहरन (धान के खेतों में जाकर फूल व पौधों की डाली तोड़कर लाएंगे) करेंगे. खीरा, ककड़ी और चना इकट्ठा की जाएगी. देर शाम को अखाड़ों में करम डाली लगाई जाती है.
इसके बाद लोक कथा और लोकगीत के साथ भाई-बहन पूजा करेंगे. पूजा के दौरान भाई-बहन एक दूसरे से पूछेंगे किसका कर्म, अपना कर्म भैया का धर्म...फिर खीरा से पीठ पर ठोंकते हैं. दो दिन तक ढोल, मांदर और नगाड़े के साथ हर अखाड़े में झूमर नृत्य किए जाते हैं. तीसरे दिन हर अखाड़े में भाई-बहन फूल पहुंचाएंगे. दोबारा करम डाल की पूजा करेंगे और बाद में तालाबों में करन डाल का विसर्जन कर कार्यक्रम संपन्न होगा.