धनबाद: आजादी के 70 साल के बाद भी आज हमारी बेटियों को पढ़ने के लिए सिर्फ जद्दोजहद ही नहीं करनी पड़ रही, बल्कि बेटियां जान हथेली पर रख पढ़ाई करने के लिए स्कूल जाने को (Compulsion To Go School Keeping Life In Hand) मजबूर हैं. मौत उन्हें कब अपनी आगोश में भर ले यह बता पाना मुश्किल है. दरअसल, बाघमारा प्रखंड की धर्माबांध पंचायत के देवघरा की बेटियां पढ़ाई करने के लिए रेलवे पटरियों से होकर स्कूल जाती हैं. वहीं उनकी परेशानी को देखते हुए बुजुर्गों ने पहाड़ का सीना चीर कर रास्ता बनाने की ठान ली.
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स्कूल जाने के लिए रेलवे पटरी पर चलकर जाने की मजबूरीः स्कूल में पढ़ने जाने के लिए बच्चों को रेलवे पटरी से होकर गुजरना पड़ता (Girls Go To School By Walking On Railway Track) है. ऐसे में कभी भी कोई बड़ी घटना हो सकती है. लेकिन बच्चों को इसका तनिक भी एहसास नहीं. बीते दिन तो आगे-आगे बच्चे पटरी पर चल रहे थे और पीछे से ट्रेन आ गई थी. वह तो गनीमत थी कि इतने में आगे से रेलवे के ट्रैक मैन ने बच्चों को हटने के आवाज लगाई. यह नजारा हर दिन आद्रा रेल डिवीजन के खानुडीह स्टेशन के रेलवे पटरी पर देखने को मिलता है.
दूसरे रास्ते से स्कूल पहुंचने में छह किमी की अधिक दूरी तय करनी पड़ती हैः बाघमारा प्रखंड की धर्माबांध पंचायत के देवघरा के सैकड़ों पढ़ाई करने वाले बच्चे हर दिन रेलवे पटरी पर पैदल चलकर स्कूल आना-जाना करते हैं. गांव की बेटियों का कहना है कि हर दिन हमें पढ़ाई के लिए ऐसे ही जान हथेली पर रख कर चलना पड़ता है. हम बेटियां हैं. घर में हमारे माता-पिता चाहते हैं कि महफूज रहकर पढ़ाई करें, लेकिन दो किलोमीटर की यात्रा हमें रेलवे पटरी पर पैदल ही करनी पड़ती है. एक दूसरा रास्ता भी है, लेकिन उससे हमें पांच से छह किलोमीटर की दूरी अधिक तय करनी पड़ती है.
पहाड़ काट कर रास्ता बनाने में जुटे ग्रामीणः बेटियों के हौसले को देख गांव के बड़े बुजुर्गों ने उनकी इस परेशानी को देखते हुए सराहनीय कदम उठाया. क्या बुजुर्ग और क्या जवान सभी ने मिलकर पहाड़ को काट कर रास्ता बना देने की ठान ली. फिर गांव का हर कोई अब पहाड़ का सीना चीरने में जुटा हुआ (Making Way To Rip The Chest Of Mountain) है. इस संबंध में गांव के लालू किस्कू ने बताया कि लोगों को मार्केट के लिए तीन-चार गांव घूमकर जाना पड़ता है. सबसे बड़ी बात यह है कि बेटियां जान हथेली पर रख पढ़ने के लिए जाती हैं. फिर हम सबने मिलकर सड़क बनाने की ठान ली. पहाड़ की कटाई में अब सिर्फ एक सप्ताह का समय और लगेगा. हम गांव वाले श्रमदान और खुद से चंदा कर यह कार्य करवा रहे हैं. लालू किस्कू ने सिर्फ इतना कहा कि जनप्रतिनिधि यदि मदद करना चाहें तो कर सकते हैं.