धनबादः केंद्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान संस्थान (CIMFR) का नाम देश के प्रमुख शोध संस्थानों में शुमार है. लेकिन अब इस संस्थान पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे हैं. मानदेय के नाम पर करोड़ों रुपये की वित्तीय अनियमितता (Financial Irregularity) की बात सामने आई है. वेतनभोगी पदाधिकारियों ने स्वयं कंसल्टेंसी और टेस्टिंग के नाम पर मानदेय के रूप में करोड़ों रुपये का भुगतान लिया. मामले में CSIR के डीजी ने भुगतान हुए रुपये की वापसी की मांग की है. पत्र के मिलने के बाद सिंफर पदाधिकारियों और वैज्ञानिकों में हड़कंप मचा हुआ है.
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जनवरी के बाद से 2.16 करोड़ का भुगतान
सीएसआर के अनुसार विभिन्न अनुसंधान परियोजनाओं, कंसल्टेंसी और टेस्टिंग कार्य के लिए मानदेय के रूप मे सिंफर निदेशक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह ने साल 2016 से लेकर 2021 तक कुल 17.89 करोड़ रुपये खर्च किए. जनवरी के बाद से इनकी ओर से 2.16 करोड़ का भुगतान किया गया. इसी बीच संबधित विभागीय मंत्रालय को धनबाद निवासी आरटीई एक्टिविस्ट रमेश राही ने शिकायत कर दी.
वित्तीय गड़बड़ी का मामला
आरटीई एक्टिविस्ट रमेश राही ने अपनी शिकायत में बताया कि जब वैज्ञानिक अपने कार्यों के लिए सरकार से वेतन और अन्य सुविधा उठा रहें हैं, तो किसी अन्य कार्य के लिए मानदेय का भुगतान कैसे किया जा सकता है. रमेश राही ने इसे वित्तीय गड़बड़ी का मामला बताया. मंत्रालय से आदेश मिलने के बाद सीएसआईआर के डीजी ने राशि भुगतान पर रोक लगा दी. इसके जांच पड़ताल के बाद राशि को वापस करने का आदेश जारी कर दिया.
टेस्टिंग और कंसल्टेंसी के एवज में निर्धारित राशि
सिंफर (CIMFR) संबंधित एजेंसियों से प्रोजेक्ट टेस्टिंग और कंसल्टेंसी के एवज में निर्धारित राशि लेती है. इस कार्य में लगे वैज्ञानिक और अन्य कर्मचारियों को मानदेय के रूप में भुगतान किया जाता है. वहीं सिंफर के निदेशक डॉ. पीके सिंह का कहना है कि जो भी वैज्ञानिक सिंफर में अपनी टेक्नोलॉजी का सर्विसेज देते हैं, भारत सरकार उन्हें मानदेय देती है. इसके अलावा उन्होंने अन्य किसी सवाल का जवाब देना मुनासिब नहीं समझा.