धनबादः जिले में एक ऐसा गांव है, जहां आजादी के पूर्व में जिस तरह से लोग पानी की जरूरत पूरा करते थे, ठीक उसी तरह से आज भी रातभर जागकर पानी की जरूरत पूरा करने को मजबूर है. इस गांव मे बसे लोग सदियों से चली आ रही पुरानी विधि से ही पानी की जरूरत को पूरा करते हैं. बूंद बूंद पानी भरकर अपनी प्यास बुझाने में लोग जुटे हैं. गांव के लोग मिट्टी खोदकर बनाए गए चुआं से पानी की जरूरत को पूरा करते हैं. इसके लिए उन्हें रातभर जागना पड़ता है.
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बाघमारा प्रखंड के धर्माबांध पंचायत स्थित के देवघरा गांव, यही वो गांव है जहां पानी के लिए लोग जद्दोजहद कर रहें. महिला, पुरूष और क्या बच्चे, सभी मिट्टी खोदकर चुआं से हर दिन पीने और खाना बनाने के लिए पानी की जरूरत को पूरा करते हैं. गांव में लगा चापानल मरम्मती के अभाव में दम तोड़ चुका है. पानी के लिए सरकार द्वारा बोरिंग की गई लेकिन वह भी अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है.
बाघमारा प्रखंड से महज सात किलोमीटर दूरी पर देवघरा गांव स्थित है. यहां की आबादी करीब 5000 है. शहर से कोसों दूर बसे इस गांव के लोग पानी के लिए दिन जद्दोजहद करते नजर आते हैं. यहां का जलस्तर स्तर नीचे चले जाने के कारण चापानल बेकार पड़ा है. ग्रामीण महिलाएं गांव से तीन किलोमीटर दूर मिटटी खोदकर चुआं से पानी लाने को मजबूर हैं. वो इसी पानी का इस्तेमाल पीने और खाना बनाने के लिए करते हैं. गांव के लोगों का कहना है कि पानी के लिए रात भर जागना पड़ता है, दिन में गांव से बाहर जाकर मिटटी खोदकर पानी निकलते हैं, जिसके बाद ही पीने भर पानी मिल पाता है.
गांव के लोग कई बार अपने जनप्रतिनिधियों से पानी की समस्या के लिए गुहार लगा चुके हैं. चुनाव के समय झूठे वादे कर वोट लेते हैं लेकिन फिर झांकने तक नहीं आते. वहीं स्थानीय मुखिया प्रतिनिधि विकास रवानी का कहना है कि पानी की समस्या के समधान के लिए मेघा जलापूर्ति योजना का कार्य प्रगति पर है, इलाके में दो अलग अलग स्थानों पर बोरिंग करायी गई है. लेकिन लोगों का एक ही सवाल है कि आखिर पानी कहां है.