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अनुसूचित जाति के 26 परिवार प्रशासन की उपेक्षा का शिकार, झोपड़ीनुमा घर में जैसे-तैसे गुजारा करने को मजबूर - scheduled caste dhanbad

धनबाद के बलियापुर प्रखंड में रहने वाले अनुसूचित जाति(scheduled caste) के 26 परिवार कपड़े और प्लास्टिक से बनी झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं. दुख इस बात का है कि ग्रामीणों की सुनने वाला कोई नहीं है.

26 scheduled castes families are facing difficult for survival in dhanbad
धनबाद: अनुसूचित जाति के 26 परिवार प्रशासन की उपेक्षा का शिकार, झोपड़ीनुमा घर में जैसे-तैसे गुजारा करने को मजबूर
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Published : Jul 4, 2021, 10:25 PM IST

Updated : Jul 5, 2021, 10:04 AM IST

धनबाद: झारखंड में विकास के दावे सभी सरकार करती आई है. पिछली सरकार हो या वर्तमान सरकार, सभी अपने विकास के गुणगान जरूर करते हैं. हर कोई दलित समाज के उत्थान करने की बात कहता है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है. बलियापुर प्रखंड में अनुसूचित जाति के 26 परिवार जनप्रतिनिधियों और प्रशासन की उपेक्षा के शिकार हैं. प्लास्टिक और कपड़े की बनी झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं. जर्जर आवास कभी भी गिर सकता है क्योंकि अब मॉनसून आ गया है.

इसे भी पढ़ें- पिछले एक साल में मारे गए 160 नक्सली, दंडकारण्य में सबसे ज्यादा 101 की मौत, अब झारखंड-बिहार को बनाएंगे आधार क्षेत्र


बता दें कि राज्य में मॉनसून की दस्तक(onset of monsoon) से पहले ही सरकार पूरी मुकम्मल व्यवस्था के साथ तैयार होने का दावा तो करती है, लेकिन हकीकत सामने आ ही जाती है. कोयला नगर धनबाद के बलियापुर पंचायत के कलंदी टोला में 26 परिवार अपने आवास के अभाव में कपड़े और प्लास्टिक से बनाई गई झोपड़ी नुमा घर में रहने को मजबूर हैं. धनबाद में भी बारिश हो रही है. अनुसूचित जाति के इन परिवारों के पास पक्के मकान नहीं हैं. पुराने घरों में दरार है और उसी दराज से रिसता हुआ पानी है. बच्चे सोते हैं तो परिजन छाता लेकर उनकी रखवाली करते हैं. यहां के लोगों की मानें तो जनप्रतिनिधि मुखिया को कई बार इसकी शिकायत भी की है, लेकिन कोई मदद नहीं मिली. अनुसूचित जाति का होने से उनके साथ भेदभाव किया जाता है. ग्रामीणों ने मुखिया से मिलकर तत्कालीन व्यवस्था की भी गुहार लगाई है, लेकिन इनका कोई सुनने वाला नहीं है.

देखें पूरी रिपोर्ट

अब तक नहीं मिली कोई मदद

यहां के लोग कई बार प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए अधिकारी और जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई है, इसके बावजूद यहां के लोगों को कोई भी सरकारी लाभ मुहैया नहीं हो पाई. विवश होकर अपनी जानमाल की रक्षा को लेकर कपड़े और प्लास्टिक से ढक्कन झोपड़ी नुमा घर बनाकर रहने को विवश हैं. समाजसेवियों ने जनप्रतिनिधि की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने साफ तौर से कहा है कि इसके लिए जनप्रतिनिधि को सख्त होने की जरूरत है. ग्रामीणों के साथ बैठक कर उनकी समस्याओं को सुन उस पर विचार विमर्श करने की जरूरत है. वहीं स्थानीय मुखिया ने भी हाथ खड़ा करते हुए कहा कि सरकार की धीमी कार्य गति होने से हम इन्हें कोई भी लाभ देने से असमर्थ हैं.

धनबाद: झारखंड में विकास के दावे सभी सरकार करती आई है. पिछली सरकार हो या वर्तमान सरकार, सभी अपने विकास के गुणगान जरूर करते हैं. हर कोई दलित समाज के उत्थान करने की बात कहता है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है. बलियापुर प्रखंड में अनुसूचित जाति के 26 परिवार जनप्रतिनिधियों और प्रशासन की उपेक्षा के शिकार हैं. प्लास्टिक और कपड़े की बनी झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं. जर्जर आवास कभी भी गिर सकता है क्योंकि अब मॉनसून आ गया है.

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बता दें कि राज्य में मॉनसून की दस्तक(onset of monsoon) से पहले ही सरकार पूरी मुकम्मल व्यवस्था के साथ तैयार होने का दावा तो करती है, लेकिन हकीकत सामने आ ही जाती है. कोयला नगर धनबाद के बलियापुर पंचायत के कलंदी टोला में 26 परिवार अपने आवास के अभाव में कपड़े और प्लास्टिक से बनाई गई झोपड़ी नुमा घर में रहने को मजबूर हैं. धनबाद में भी बारिश हो रही है. अनुसूचित जाति के इन परिवारों के पास पक्के मकान नहीं हैं. पुराने घरों में दरार है और उसी दराज से रिसता हुआ पानी है. बच्चे सोते हैं तो परिजन छाता लेकर उनकी रखवाली करते हैं. यहां के लोगों की मानें तो जनप्रतिनिधि मुखिया को कई बार इसकी शिकायत भी की है, लेकिन कोई मदद नहीं मिली. अनुसूचित जाति का होने से उनके साथ भेदभाव किया जाता है. ग्रामीणों ने मुखिया से मिलकर तत्कालीन व्यवस्था की भी गुहार लगाई है, लेकिन इनका कोई सुनने वाला नहीं है.

देखें पूरी रिपोर्ट

अब तक नहीं मिली कोई मदद

यहां के लोग कई बार प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए अधिकारी और जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई है, इसके बावजूद यहां के लोगों को कोई भी सरकारी लाभ मुहैया नहीं हो पाई. विवश होकर अपनी जानमाल की रक्षा को लेकर कपड़े और प्लास्टिक से ढक्कन झोपड़ी नुमा घर बनाकर रहने को विवश हैं. समाजसेवियों ने जनप्रतिनिधि की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने साफ तौर से कहा है कि इसके लिए जनप्रतिनिधि को सख्त होने की जरूरत है. ग्रामीणों के साथ बैठक कर उनकी समस्याओं को सुन उस पर विचार विमर्श करने की जरूरत है. वहीं स्थानीय मुखिया ने भी हाथ खड़ा करते हुए कहा कि सरकार की धीमी कार्य गति होने से हम इन्हें कोई भी लाभ देने से असमर्थ हैं.

Last Updated : Jul 5, 2021, 10:04 AM IST
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