ETV Bharat / state

रावण का तप, भगवान विष्णु का छल और विश्वकर्मा की कला, जानिए बैद्यनाथ धाम मंदिर की रोचक कथा - बैद्यनाथ धाम

झारखंड के देवघर के बाबा धाम के महत्व को सभी जानते हैं. बाबा धाम में भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के स्थापित होने के पीछे की कहानी भी काफी रोचक है. यह एकमात्र शिवलिंग है, जहां शक्तिपीठ भी है. इसके साथ ही यहां माता संध्या देवी का भी मंदिर है.

story of kamna Jyotirlinga
story of kamna Jyotirlinga
author img

By

Published : Jul 14, 2023, 4:59 PM IST

बाबा धाम में 22 मंदिरों की कथा

देवघर: झारखंड के देवघर में स्थित विश्व प्रसिद्ध तीर्थस्थल बैद्यनाथ धाम द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से नौंवा ज्योतिर्लिंग है. बैद्यनाथ धाम देश का एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जो शक्तिपीठ भी है.

यह भी पढ़ें: बाबा धाम में 152 सालों से चली आ रही बेलपत्र प्रदर्शनी की परंपरा, 17 जुलाई से होगी शुरुआत

मान्यता है कि बैद्यनाथ धाम की स्थापना स्वयं भगवान विष्णु ने की थी और मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया था. मंदिर को लेकर मान्यता है कि इस मंदिर में आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इसलिए मंदिर में स्थापित शिवलिंग को कामना लिंग के नाम से भी जाना जाता है.

बाबा धाम की कथा

वहीं बैद्यनाथ धाम के तीर्थ पुरोहित विनोद द्वारी बताते हैं कि देवघर में करीब 22 मंदिर स्थापित हैं. सभी मंदिरों का निर्माण एक साथ नहीं किया गया था. समय-समय पर अलग-अलग मंदिरों का निर्माण कराया गया था. मंदिरों का निर्माण कालखंड में किया गया था.

सबसे प्राचीन मंदिर माता संध्या का: पौराणिक कथा के अनुसार सबसे प्राचीन मंदिर माता संध्या का है. जब माता सती के विष्णु चक्र से 51 खंड हुए थे, तब बैद्यनाथ धाम में माता सती का ह्रदय गिरा था. जिसकी रक्षा करने के लिए कामरु कामख्या से नीलचक्र पर बैठकर माता संध्या बैद्यनाथ धाम पहुंची थीं. सरदार पंडा के गद्दीशील होने के बाद गणेश मंदिर का निर्माण कराया गया. जिसके बाद पीढ़ी दर पीढ़ी सरदार पंडा के परिवार ने अन्य मंदिरों का निर्माण कराया. जिसकी समय-समय पर पंडा समाज और बाहर से आए श्रद्धालुओं द्वारा पूजा की जाती है. बैद्यनाथ धाम को ह्रदय पीठ और चिता भूमि भी कहा जाता है.

कामना लिंग की कहानी: बैद्यनाथ धाम मंदिर को रावणेश्वर बैद्यनाथ भी कहा जाता है, जिसकी एक पौराणिक कथा है जिसको लोग कामना लिंग के रूप में मानते हैं. लंकापति रावण ने कैलाश में हरजोग तपस्या कर भगवान शंकर को प्रसन्न किया था और अपने साथ लंका चलने को लेकर वरदान मांग था.

ऐसा माना जाता है कि कामना लिंग माता भगवती को अति प्रिय हैं. भगवान शिव ने रावन को मनोकामना लिंग दिया और कहा कि कैलाश और लंका के मध्य में मनोकामना लिंग को जहां पर रखोगे, वह वहीं पर स्थापित हो जाएगा. जो भगवान विष्णु के छल से सती के हृदय पीठ में कामना लिंग स्थापित हो गया. वैसे तो आपने देखा होगा कि भगवान शिव के सभी मंदिरों में त्रिशूल लगा होता है. लेकिन देवघर के बैद्यनाथ के सभी मंदिरों में पंचशूल लगे हैं. इसे सुरक्षा कवच माना जाता है.

बाबा धाम में 22 मंदिरों की कथा

देवघर: झारखंड के देवघर में स्थित विश्व प्रसिद्ध तीर्थस्थल बैद्यनाथ धाम द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से नौंवा ज्योतिर्लिंग है. बैद्यनाथ धाम देश का एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जो शक्तिपीठ भी है.

यह भी पढ़ें: बाबा धाम में 152 सालों से चली आ रही बेलपत्र प्रदर्शनी की परंपरा, 17 जुलाई से होगी शुरुआत

मान्यता है कि बैद्यनाथ धाम की स्थापना स्वयं भगवान विष्णु ने की थी और मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया था. मंदिर को लेकर मान्यता है कि इस मंदिर में आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इसलिए मंदिर में स्थापित शिवलिंग को कामना लिंग के नाम से भी जाना जाता है.

बाबा धाम की कथा

वहीं बैद्यनाथ धाम के तीर्थ पुरोहित विनोद द्वारी बताते हैं कि देवघर में करीब 22 मंदिर स्थापित हैं. सभी मंदिरों का निर्माण एक साथ नहीं किया गया था. समय-समय पर अलग-अलग मंदिरों का निर्माण कराया गया था. मंदिरों का निर्माण कालखंड में किया गया था.

सबसे प्राचीन मंदिर माता संध्या का: पौराणिक कथा के अनुसार सबसे प्राचीन मंदिर माता संध्या का है. जब माता सती के विष्णु चक्र से 51 खंड हुए थे, तब बैद्यनाथ धाम में माता सती का ह्रदय गिरा था. जिसकी रक्षा करने के लिए कामरु कामख्या से नीलचक्र पर बैठकर माता संध्या बैद्यनाथ धाम पहुंची थीं. सरदार पंडा के गद्दीशील होने के बाद गणेश मंदिर का निर्माण कराया गया. जिसके बाद पीढ़ी दर पीढ़ी सरदार पंडा के परिवार ने अन्य मंदिरों का निर्माण कराया. जिसकी समय-समय पर पंडा समाज और बाहर से आए श्रद्धालुओं द्वारा पूजा की जाती है. बैद्यनाथ धाम को ह्रदय पीठ और चिता भूमि भी कहा जाता है.

कामना लिंग की कहानी: बैद्यनाथ धाम मंदिर को रावणेश्वर बैद्यनाथ भी कहा जाता है, जिसकी एक पौराणिक कथा है जिसको लोग कामना लिंग के रूप में मानते हैं. लंकापति रावण ने कैलाश में हरजोग तपस्या कर भगवान शंकर को प्रसन्न किया था और अपने साथ लंका चलने को लेकर वरदान मांग था.

ऐसा माना जाता है कि कामना लिंग माता भगवती को अति प्रिय हैं. भगवान शिव ने रावन को मनोकामना लिंग दिया और कहा कि कैलाश और लंका के मध्य में मनोकामना लिंग को जहां पर रखोगे, वह वहीं पर स्थापित हो जाएगा. जो भगवान विष्णु के छल से सती के हृदय पीठ में कामना लिंग स्थापित हो गया. वैसे तो आपने देखा होगा कि भगवान शिव के सभी मंदिरों में त्रिशूल लगा होता है. लेकिन देवघर के बैद्यनाथ के सभी मंदिरों में पंचशूल लगे हैं. इसे सुरक्षा कवच माना जाता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.