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शिव-शक्ति का मिलन स्थल है बैद्यनाथ धाम, भक्तों की मनोकामना होती है पूरी

देवघर स्थित कामना लिंग में भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है. शिव-शक्ति का मिलन स्थल है बाबाधाम. एकसाथ हृदय, पीठ और कामना लिंग के दर्शन होते हैं.

बाबा बैद्यनाथ शिवलिंग
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Published : Jul 17, 2019, 8:23 PM IST

देवघर: बैद्यनाधाम बारह ज्योतिर्लिंगों में से सबसे महत्त्वपूर्ण ज्योतिर्लिंग है. इसे मनोकामना लिंग के रूप से भी जाना जाता है. देवघर ही एक मात्र जगह है, जहां शिव और शक्ति एक साथ विराजमान हैं. यहां पहले सती का हृदय कट कर गिरा था. उसके बाद शिव आये.

देंखें पूरी ख़बर

कहा जाता है कि रावण की जिद थी कि वह भगवान भोले को लंका लेकर जाए. इसलिए रावण की कठिन तपस्या के बावजूद भगवान भोले खुश नहीं हुए, तब रावण ने सिर काटकर उन्हें चढ़ाना शुरू कर दिया. जिसके बाद शिव प्रसन्न हुए. लेकिन देवताओं ने षड्यंत्र रचकर रावण को शिवलिंग लंका ले जाने नहीं दिया. रास्ते मे ही रावण को लघुशंका लगी तो रावण ने एक चरवाहे को शिवलिंग पकड़ने को कहा, चरवासे की वेश में खुद भगवान विष्णु थे. जब काफी देर तक रावण नहीं लौटा तो वो शिवलिंग को जमीन पर रख कर चले गये. यही बाबा रावणेश्वर बैद्यनाथ के नाम से जाना जाता है.
शिव-शक्ति का मिलन स्थल
बाबाधाम को शिव-शक्ति का मिलन स्थल भी कहा जाता है. वैदिक कथाओं के अनुसार रावण के द्वारा शिवलिंग को लंका ले जाने के क्रम में शिवलिंग यही स्थापित हो गया. दूसरी तरफ यह चिता भूमि है, क्योंकि यहां सती का हृदय कट कर गिरा था, इसलिए इसे हृदय पीठ भी कहा जाता है. यहां आने वाले भक्तो को एक साथ हृदय, पीठ और कामना लिंग के दर्शन होते हैं.

देवघर: बैद्यनाधाम बारह ज्योतिर्लिंगों में से सबसे महत्त्वपूर्ण ज्योतिर्लिंग है. इसे मनोकामना लिंग के रूप से भी जाना जाता है. देवघर ही एक मात्र जगह है, जहां शिव और शक्ति एक साथ विराजमान हैं. यहां पहले सती का हृदय कट कर गिरा था. उसके बाद शिव आये.

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कहा जाता है कि रावण की जिद थी कि वह भगवान भोले को लंका लेकर जाए. इसलिए रावण की कठिन तपस्या के बावजूद भगवान भोले खुश नहीं हुए, तब रावण ने सिर काटकर उन्हें चढ़ाना शुरू कर दिया. जिसके बाद शिव प्रसन्न हुए. लेकिन देवताओं ने षड्यंत्र रचकर रावण को शिवलिंग लंका ले जाने नहीं दिया. रास्ते मे ही रावण को लघुशंका लगी तो रावण ने एक चरवाहे को शिवलिंग पकड़ने को कहा, चरवासे की वेश में खुद भगवान विष्णु थे. जब काफी देर तक रावण नहीं लौटा तो वो शिवलिंग को जमीन पर रख कर चले गये. यही बाबा रावणेश्वर बैद्यनाथ के नाम से जाना जाता है.
शिव-शक्ति का मिलन स्थल
बाबाधाम को शिव-शक्ति का मिलन स्थल भी कहा जाता है. वैदिक कथाओं के अनुसार रावण के द्वारा शिवलिंग को लंका ले जाने के क्रम में शिवलिंग यही स्थापित हो गया. दूसरी तरफ यह चिता भूमि है, क्योंकि यहां सती का हृदय कट कर गिरा था, इसलिए इसे हृदय पीठ भी कहा जाता है. यहां आने वाले भक्तो को एक साथ हृदय, पीठ और कामना लिंग के दर्शन होते हैं.

Intro:देवघर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा बैद्यनाथ की स्थापना,


Body:एंकर देवघर शिव,महेश,शंकर,पशुपतिनाथ,महादेव जैसे एक हजार एक नमो से जाने जाते है। बाबा भोला कहते है जिस भक्त पर बाबा की कृपा दृष्टि पड़ती है उसका जीवन सुखमय हो जाता है। बाबाधाम में ज्योतिर्लिंग स्थापित है जो बारह ज्योतिर्लिंगों में से सबसे महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस लिंग को रावण के द्वारा प्राप्त कर स्थापित किया गया है। और मनोकामना लिंग के रूप जाना जाता है। जिससे यहाँ मांगी गई मनोतियाँ जरूर पूरी होती है। यह एक मात्र शिवालय है जहां शिव और शक्ति एक साथ विराजमान है। यहाँ पहले सती का हृदय कट कर गिरा है। उसके बाद यहाँ शिव आये है इसे शिव शक्ति का मिलन स्थल भी कहा जाता है। इसके पीछे भी एक रोचक कहानी छुपी है। वह रोचक कहानी यह है कि रावण की जिद्द थी कि वह भगवान भोले को लंका लेकर जाय तब क्या था रावण ने कठिन तपस्या की ओर भगवान की खूब पूजा की लेकिन भगवान भोले खुश नही हुए तब रावण ने अपना सर एक एक कार काटना शुरू कर दिया ओर तब बाबा भोले खुश हो गए और रावण को वर मांगने को कहा तब रावण ने उन्हें लंका चलने को कहा तब शिव जी ने कहा कि मैं तो चलूंगा लेकिन जिस जगह हमे जमीन पर रख दोगे वही में स्थापित हो जाऊंगा। रावण ने ऐसे लिंग की मांग की थी कि जिस लिंग से पूजन से सभी मनोकामनाये पूरी हो जाती है इस शिवलिंग के प्राप्ति के बाद माता पार्वती ने रावण को शिवलिंग पूजन के लिए कहा और पूजन के क्रम में ही रावण ने गंगा जल पी लिया था और उसके बाद रावण शिवलिंग को लेकर लंका जाने लगा लेकिन देवताओं ने षड्यंत्र रचा ओर रास्ते मे ही रावण को लघुसंका आया और रावण ने एक चरवाहा को शिवलिंग पकड़ने को दिया जो कि वुष्णु जी का रूप था। लेकिन रावण का लघुसंका नही रुक रहा था तब उस बिष्णु रूपी चरवाहे ने शिवलिंग को इसी जगह रख दिया और यही बाबा रावणेश्वर बैद्यनाथ के नाम से जाना जाता है। सबसे उत्तम लिंग ज्योतितलिंग को माना गया है और ज्योतिर्लिंग अथक साधना और तप के बाद हासिल किया जाता है रावण को भी यही मनोकामना लिंग बड़ी कठिन परिश्रम और तप के बाद मिला क्योंकि उसकी जिद थी कि वो इस मनोकामना लिंग के जरिये अपनी सारी मनोकामना पूर्ण कर लेगा। इस लिए इस मनोकामना लिंग का विशेश महत्व है। वैदिक कथाओं के अनुसार रावण के द्वारा शिवलिंग को लंका ले जाने के क्रम में यहाँ शिवलिंग यही स्थापित हो गया। दूसरी तरफ यह चिता भूमि है क्योंकि यहां सती का हृदय कट कर गिरा था ऐसे में ये पहले से ही तय था कि देवता शिव के शक्ति से मिलाप कराने में लगे थे। ओर कहा जाता है सभी देवताओं ने मिलकर यहाँ बाबा बैद्यनाथ की स्थापना कि थी। इस मंदिर का महत्व इस लिए भी बढ़ जता है क्योंकि यहां सति का हृदय कट कर गिरा था इस लिए इसे हृदय पीठ भी कहा जाता है। यहां आने वाले भक्तो को एक साथ हृदय पीठ और कामना लिंग के दर्शन होते है। तभी तो शिवभक्त यहां 105 किलोमीटर चलकर बाबा भोलेनाथ को जल अर्पण करने पहुचते है। और अपनी सारी मनोकामना पूरी करते है।


Conclusion:बहरलाहल,यह दीवानी दरबार है यानी यहां मनोकामना देर से पूरी होती है लेकिन भक्तो की कामना जरूर पूरी होती है। कहा जाता है कि कोई भी भक्त अगर सच्ची मनोकामना के साथ बाबा भोले से मन्नत मांगते है तो बाबा भोलेनाथ जरूर पूरी करते है। शिव की इस नागरी के बारे में कहा जाता है कि इस नगरी में आने मात्र से भी भक्तो का कल्याण हो जाता है।

बाइट प्रमोद श्रृंगारी,पुरोहित बाबा मंदिर।

बाइट भक्त मुकेश सेन।

नोट विसुअल रिपोटर एप से गयी है।
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