देवघर: बैद्यनाधाम बारह ज्योतिर्लिंगों में से सबसे महत्त्वपूर्ण ज्योतिर्लिंग है. इसे मनोकामना लिंग के रूप से भी जाना जाता है. देवघर ही एक मात्र जगह है, जहां शिव और शक्ति एक साथ विराजमान हैं. यहां पहले सती का हृदय कट कर गिरा था. उसके बाद शिव आये.
कहा जाता है कि रावण की जिद थी कि वह भगवान भोले को लंका लेकर जाए. इसलिए रावण की कठिन तपस्या के बावजूद भगवान भोले खुश नहीं हुए, तब रावण ने सिर काटकर उन्हें चढ़ाना शुरू कर दिया. जिसके बाद शिव प्रसन्न हुए. लेकिन देवताओं ने षड्यंत्र रचकर रावण को शिवलिंग लंका ले जाने नहीं दिया. रास्ते मे ही रावण को लघुशंका लगी तो रावण ने एक चरवाहे को शिवलिंग पकड़ने को कहा, चरवासे की वेश में खुद भगवान विष्णु थे. जब काफी देर तक रावण नहीं लौटा तो वो शिवलिंग को जमीन पर रख कर चले गये. यही बाबा रावणेश्वर बैद्यनाथ के नाम से जाना जाता है.
शिव-शक्ति का मिलन स्थल
बाबाधाम को शिव-शक्ति का मिलन स्थल भी कहा जाता है. वैदिक कथाओं के अनुसार रावण के द्वारा शिवलिंग को लंका ले जाने के क्रम में शिवलिंग यही स्थापित हो गया. दूसरी तरफ यह चिता भूमि है, क्योंकि यहां सती का हृदय कट कर गिरा था, इसलिए इसे हृदय पीठ भी कहा जाता है. यहां आने वाले भक्तो को एक साथ हृदय, पीठ और कामना लिंग के दर्शन होते हैं.