देवघर: क्रिसमस की धूम यूं तो सभी जगह रहती है. लोग तरह-तरह से इस दिन को सेलीब्रेट करते हैं. कहते हैं कि प्रभु यीशु के जीवन का संदेश था आपसी भाईचारा और सौहार्द्र. प्रभु यीशु के इसी संदेश को अपने जीवन में उतारा है, देवघर के रहने वाले रजत मुखर्जी ने. बंगाली परिवार से ताल्लुक रखने वाले रजत मुखर्जी का ईसा मसीह से इतना गहरा संबंध है कि वे कभी भी क्रिसमस और इस्टर मनाना नहीं भूलते. इतना ही नहीं इस दिन आपसी एकता का परिचय देते हुए अपने घर पर ही सभी धर्म-जाति के लोगों के साथ मिलकर बड़े ही धूमधाम से यीशु को याद करते हैं.
अनोखा है क्रिसमस मनाने का तरीका
रजत मुखर्जी के क्रिसमस मनाने का तरीका भी खास है. डाक संग्राहक रजत मुखर्जी ने यीशु के संदेश को जिस तरह जीवन में उतारा है, वे चाहते हैं कि दूसरे लोग भी इसे अपनाए. नई पीढ़ी तक मसीह के संदेश पहुंचे. यही कारण है कि वे डाक टिकटों के माध्यम से लोगों को प्रभु के जीवन की बानगी दिखा रहे हैं. डाक संग्राहक रजत मुखर्जी ने 200 से अधिक डाक टिकटों के माध्यम से अपने घर को बड़ी ही बेहतरीन कलाकृति के साथ सजाया है. उनकी यह अनोखी पहल जहां लोगों को आकर्षित कर रही है, वहीं वे सभी के लिए चर्चा का विषय भी बन गए हैं.
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2 लाख से भी अधिक हैं डाक टिकट
उनकी इस पहल को देखकर स्थानीय लोगों का कहना है कि हर साल कुछ अलग करके वे लोगों को अचंभित कर देते हैं. उनकी इस पहल में जहां बहुत बड़ा संदेश छुपा होता है वहीं लोगों को काफी कुछ सीखने-समझने का मौका भी मिलता है. बता दें कि रजत मुखर्जी के पास 1 लाख से भी अधिक डाक टिकट हैं. इन लाखों डाक टिकटों के माध्यम से वे हमेशा कुछ न कुछ अनोखी और अलग पहल करते रहते हैं. उनके पास 15 से भी अधिक विभिन्न देशों के डाक टिकट हैं.
सरकारी सहयोग की अपेक्षा
रजत मुखर्जी चाहते हैं कि सरकार अगर उन्हें थोड़ी आर्थिक सहायता मुहैया कराए या एक डाक टिकट संग्रहालय खोल दे तो उनके जीवन का उद्देश्य पूरा हो जाएगा. उनका कहना है कि देवघर में इस तरह का संग्रहालय न केवल आय का बेहतर स्त्रोत बन सकता था बल्कि पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित करता. वे चाहते हैं कि उनके मृत्यु के पश्चात भी इतने करीने से संजोए गए ये डाक टिकट संरक्षित रहे, यही कारण है कि वे प्रशासन से समय-समय पर एक संग्रहालय बनाने की मांग उठाते रहते हैं.
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आम लोगों का मिलता है सहयोग
उनकी लगातार उठ रही आवाज के बीच भी अभी तक रजत मुखर्जी को सरकारी सहयोग नहीं मिला है लेकिन स्थानीय लोगों से मिल रहे सहयोग से वे उत्साहित हैं और अपनी उम्मीद को जिंदा रखे हुए हैं. अगर उन्हें सरकारी सहयोग मिल जाता तो शायद वे और बेहतर तरीके से लोगों को इतिहास और वर्तमान से परिचय करा पाते. यूं भी किसी खास अवसर पर लोग उस अवसर को बेहतर तरीके से जान सके इससे अच्छा और हो ही क्या सकता है.