देवघरः त्रिकूट रोपवे हादसा के बाद वहां की तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है. इंसान हो या बंदर, सबकी दयनीय स्थिति हो चुकी है. त्रिकूट पहाड़ पर बसने वाले बंदर भुखमरी की कगार पर पहुंच चुके हैं. यहां भोजन ना मिलने के कारण बंदरों का झुंड अब गांव की ओर रुख कर रहा है.
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देवघर दुमका रोड पर स्थित त्रिकूट रोपवे का आनंद लेने बड़ी संख्या मे सैलानी यहां पहुंचते रहते थे. ऐसे में यहां चाय बेचने वाले से लेकर गाइड और अन्य तमाम तरह का रोजगार मिलता था. उसी में से एक चना बेचने वाले भी होते हैं. जिनका सीधा नाता इन बंदरों से है और वो बंदर और पर्यटक के बीच पुल का काम करते हैं. पिछले दस साल से चने की दुकान चला रहे सुधीर मंडल बताते हैं कि आम दिनों में कम से कम 4 से 5 किलो चना बेच लेते हैं और बंदरों को खिलाते भी हैं. सुधीर अकेले नहीं बल्कि ऐसे और भी हैं. लेकिन रोपवे बंद होने से एक तरफ जहा सुधीर का धंधा मंदा है तो बंदरों को भी खाने के लाले पड़ गए हैं.
बंदर पर्यटकों पर आश्रितः बंदर पर्यटकों पर क्यों आश्रित हैं? हम इसे ऐसे समझते हैं, दरअसल एक समय था जब त्रिकूट पूरी तरह वनों से आच्छादित था. कोई भी जीव जंतु यहा तक कि मानव भी वहीं बसना पसंद करते हैं जहां खाने का साधन उपलब्ध हो. ऐसे में इन बंदरों के लिए त्रिकूट पहाड़ भी खाने के लिहाज से सुरक्षित स्थान रहा है. लेकिन रोपवे बंद होने से अब पर्याप्त मात्रा मे उन्हें चना भी नहीं मिल रहा. हालांकि वन विभाग की ओर से इनकी देखरेख के लिए व्यवस्था की जा रही है. वन विभाग के कर्मचारी ललित मंडल हर रोज 12 से 15 किलो चना बंदरों को खिला रहे हैं. उनका दावा है कि हर रोज दिन में दो बार आते हैं. लेकिन वो ये भी स्वीकार करते हैं कि विभाग की ओर से वितरित किया जाने वाला चना काफी नहीं होता है.
अवसाद से गुजर रहे बंदरः रोपवे की वजह से पर्यटकों का दिनभर आना जाना लगा रहता था. रोपवे फिलहाल बंद है, जिसका असर भी साफ दिख रहा है. इसके साथ ही पर्याप्त खाना ना मिलने से एक तरह से ये बंदर अवसाद से पीड़ित होते दिख रहे हैं. वहीं आसपास के लोगों का मानना है कि यह हनुमान अब टोली बनाकर खाने की तलाश में आसपास के गांव की ओर जाने लगे हैं. गांव पहुंचकर जो भी इन्हें खाने की वस्तु दिख जाती है उसपर ये टूट पड़ते हैं. घर में चाहे वो पकाया भोजन ही क्यों ना हो, ग्रामीणों को इस बात का डर सता रहा है कि अगर रोपवे को चालू होने में ज्यादा वक्त लगेगा तो आने वाले समय में खेतों में जो फसल लगी है वो भी इन बंदरों का निवाला बन जाएगा.
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त्रिकूट पर्वत रोपवे हादसाः 10 अप्रैल को देवघर में त्रिकुट पर्वत रोपवे हादसा हुआ था. इसमें 1200 फीट की ऊंचाई पर रोपवे केबिन में लोग फंस गए थे. मशक्कत के बाद सेना, वायुसेना, आईटीबीपी, एनडीआरएफ की टीम ने जिला प्रशासन की मदद से रेस्क्यू अभियान चलाया. 48 घंटे चले इस रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद भी तीन लोगों को जान नहीं बचाई जा सकी थी. रोपवे संचालन के दौरान कई ट्रॉलियों के एक-दूसरे से टकरा जाने से ये हादसा हुआ था. इस हादसे के बाद रोपवे और त्रिकुट पहाड़ को पूरी तरह से सील कर दिया गया. हालांकि आज तक जांच टीम त्रिकूट पहाड़ की तलहटी तक भी नहीं पहुंची है, पहाड़ की चोटी तो दूर की बात है. रोपवे बंद होने से सैलानियों का पहाड़ी पर पहुंचना पूरी तरह से बंद हो गया है.