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'नीलचक्र' पर सवार देवी ने रोका था 'रावण का रास्ता', वरना लंका में स्थापित होते रावणेश्वर महादेव - झारखंड न्यूज

सावन का पवित्र महीना चल रहा है. देवघर में हजारों की संख्या में रोजाना शिवभक्त आ रहे हैं और बाबा के दर्शन कर रहे हैं. बाबा बैद्यनाथ की स्थापना को लेकर शास्त्रों में कहा गया है कि अगर मां कामाख्या ने रावण का रास्ता नहीं रोका होता, तो बाबा बैद्यनाथ लंका में स्थापित हो जाते.

बाबा बैद्यानाथ मंदिर
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Published : Jul 21, 2019, 6:08 PM IST

Updated : Jul 21, 2019, 11:21 PM IST

देवघरः बाबा बैद्यनाथ की महिमा का बखान पुराणों और शास्त्रों में किया गया है. लेकिन एक दिलचस्प लोकोक्ति यह है कि अगर देवी कामाख्या ने रावण का रास्ता नहीं रोका होता, तो त्रेता युग में बाबा बैद्यनाथ लंका में स्थापित हो जाते.

देखें पूरी खबर

शास्त्रों के मुताबिक, त्रेता युग में जब रावण भोलेनाथ को प्रसन्न कर लंका लेकर चला था. उसी वक्त नील पर्वत के चक्र पर सावर होकर स्वयं देवी कामाख्या ने रावण का रास्ता रोक लिया था. माता पार्वती के ह्रदय स्थल यानी ह्रदय पीठ बाबाधाम में शिवलिंग को स्थापित कर दिया था. मां कामाख्या के इस कार्य से देवलोक के तमाम देवताओं ने राहत की सांस ली थी. यही वजह है कि देवनगरी में बाबा बैद्यनाथ के मंदिर के ठीक बाहर स्थापित उस चक्र की भी बड़ी ही आस्था भाव से पूजा अर्चना की जाती है.

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बता दें कि बैद्यनाथ धाम के मंदिर प्रांगण में 22 देवी देवताओं के मंदिर स्थापित हैं. लेकिन भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए नीलचक्र की पूजा भी उतनी ही जरूरी है जितनी महादेव की.

देवघरः बाबा बैद्यनाथ की महिमा का बखान पुराणों और शास्त्रों में किया गया है. लेकिन एक दिलचस्प लोकोक्ति यह है कि अगर देवी कामाख्या ने रावण का रास्ता नहीं रोका होता, तो त्रेता युग में बाबा बैद्यनाथ लंका में स्थापित हो जाते.

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शास्त्रों के मुताबिक, त्रेता युग में जब रावण भोलेनाथ को प्रसन्न कर लंका लेकर चला था. उसी वक्त नील पर्वत के चक्र पर सावर होकर स्वयं देवी कामाख्या ने रावण का रास्ता रोक लिया था. माता पार्वती के ह्रदय स्थल यानी ह्रदय पीठ बाबाधाम में शिवलिंग को स्थापित कर दिया था. मां कामाख्या के इस कार्य से देवलोक के तमाम देवताओं ने राहत की सांस ली थी. यही वजह है कि देवनगरी में बाबा बैद्यनाथ के मंदिर के ठीक बाहर स्थापित उस चक्र की भी बड़ी ही आस्था भाव से पूजा अर्चना की जाती है.

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बता दें कि बैद्यनाथ धाम के मंदिर प्रांगण में 22 देवी देवताओं के मंदिर स्थापित हैं. लेकिन भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए नीलचक्र की पूजा भी उतनी ही जरूरी है जितनी महादेव की.

Intro:देवघर 'नीलचक्र' पर सावर देवी ने रोका था 'रावण का रास्ता', वरना लंका में स्थापित हो जाते रावणेश्वर महादेव।


Body:एंकर- कहते हैं अगर देवी कामाख्या ने रावण का रास्ता नहीं रोका होता तो, त्रेता युग मे महादेव बाबा बैद्यनाथ लंका में स्थापित हो जाते। शास्त्रों के मुताबिक, त्रेता युग मे जब रावण भोलेनाथ को प्रसन्न कर लंका लेकर चला तब, नील पर्वत के चक्र पर सावर होकर स्वयं देवी कामाख्या ने रावण का रास्ता रोक लिया था। आए माता पार्वती के ह्रदय स्थल यानी, ह्रदय पीठ बाबाधाम में शिवलिंग को स्थापित कर दिया था। माता कामाख्या के इस कार्य से देवलोक के तमाम देवताओं ने राहत की सांस ली थी। यही वजह है कि, देवनगरी में बाबा बैद्यनाथ के मंदिर के ठीक बाहर स्थापित उस चक्र की भी बड़े ही आस्था भाव से पूजा अर्चना की जाती है।


Conclusion:आपको बता दें कि, बैधनाथ धाम के मंदिर प्रांगण में 22 देवी देवताओं के मंदिर स्थापित हैं लेकिन, भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए उन तमाम नीलचक्र की पूजा भी उतनी ही ज़रूरी है जितनी महादेव की।

बाइट दुर्लभ मिश्रा, तीर्थ पुरोहित बाबा मंदिर।
Last Updated : Jul 21, 2019, 11:21 PM IST
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