देवघर: द्वादश ज्योतिर्लिंग में सर्वश्रेष्ठ कामनालिंग बाबा बैद्यनाथ की पावन भूमि यूं तो अपनी महात्म्य के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. लेकिन बहुत ही कम लोगों को पता है कि यह वही पवित्र स्थल है जहां शिव और शक्ति का मिलन होता है. एक साथ ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ और कहीं नहीं है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवघर में शिव से पहले शक्ति का वास है. शक्ति स्थल होने के कारण ही देवघर में केवल शिवरात्रि ही नहीं शारदीय नवरात्र भी बड़े ही धूमधाम से परंपरानुसार मनाया जाता है.
चिता भूमि है देवघर
देवघर में ज्योतिर्लिंग के साथ ही शक्तिपीठ भी है. यहां माता सती का हृदय गिरा था. इसलिए इसे हृदयपीठ भी कहते हैं. हृदयपीठ के साथ-साथ देवघर की धरती को चिता भूमि के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि भगवान शिव देवी सती के शव को लेकर जब तांडव कर रहे थे उस वक्त भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से देवी सती का हृदय देवघर में ही गिरा था. मान्यताओं के अनुसार उस अंग का यहां देवता विधि-विधान पूर्वक अग्नि संस्कार करते हैं. इसी कारण ही इसे चिता भूमि कहते हैं. देवघर के बारे में मान्यता है कि आज भी यहां की मिट्टी की खुदाई करने पर अंदर से राख निकलती है. वहीं, जहां सती का हृदय गिरा है उसी स्थान पर ही बाबा बैधनाथ की स्थापना की गई है.
ये भी पढ़ें- आज से शुरू होगी मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना, घोड़े पर सवार होकर आएंगी मां दुर्गा
देवघर में नहीं पूरी होती है किसी कि साधना
देवघर के शमशान को महाशमशान का दर्जा दिया गया है. तंत्र विद्या के क्षेत्र में देवघर का अपना महत्वपूर्ण स्थान है. जानकारों की मानें तो यहां कोई भी तांत्रिक अपनी साधना पूरी नहीं कर सका है. मां काली के महान उपासक बामाखेपा सहित कई महान तांत्रिकों के देवघर में तंत्र साधना के लिए पहुंचने के प्रमाण भी मिलते हैं लेकिन किसी की भी साधना यहां पूरी नहीं हो सकी है. शक्तिपीठ होने के कारण ही इसे भैरव का स्थान भी माना गया है.
ये भी पढ़ें- Navratri 2019: शारदीय नवरात्र का उत्साह, पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा
नवरात्र में बंद रहते हैं माता काली, पार्वती और संध्या मंदिर के पट
अपनी विभिन्न मान्यताओं के अनुसार शारदीय नवरात्र में यहां की पूजा व्यवस्था भी बिल्कुल अलग होती है. बाबा मंदिर प्रांगण स्थित माता जगत जननी और भगवान महाकाल मंदिर में महापंचमी तिथि से ताड़ के पत्ते से गहवर बनाकर विशेष पूजा की जाती है. यहां विधि-विधान के अनुसार कलश स्थापना तो होती ही है. बलि की प्रथा भी यहां प्रचलन में है. वहीं, शारदीय नवरात्र की महापंचमी तिथि से लेकर विजयादशमी तक माता काली, माता पार्वती और माता संध्या मंदिर का पट आम भक्तों के लिए बंद रहता है. ज्योतिर्लिंग के साथ-साथ शक्तिपीठ स्थल होने के कारण ही मान्यता है कि यहां आए भक्तों को दोहरे फल की प्राप्ति होती है.