देवघर: द्वादश ज्योतिर्लिंग में सर्वश्रेष्ठ कामनालिंग बाबा बैद्यनाथ (Baba Baidyanath Dham Deoghar) की पावन भूमि यूं तो अपनी महात्म्य के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. लेकिन बहुत ही कम लोगों को पता है कि यह वही पवित्र स्थल है जहां शिव और शक्ति का मिलन होता है. एक साथ ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ और कहीं नहीं है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवघर में शिव से पहले शक्ति का वास है. शक्ति स्थल होने के कारण ही देवघर में केवल शिवरात्रि ही नहीं शारदीय नवरात्र भी बड़े ही धूमधाम से परंपरानुसार मनाया जाता है.
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ह्रदयपीठ और चिता भूमि भी है देवघर: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवघर में शिव से पहले शक्त्ति का वास है. बावन शक्ति पीठों में इसे ह्रदयपीठ के रूप में जाना जाता है. कहा जाता है कि जब भगवान शिव देवी सती के शव को लेकर जब तांडव कर रहे थे, उस वक्त भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से देवी सती का हृदय देवघर में ही गिरा था. मान्यताओं के अनुसार देवताओं ने उस अंग का यहां विधि-विधान पूर्वक अग्नि संस्कार किया था. इसी कारण ही इसे चिता भूमि के नाम से भी जाना जाता है. देवघर के बारे में मान्यता यह भी है कि आज भी यहां की मिट्टी की खुदाई करने पर अंदर से राख निकलती है. वहीं, जहां सती का हृदय गिरा है उसी स्थान पर ही बाबा बैधनाथ की स्थापना की गई है.
शारदीय नवरात्रि में होती है विशेष पूजा: शारदीय नवरात्रि में यहां की पूजा व्यवस्था भी बिल्कुल अलग होती है. महापंचमी तिथि से ताड़ के पत्ते से गहवर बनाकर बाबा मंदिर प्रांगण स्थित माता जगतजननी और भगवान महाकाल मंदिर में विशेष पूजा की जाती है. वहां विधि-विधान के अनुसार कलश स्थापन होती है. इसके अलावा बलि की प्रथा भी यहां प्रचलन में है. वहीं शारदीय नवरात्र की महापंचमी तिथि से लेकर विजयादशमी तक माता काली, माता पार्वती और माता संध्या मंदिर का पट आम भक्तों के लिए बंद रहता है.
हवन कुंड में दी जाती है गुप्त आहूति: मंदिर के पुजारी के मुताबिक इस हवन कुंड में तंत्र विधि-विधान से आहूति दी जाती है. इसे आम लोगों को बताना भी वर्जित है. देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम में एक ऐसा हवन कुंड है, जिसमें शारदीय नवरात्र और दीपावली के मौके पर ही आहूति दी जाती है. बाकी दिनों में इस कुंड का दरबाजा बंद रहता है. इसलिए भक्त बाहर से इसकी पूजा-अर्चना करते हैं. साल में दो बार, नवरात्र और दीपावली के दौरान यहां हवन भी होता है. वहीं, रोजाना ग्यारह सौ फूलों और गुप्त पदार्थों की आहूति दी जाती है. इस बार 47 साल बाद मंदिर में शारदीय नवरात्रि के पहले दिन सरदार पंडा के हाथों नवरात्र पूजा का संकल्प किया गया.