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Sawan 2023: 18 जुलाई से बांग्ला सावन और मलमास की होगी शुरुआत, जानिए क्या है मलमास का महत्व - देवघर के तीर्थ पुरोहित विनोद द्वारी

लंबे समय के बाद इस वर्ष सावन मास में मलमास लग रहा है. इससे सावन का महत्व बढ़ गया है. शास्त्रों के अनुसार इस माह में भगवान शिव की पूजा और दान-पुण्य करने का विशेष फल की प्राप्ति होती है. इसके बीच 18 जुलाई से बांग्ला श्रावण की शुरुआत हो रही है.

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Bangla Sawan And Malmas
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Published : Jul 17, 2023, 2:25 PM IST

देवघरः पवित्र श्रावण मास के बीच 19 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद मलमास (पुरुषोत्तम मास) का संयोग लग रहा है. वहीं सावन की दूसरी सोमवारी को अमावस्या पड़ने के कारण इस दिन का महत्व बढ़ गया है. साथ ही सोमवार को ही कर्क संक्रांति भी है. अनूठे संयोग के बीच 18 जुलाई मंगलवार से बांग्ला श्रावण की भी शुरुआत हो जाएगी. मलमास और बांग्ला श्रावण एक साथ निरंतर एक मास 16 अगस्त तक चलेगा.

ये भी पढ़ें-सावन का दूसरा सोमवार: बाबा धाम में उमड़ी भक्तों की भारी भीड़, लंबी लाइनों में लग श्रद्धालु अपनी बारी का कर रहे इंतजार

बंगाल, यूपी और असम में मलमास का है खास महत्वः मलमास मेला समापन के उपरांत 17 से 31 अगस्त तक पुन: श्रावणी मेला का दूसरा पखवारा शुरू हो जाएगा. बिहार-झारखंड में मान्यता है कि मलमास के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है, लेकिन इसके ठीक विपरीत पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और असम के लोग इसे विशेष रूप से मानते हैं. इन प्रदेश के लोगों के लिए मलामास से मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं. इस माह में नदियों के तट पर मेला लगता है. साथ ही इस महीने में दान-पुण्य करने का फल अक्षय होता है. यदि दान न किया जा सके तो ब्राह्माणों और संतों की सेवा सर्वोत्तम मानी गई है. मान्यता है कि दान में खर्च किया गया धन क्षीण नहीं होता. धन में उत्तरोत्तर बढ़ोतरी होती है. जिस प्रकार छोटे से वट बीज से विशाल वृक्ष पैदा होता है, ठीक वैसे ही मलमास में किया गया दान अनंत फलदायक सिद्ध होता है.

जानें मलमास कब और कैसे पड़ता हैः इस संबंध में देवघर के तीर्थ पुरोहित विनोद द्वारी बताते हैं कि मलमास में सूर्य संक्रांति नहीं होती उसे अधिकमास, लोंद मास, मलमास या पुरुषोत्तम मास कहते हैं. इसको आम भाषा में कहा जाता है कि जिस मास में एक अमावस्या से दूसरे अमावस्या के बीच में कोई सूर्य की संक्रांति न पड़े उसे अधिक मास कहते हैं. संक्रांति का अर्थ है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना. अधिमास 32 माह 16 दिन तथा चार घड़ी के अंतर से आता है.

देवघरः पवित्र श्रावण मास के बीच 19 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद मलमास (पुरुषोत्तम मास) का संयोग लग रहा है. वहीं सावन की दूसरी सोमवारी को अमावस्या पड़ने के कारण इस दिन का महत्व बढ़ गया है. साथ ही सोमवार को ही कर्क संक्रांति भी है. अनूठे संयोग के बीच 18 जुलाई मंगलवार से बांग्ला श्रावण की भी शुरुआत हो जाएगी. मलमास और बांग्ला श्रावण एक साथ निरंतर एक मास 16 अगस्त तक चलेगा.

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बंगाल, यूपी और असम में मलमास का है खास महत्वः मलमास मेला समापन के उपरांत 17 से 31 अगस्त तक पुन: श्रावणी मेला का दूसरा पखवारा शुरू हो जाएगा. बिहार-झारखंड में मान्यता है कि मलमास के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है, लेकिन इसके ठीक विपरीत पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और असम के लोग इसे विशेष रूप से मानते हैं. इन प्रदेश के लोगों के लिए मलामास से मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं. इस माह में नदियों के तट पर मेला लगता है. साथ ही इस महीने में दान-पुण्य करने का फल अक्षय होता है. यदि दान न किया जा सके तो ब्राह्माणों और संतों की सेवा सर्वोत्तम मानी गई है. मान्यता है कि दान में खर्च किया गया धन क्षीण नहीं होता. धन में उत्तरोत्तर बढ़ोतरी होती है. जिस प्रकार छोटे से वट बीज से विशाल वृक्ष पैदा होता है, ठीक वैसे ही मलमास में किया गया दान अनंत फलदायक सिद्ध होता है.

जानें मलमास कब और कैसे पड़ता हैः इस संबंध में देवघर के तीर्थ पुरोहित विनोद द्वारी बताते हैं कि मलमास में सूर्य संक्रांति नहीं होती उसे अधिकमास, लोंद मास, मलमास या पुरुषोत्तम मास कहते हैं. इसको आम भाषा में कहा जाता है कि जिस मास में एक अमावस्या से दूसरे अमावस्या के बीच में कोई सूर्य की संक्रांति न पड़े उसे अधिक मास कहते हैं. संक्रांति का अर्थ है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना. अधिमास 32 माह 16 दिन तथा चार घड़ी के अंतर से आता है.

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