चतराः जिले की औद्योगिक नगरी टंडवा में छह से अधिक कोल परियोजनाएं संचालित हैं. इसके अलावा यहां चार अन्य कोल परियोजनाएं खुल रहे हैं. जिससे सीसीएल न सिर्फ प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये मुनाफा कमा रही है, बल्कि अपना व्यापार भी तेजी से बढ़ा रही है. बावजूद इसके यहां निवास करने वाले लोगों के चेहरे की चमक को काले हीरे की चमक ने फीका कर दिया है. लोगों का विकास होने के बजाय उनका विनाश हो रहा है. उन्हें न तो योजनाओं का लाभ मिल रहा है और न ही कोल कंपनियां क्षेत्र का विकास कर रही हैं.
धूलकणों से वातावरण दूषित
एशिया की विख्यात कोल परियोजनाओं से आम लोगों को बहुत सरोकार नहीं है. कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) की राशि विस्थापित और प्रभावित गांवों के विकास में खर्च नहीं हो रही है. यही कारण है कि ग्रामीणों के हिस्से में अब तक धूलकण ही आए हैं. धूलकणों से वहां का वातावरण दूषित हो रहा है. वायुमंडल इतना प्रभावित हो गया है कि शुद्ध हवा मिलना मुश्किल है. वहीं इससे पानी की शुद्धता भी प्रभावित हो गई है. नदी और नालों का अस्तित्व मिट रहा है. लोगों को बिजली और शुद्ध पानी भी नसीब नहीं हो रहा है.
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बीमारियों से ग्रसित स्थानीय
हवा के प्रदूषित होने से लोग तमाम तरह की बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं. सरकारी डॉक्टरों की रिपोर्ट को मानें, तो कुल आबादी के करीब चार प्रतिशत लोग यक्ष्मा, सांस, कान, आंख जैसे रोगों से पीड़ित हैं. वहीं, इससे आम्रपाली और मगध के विस्थापित रैयत निराश हैं. प्रभावित और विस्थापित परिवारों को विश्वास था कि परियोजना को आने से उनकी स्थिति में सुधार होगा और उन्हें बिजली मिलेगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.
घरों में धूलकणों की परत
कोयला के धूलकणों से इंसानी जिंदगियां बर्बाद हो रही हैं. कोल वाहनों के परिचालन से सड़क के आसपास के घरों में धूलकणों की परत बैठ जाती है. लोगों का कहना है कि सरकार उनकी समस्याओं पर गंभीरता से विचार नहीं कर रही है और धूलकण उनकी जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं. वहीं इस मामले में डीसी का कहना है कि एसडीएम को अवगत करा दिया गया है.