चतरा: गिद्धौर प्रखंड के बारियातू पंचायत का झरना गांव विकास से दूर है. इस गांव में ना तो पुल है और ना ही सड़क. कई सालों से ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. इस गांव के ग्रामीण बताते हैं कि किसी ने आज तक सड़क नहीं देखी. गांव के लोगों को खेतों की पगडंडियों से आना-जाना पड़ता है. नदी पार कर लोग खाटपर लादकर मरीज को 3 किलोमीटर पैदल अस्पताल ले जाते हैं.
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यह गांव झारखंड के वर्तमान और पिछली सभी सरकारों की पोल खोलती नजर आती है. स्थानीय लोगों ने बताया कि इस गांव के सड़क मार्ग से नहीं जुड़ने के चलते युवक-युवतियों की शादी में दिक्कत आती है. आज भी कई ऐसे युवक युवतियां हैं, जिनकी शादी पुल और सड़क के अभाव के कारण नहीं हो पाई. कोई भी लड़की पक्ष इस गांव के लड़के से शादी करना नहीं चाहता. लोग पहले ही देख कर भाग जाते हैं.
मरीजों के लिए एंबुलेंस तक नहीं
वहीं लड़की पक्ष के लोग कहते हैं कि जिस गांव में सड़क, पुल और अस्पताल ना हो, वहां अपनी बेटी की शादी कैसे करें. बेटा हो या बेटी, उनकी शादी अच्छे परिवार में नहीं हो पाती है. अगर किसी की तबीयत खराब हो जाए, चाहे वह गर्भवती महिला हो या बुजुर्ग, उसे अस्पताल तक पहुंचने के लिए खाट का सहारा लेना पड़ता है. चार लोग अपने कंधों पर नदी पारकर पगडंडियों और कीचड़ से होकर जाते हैं. सड़क और पुल नहीं होने से गांव में ना ही एंबुलेंस पहुंच पाती है और ना ही स्कूल बस. दरवाजे तक चार पहिया की बात तो दूर, दो पहिया वाहन भी नहीं पहुंच पाते हैं.
वोट बहिष्कार का ऐलान
ग्रामीणों ने ऐलान किया है कि अगर अब पंचायत चुनाव से पहले सड़क नहीं बनती है, तो हम लोग किसी को वोट नहीं देंगे. जो भी नेता वोट मांगने गांव में आएगा, उनका विरोध होगा. ज्यादा परेशानी बाढ़ और बारिश के दिनों में होती है. जब गांव की नदी उफान पर होती है, चारों ओर से यह गांव पानी से घिर जाता है. लोग घर में ही कैद हो जाते हैं. भले ही सरकार और स्थानीय प्रशासन गांवों की विकास की बात करते हों, लेकिन इस गांव की स्थिति दर्शाती है कि विकास तो दूर, गांव में आवागमन तक के रास्ते और पुल नहीं होना सरकारी योजनाएं बेमतलब हैं.
विकास के नाम पर इस गांव को सिर्फ एक बिजली मिली है, जो बिजली विभाग की ओर से पोल नहीं लगाने के कारण ग्रामीण आपस में चंदा कर खूंटों के सहारे बिजली का लाभ उठा रहें हैं. इस गांव के ग्रामीणों को पुल और सड़क की कमी बहुत खलती है. यहां के लोग नदी का गंदा पानी पीने को मजबूर है. शुद्ध पेयजल आज भी झरना गांव को नसीब नहीं हुआ है.
ग्रामीणों की नाराजगी
गांव के लोगों का कहना है कि चुनाव आते ही नेता आते हैं, वादे करते हैं. जीतने के बाद शक्ल तक दिखाने नहीं आते हैं और ना ही सरकारी आला अधिकारी गांव की तरफ पहुंचते हैं. झरना गांव में रहने वाली यशोदा देवी कहती हैं कि यही है कि जब से शादी हुई, तब से देख रहे हैं कि सड़क नहीं है. खेतों से होकर इस गांव में आए थे. नदी के किनारे घर है. सड़क और पुल नहीं होने से दिक्कत है. इतनी उम्र हो गई है, नेता आते हैं और सड़क बनाने की बात करके चले जाते हैं. मरीजों को अस्पताल ले जाने की भी कोई व्यवस्था नहीं है.
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वहीं, अजय कुमार कहते हैं कि सड़क और पुल नहीं होने की वजह से हम लोगों की शादी नहीं हो रही है. मेरी शादी भी कई बार टूट गई. रास्ता और पुल नहीं होगा तो बारात कैसे जाएगी, कैसे कैसे आएगी. सामानों की डिलीवरी कैसे होगी. उधर, नकुलदेव दांगी कहते हैं कि नदी पार कर खाट पर ही बीमार लोगों को सड़क तक ले जाते हैं. सड़क तो अपने जीवन में अभी तक नहीं देखी. बाप-दादा ने भी नहीं देखी.
इंद्री देवी कहती हैं कि गांव में कोई सुविधा नहीं है. गांव में चापाकल नहीं होने के कारण पीने का पानी नदी से लाना पड़ता है. बरसात के मौसम में तो और बुराहाल हो जाता है. पूरा गांव टापू बन जाता है. आने जाने का कोई रास्ता नहीं है. नेता आकर फर्जी वादा करते हैं. हम लोगों ने यही सोचा है कि जो नेता आते हैं, उनको सबक सीखा कर रहेंगे. वोट का बहिष्कार करेंगे.