चतरा: माइनिंग क्षेत्र में विकास के लिए बनाए गए डीएमएफटी फंड ऑडिट में बड़ी गड़बड़ी का खुलासा हुआ है. दिसंबर 2020 से अप्रैल 2022 के बीच छह जिलों के डीएमएफटी फंड के ऑडिट में झारखंड के प्रिंसिपल ऑडिटर जनरल (पीएजी) ने चार जिलों में डीएमएफटी फंड में 2015 से 2021 के बीच गड़बड़ी की बात सामने आई है. जिन जिलों में इस फंड में धांधली सामने आई है, इसमें चतरा भी शामिल है. पीएजी ने 22 अप्रैल को ऑडिट रिपोर्ट मुख्य सचिव को सौंप दी. इस रिपोर्ट में गड़बड़ी करने वालों से वसूली की भी अनुशंसा की गई है.
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बता दें कि माइनिंग से प्रभावित क्षेत्र में उच्च प्रथामिकता की योजनाओं के अलावा पर्यावरण सहित आधारभूत संरचना जैसे सिंचाई, वाटरशेड व ऊर्जा से जुड़ी योजनाओं पर खर्च को लेकर केंद्र सरकार की ओर से डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन ट्रस्ट (डीएमएफटी) की स्थापना की गई है. पीएजी इंदु अग्रवाल की ओर से मुख्य सचिव को सौंपी गई ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि डीएमएफटी फंड से योजनाओं के क्रियान्वयन में चतरा में उपायुक्तों ने मनमानी की है. तत्कालीन उपायुक्तों ने फंड की राशि से केंद्र सरकार द्वारा तय कानून और नियमों को ताख पर रखकर खर्च किया.
डीएमएफटी फंड की ऑडिट रिपोर्ट में माइन्स मिनरल्स डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन एक्ट के प्रावधानों के तहत एकत्र की गई राशि के दुरुपयोग की बात कही गई है. पीएजी ने बताया कि चतरा में डीएमएफटी फंड से डीसी कार्यालय में अत्याधुनिक कॉन्फ्रेंस हॉल का निर्माण कराने, खराब चापाकलों की मरम्मत और नए चापाकल लगवाने के नाम पर जमकर राशि की बंदरबाट की गई. इतना ही नहीं अपने द्वारा नियम विरुद्ध किए गए धांधली के खर्चों को भी प्रधानमंत्री खनन क्षेत्र कल्याण योजना का हिस्सा बता दिया गया.
पीएजी इंदु अग्रवाल ने ऑडिट में पकड़ी गई करीब सात करोड़ रुपये की हेराफेरी और गड़बड़ी पर विभाग की चुप्पी को देखते हुए इस मामले में मुख्य सचिव से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया है. प्रिंसिपल ऑडिटर जनरल ने डीएमएफटी फंड का गलत इस्तेमाल करनेवालों पर कार्रवाई करने और पैसा वसूलने की अनुशंसा भी सरकार से की है.
चतरा में डीएमएफटी फंड का दुरुपयोगः सरकार को भेजी गई रिपोर्ट में पीएजी ने कहा है कि डीएमएफटी से माइनिंग से प्रभावित क्षेत्र में उच्च प्रथामिकता की योजनाओं पर 60 प्रतिशत और 40 प्रतिशत राशि पर्यावरण सहित आधारभूत संरचना जैसे सिंचाई, वाटरशेड, ऊर्जा से जुड़ी योजनाओं पर खर्च करना है. लेकिन चतरा, बोकारो, लोहरदगा, और रांची आदि जिलों में इस पैसे का गलत इस्तेमाल किया गया. चतरा में डीसी ऑफिस की मरम्मत कराई गई.
चतरा में डीएमएफटी फंड से करीब 75 लाख रुपये उपायुक्त कार्यालय की मरम्मत और थानों में शौचालय निर्माण पर किया गया. इस तरह के काम को प्रशासनिक खर्च के रूप में दिखाया गया है, जबकि प्रधानमंत्री खनन क्षेत्र कल्याण योजना के तहत अफसरों के कार्यालयों की मरम्मत आदि का खर्च प्रशासनिक खर्च के दायरे में नहीं आता है. रिपोर्ट के अनुसार चतरा में वर्ष 2017-19 के बीच 4.79 करोड़ की लागत से पेयजल स्रोतों की मरम्मत और थानों में शौचालय बनाने की योजना स्वीकृत की गई, जबकि नियमानुसार इस तरह की योजनाओं पर मिनरल डेवलपमेंट फंड का पैसा खर्च नहीं किया जा सकता है.
इन कामों पर सवाल
- चतरा के विभिन्न थानों में 1.15 करोड़ की लागत से शौचालयों का निर्माण
- चतरा में 4.25 करोड़ की लागत से लगाए गए चापानल और खराब चपकलों की मरम्मत
- चतरा में 53 लाख की लागत से वाटर सप्लाई स्कीम का जीर्णोद्धार
- चतरा में 22 लाख की लागत से उपायुक्त कार्यालय का भवन
- चतरा में 25 लाख की लागत से अत्याधुनिक उपायुक्त मीटिंग हॉल का निर्माण
- चतरा में 39 लाख की लागत से डीसी कार्यालय में रिपेयरिंग व अन्य काम
उपायुक्तों पर गाज गिरनी तय! पीएजी ने चतरा में डीएमएफटी फंड का 5 वर्षों का ही ऑडिट किया है. इस दौरान 7 करोड़ रुपये की हेराफेरी और गड़बड़ी का मामला उजागर हुआ है. पीएजी ने इस अवधि में जिले में पदस्थापित सम्बंधित उपायुक्तों को कसूरवार मानते हुए उनसे राशि वसूली की अनुशंसा की है. ऐसे में उम्मीद लगाई जा रही हैं कि संबंधित उपायुक्तों पर गाज गिरनी तय है.
बैंकों से मिली राशि और जिलों के लेखा-जोखा में अंतरः गौरतलब है कि पीएजी ने राज्य के छह जिलों रांची, बोकारा, चतरा, हजारीबाग, धनबाद व लोहरदगा के ऑडिट के दौरान चार जिलों बोकारो, चतरा, लोहरदगा व रांची में इस पैसे का गलत इस्तेमाल को पकड़ा है. इन जिलों में हुई ऑडिट के आधार पर ही सरकार को रिपोर्ट भेजी गई है. रिपोर्ट में डीएमएफटी में लीज धारकों से मिली राशि और खर्च का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि 2015-20 तक की अवधि में इस मद में कुल 5517.56 करोड़ रुपये मिले. इसमें से 5040.25 करोड़ रुपये की लागत पर विभिन्न प्रकार की योजनाएं स्वीकृत की गई. इसमें से 2673.19 करोड़ रुपये खर्च हुआ.
रिपोर्ट में कहा गया है कि निदेशक खान के अनुसार कोयले को छोड़ कर शेष मेजर मिनरल्स से 2017-20 तक की अवधि में राॅयल्टी के रूप में 15188.06 करोड़ रुपये की वसूली हुई. इसके हिसाब से डीएमएफटी फंड के रूप में 4556.41 करोड़ रुपये मिलना चाहिए. हालांकि 3751.21 करोड़ रुपये की वसूली हुई, यानी 805.20 करोड़ रुपये कम वसूली हो सकी. डीएमएफटी फंड के रूप में बैंक से मिली राशि और जिलों के लेखा-जोखा की राशि में अंतर है. ऑडिट के दौरान मिनरल डेवलपमेंट की राशि नकद के रूप में भी स्वीकार की गई है. इससे मिनरल डेवलपमेंट की राशि में गड़बड़ी की आशंका है.