चतरा: जल, जंगल, जमीन, संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए बनाए गए झारखंड की संस्कृति के संरक्षक ही आज अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं. झारखंड की संस्कृति के रक्षक कहलाते हैं यहां के आदिवासी, जनजाति लेकिन इन आदिवासियों तक आज भी विकास की किरण नहीं पहुंच पाई है. चतरा के सिमरिया प्रखंड के जबड़ा गांव में रहने वाली बिरहोर जनजाति के हालात तो यही हकीकत बयां करते हैं.
विकास योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभ
चतरा में आदिम जनजाति के बिरहोर परिवारों का आजतक सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक विकास नहीं हो पाया है. ऐसा नहीं है कि सरकार ने इनके लिए कोई विकास योजनाएं नहीं चलाई हैं. इनको विकास की दौड़ में शामिल करने के लिए सरकार का प्रयास जारी है. सरकार ने इन तक राशन, गैस, आवास मुहैया कराने के लिए कई योजनाएं चलाई है, लेकिन इसके बादजूद इन्हें न गैस मिला है, न राशन और न ही आवास.
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नहीं मिल रही सरकारी सुविधाएं
बिरहोर जाति के आदिवासी बताते हैं कि इनका प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिल रहा है. ऊपर से सरकारी कीमत पर इन्हें अनाज तक नहीं मिल रहा, गैस तो बहुत दूर की बात है. ऐसे में इनके घर में आज भी खाना बनाने के लिए जलावन की लकड़ियों का ही इस्तेमाल जारी है. बिरहोर महिलाएं रोजाना ईंट और मिट्टी के चूल्हे के जलती अंगेठी में फूंक मारने को विवश हैं. उनका कहना है कि रोजगार के उन्हें सरकार का सहयोग भी नहीं मिल रहा है.
भीख मांगने को भी होते हैं मजबूर
बिरहोर महिलाएं बताती है कि कभी-कभी घर में ऐसी नौबत आ जाती है कि कुछ भी खाने को नहीं होता. ऐसे में इनके बच्चे आंगनबाड़ी केंद्र तो कभी नजदीक के स्कूल जाकर पेट भरते हैं. कभी कभी तो भीख मांग कर ही अपनी भूख मिटाने को भी मजबूर होना पड़ता है.