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भुखमरी की कगार पर बिरहोर परिवार, सरकारी सुविधाओं से हैं पूरी तरह महरूम

चतरा के सिमरिया प्रखंड के जबड़ा गांव के बिरहोर परिवार आज भी विकास की रोशनी से कोसों दूर है. इन्हें विकास की दौड़ में शामिल करने के लिए जमीनी स्तर से पहल करने की जरूरत है.

बिरहोर जनजाति का घर
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Published : Nov 6, 2019, 12:49 PM IST

चतरा: जल, जंगल, जमीन, संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए बनाए गए झारखंड की संस्कृति के संरक्षक ही आज अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं. झारखंड की संस्कृति के रक्षक कहलाते हैं यहां के आदिवासी, जनजाति लेकिन इन आदिवासियों तक आज भी विकास की किरण नहीं पहुंच पाई है. चतरा के सिमरिया प्रखंड के जबड़ा गांव में रहने वाली बिरहोर जनजाति के हालात तो यही हकीकत बयां करते हैं.

देखें पूरी खबर


विकास योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभ
चतरा में आदिम जनजाति के बिरहोर परिवारों का आजतक सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक विकास नहीं हो पाया है. ऐसा नहीं है कि सरकार ने इनके लिए कोई विकास योजनाएं नहीं चलाई हैं. इनको विकास की दौड़ में शामिल करने के लिए सरकार का प्रयास जारी है. सरकार ने इन तक राशन, गैस, आवास मुहैया कराने के लिए कई योजनाएं चलाई है, लेकिन इसके बादजूद इन्हें न गैस मिला है, न राशन और न ही आवास.

ये भी पढ़ें: बूंद-बूंद पानी को तरस रहा आदिवासी परिवार, सरकारी योजनाएं नहीं हो रही मयस्सर


नहीं मिल रही सरकारी सुविधाएं
बिरहोर जाति के आदिवासी बताते हैं कि इनका प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिल रहा है. ऊपर से सरकारी कीमत पर इन्हें अनाज तक नहीं मिल रहा, गैस तो बहुत दूर की बात है. ऐसे में इनके घर में आज भी खाना बनाने के लिए जलावन की लकड़ियों का ही इस्तेमाल जारी है. बिरहोर महिलाएं रोजाना ईंट और मिट्टी के चूल्हे के जलती अंगेठी में फूंक मारने को विवश हैं. उनका कहना है कि रोजगार के उन्हें सरकार का सहयोग भी नहीं मिल रहा है.


भीख मांगने को भी होते हैं मजबूर
बिरहोर महिलाएं बताती है कि कभी-कभी घर में ऐसी नौबत आ जाती है कि कुछ भी खाने को नहीं होता. ऐसे में इनके बच्चे आंगनबाड़ी केंद्र तो कभी नजदीक के स्कूल जाकर पेट भरते हैं. कभी कभी तो भीख मांग कर ही अपनी भूख मिटाने को भी मजबूर होना पड़ता है.

चतरा: जल, जंगल, जमीन, संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए बनाए गए झारखंड की संस्कृति के संरक्षक ही आज अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं. झारखंड की संस्कृति के रक्षक कहलाते हैं यहां के आदिवासी, जनजाति लेकिन इन आदिवासियों तक आज भी विकास की किरण नहीं पहुंच पाई है. चतरा के सिमरिया प्रखंड के जबड़ा गांव में रहने वाली बिरहोर जनजाति के हालात तो यही हकीकत बयां करते हैं.

देखें पूरी खबर


विकास योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभ
चतरा में आदिम जनजाति के बिरहोर परिवारों का आजतक सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक विकास नहीं हो पाया है. ऐसा नहीं है कि सरकार ने इनके लिए कोई विकास योजनाएं नहीं चलाई हैं. इनको विकास की दौड़ में शामिल करने के लिए सरकार का प्रयास जारी है. सरकार ने इन तक राशन, गैस, आवास मुहैया कराने के लिए कई योजनाएं चलाई है, लेकिन इसके बादजूद इन्हें न गैस मिला है, न राशन और न ही आवास.

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नहीं मिल रही सरकारी सुविधाएं
बिरहोर जाति के आदिवासी बताते हैं कि इनका प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिल रहा है. ऊपर से सरकारी कीमत पर इन्हें अनाज तक नहीं मिल रहा, गैस तो बहुत दूर की बात है. ऐसे में इनके घर में आज भी खाना बनाने के लिए जलावन की लकड़ियों का ही इस्तेमाल जारी है. बिरहोर महिलाएं रोजाना ईंट और मिट्टी के चूल्हे के जलती अंगेठी में फूंक मारने को विवश हैं. उनका कहना है कि रोजगार के उन्हें सरकार का सहयोग भी नहीं मिल रहा है.


भीख मांगने को भी होते हैं मजबूर
बिरहोर महिलाएं बताती है कि कभी-कभी घर में ऐसी नौबत आ जाती है कि कुछ भी खाने को नहीं होता. ऐसे में इनके बच्चे आंगनबाड़ी केंद्र तो कभी नजदीक के स्कूल जाकर पेट भरते हैं. कभी कभी तो भीख मांग कर ही अपनी भूख मिटाने को भी मजबूर होना पड़ता है.

Intro:चतरा: भुखमरी के कगार पर है, जबड़ा गांव के बिरहोर परिवार

चतरा/सिमरिया: झारखंड प्रदेश का गठन भले ही आदिवासी और आदिम जनजाति के हित के लिए किया गया हो। लेकिन चतरा जिले के आदिम जनजाति के बिरहोर परिवारों का आजतक सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक विकास नहीं हो पाया है। वैसे तो सरकार द्वारा आदिम जनजाति के बिरहोरों के लिए मुफ्त में अनाज, पीएम उज्जवला गैस योजना, बिरसा आवास के तहत घर और इलाज के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई गईं हैं। लेकिन सरकार की इन योजनाओं की जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। सिमरिया प्रखंड के जबड़ा गांव बिरहोर परिवारों के मुताबिक पिछले कई महीनों से न तो उन्हें अनाज मिला है और न ही उन्हें आजतक पीएम उज्जवला योजना के लाभ। जबड़ा गांव के बिरहोर आज भी आदिम युग में जीने को विवश है। वे लोग जर्जर आवास में रहने को मजबूर है। उज्जवला योजना के लाभ मिलने की आस में बिरहोर महिलाएं रोजाना ईंट और मिट्टी के चूल्हे के जलती आंगेठी में फूंक मारने को विवश है।

1.बाईट--- बिरहोर, देवंती देवी
2.बाईट--- बिरहोर, प्यारी देवीBody:विकास की रोशनी इन बिरहोरों तक नहीं पहुंची है। बिरहोरों के पास न रहने का घर और न सोने का बिस्तर है। बरसात में जर्जर आवास में रहने को मजबूर है। बारिश होने पर घरों में बारिश का पानी भर जाता है। इससे घरों में रखे कपड़े, बिस्तर, खाद्य सामाग्री समेत सारा समान भींग जाता हैं। इससे दिन-रात भूखे रहना पड़ता है। बच्चे आंगनबाड़ी केंद्र तो कभी नजदीक के स्कूल जाकर पेट भरते हैं। कभी कभी तो इन परिवारों को भीख मांग कर ही अपना पेट का भूख मिटाना पड़ता है।Conclusion:कई वर्ष पूर्व बना बिरहोर आवास भी सरकारी उदासीनता से अधूरा पड़ा है। जिससे बरसात के दिनों में तरह-तरह की बीमारी होने की आशंका बनी रहती है। सबसे अधिक परेशानी छोटे-छोटे बच्चों को होती है। बता दे कि आज भी बिरहोर परिवारों को जंगली कंदमूल ही खाकर जीना पड़ता है। सामान्य जनजीवन से दूर यह आज भी सरकारी सहायता से महरूम है। इन बिरहोर परिवारों को सुध लेने वाला न तो प्रशासन और न ही जनप्रतिनिधि हैं।

मोहम्मद अरबाज ईटीवी भारत सिमरिया चतरा
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