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आदिवासी समाज के अस्तित्व को लेकर जन विमर्श का आयोजन, वनाधिकार कानून को बदलने पर की गई चर्चा

वन अधिकार एवं भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर रांची में आदिवासी संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा जन विमर्श का आयोजन किया गया. जिसमें सामाजिक कार्यकर्ता दयामणि बारला ने कहा कि इस जन-विमर्श और चर्चा की जरूरत है.

जानकारी देती दयामणि बारला
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Published : Mar 15, 2019, 8:16 AM IST

रांची: वन अधिकार एवं भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर रांची में आदिवासी संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा जन विमर्श का आयोजन किया गया. जिसमें मुख्य रूप से 2013 में लाए गए वनाधिकार कानून को 2017 में दोबारा लाए गए प्रस्ताव को बदलने पर चर्चा की गई.

जानकारी देती दयामणि बारला

सामाजिक कार्यकर्ता दयामणि बारला ने बताया कि 2013 में लाए गए वनाधिकार कानून को जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी के द्वारा 2017 में बदला गया. इस बदलाव से सिर्फ कॉर्पोरेट घरानों को फायदा दिलाना है और यह बदलाव कहीं ना कहीं आदिवासी समाज के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर रहा है.

साथ ही दयामणि बारला ने बताया कि आज इस जन-विमर्श और चर्चा की जरूरत है. ताकि आने वाले चुनाव में जंगल में रहने वाले जनता जागरूक हो और उन तक संदेश पहुंचे कि इनका जमीन उनका हक है.

रांची: वन अधिकार एवं भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर रांची में आदिवासी संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा जन विमर्श का आयोजन किया गया. जिसमें मुख्य रूप से 2013 में लाए गए वनाधिकार कानून को 2017 में दोबारा लाए गए प्रस्ताव को बदलने पर चर्चा की गई.

जानकारी देती दयामणि बारला

सामाजिक कार्यकर्ता दयामणि बारला ने बताया कि 2013 में लाए गए वनाधिकार कानून को जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी के द्वारा 2017 में बदला गया. इस बदलाव से सिर्फ कॉर्पोरेट घरानों को फायदा दिलाना है और यह बदलाव कहीं ना कहीं आदिवासी समाज के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर रहा है.

साथ ही दयामणि बारला ने बताया कि आज इस जन-विमर्श और चर्चा की जरूरत है. ताकि आने वाले चुनाव में जंगल में रहने वाले जनता जागरूक हो और उन तक संदेश पहुंचे कि इनका जमीन उनका हक है.

Intro:रांची
हितेश
लोकसभा चुनाव में आदिवासी से जुड़े मामले का मुद्दा बनाने की कोशिश में जन संगठन जुट गए हैं।

लोकसभा चुनाव में इस बार वनाधिकार एवं भूमि अधिग्रहण कानून का मुद्दा बेहद अहम हो रहा है।

वन अधिकार एवं भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर रांची में आदिवासी संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा जन विमर्श का आयोजन किया गया ।
जिसमें मुख्य रूप से 2013 में लाए गए वनाधिकार कानून को 2017 में दोबारा लाए गए प्रस्ताव को बदलने और इस बदलाव के कारण आदिवासियों के अस्तित्व पर संकट खड़ा होने की स्थिति पर इस आयोजन में आदिवासी संगठन सामाजिक कार्यकर्ता एवं बुद्धिजीवियों के द्वारा चिंता जताई गई।


Body:कार्यक्रम में शामिल होने आई सामाजिक कार्यकर्ता दयामणि बरला ने बताया कि 2013 में लाए गए वनाधिकार कानून को जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी के द्वारा 2017 में बदला गया। इस बदलाव का सिर्फ कारण कॉर्पोरेट घरानों को फायदा दिलाना है और यह बदलाव कहीं ना कहीं आदिवासी समाज के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर रहा है। इसलिए आज इस जन-विमर्श और चर्चा की जरूरत है। ताकि आने वाले चुनाव में जंगल में रहने वाले जनता जागरूक हो और उन तक के संदेश पहुंचे की इनका जमीन उनका हक है।
बाइट:- दयामनी बरला, समाजिक कार्यकर्ता।


Conclusion:na
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