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रांची के इस संग्रहालय में मौजूद है झारखंड का इतिहास, जानें कैसे थे जनजातियों के शुरुआती दिन - Morabadi

आदिम जनजाति और झारखंड की जनजातियों के बारे में तमाम जानकारियां जोहार संग्रहालय में उपलब्ध हैं. इसके अलावा जनजातियों द्वारा प्रयोग किए जाने वाली कई तरह की जड़ी-बूटी के नमूने भी इस संग्रहालय में मौजूद हैं. इसके अलावा जनजातीय जीवन और संस्कृति से संबंधित उनकी तमाम कलाकृतियां आपको मिल जाएंगी. लेकिन विडंबना यह है कि प्रचार प्रसार की कमी के महत्वपूर्ण जानकारियों से भरा संग्रहालय वीरान पड़ा है.

संग्रहालय में मौजूद कलाकृतियां
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Published : Mar 29, 2019, 1:51 PM IST

रांची: प्रचार प्रसार की कमी के कारण राजधानी रांची स्थित झारखंड के एकमात्र जोहार जनजातीय संग्रहालय में पर्यटक नहीं पहुंच पा रहे हैं. जबकि इस संग्रहालय में झारखंड की धरोहरों से जुड़ी तमाम चीजें मौजूद हैं. जनजातियों के रहन-सहन उनके खान-पान से जुड़ी जानकारियां भी यहां आपको मिल जाएंगी, लेकिन संग्रहालय विभागीय उदासीनता की मार झेलने को मजबूर है.

क्या आपको पता है झारखंड में कितनी जनजाती है, कितनी तरह के वाद्य यंत्र है, किन-किन आभूषणों का उपयोग आदिवासी और जनजाति करते हैं, कृषि के पुराने औजार क्या होते हैं, अगर आपको जानकारी नहीं है तो आपको रांची के मोरहाबादी में मौजूद एकमात्र जनजातीय संग्रहालय में जाना चाहिए. यहां आपको झारखंड की जनजातियों के प्रारंभिक दिन और विशेष अवसर पर प्रयोग किए जाने वाले आभूषण, पोशाक, वाद्य यंत्र, कृषि के औजार, आखेट में प्रयोग किए जाने वाले तीर-धनुष, मछली, चिड़िया और बंदर पकड़ने के जाल जैसी कई चीजें देखने को मिलेंगी.

आदिम जनजाति और झारखंड की जनजातियों के बारे में तमाम जानकारियां इस संग्रहालय में उपलब्ध हैं. इसके अलावा जनजातियों द्वारा प्रयोग किए जाने वाली कई तरह की जड़ी-बूटी के नमूने भी इस संग्रहालय में मौजूद हैं. इसके अलावा जनजातीय जीवन और संस्कृति से संबंधित उनकी तमाम कलाकृतियां आपको मिल जाएंगी. लेकिन विडंबना यह है कि प्रचार प्रसार की कमी के महत्वपूर्ण जानकारियों से भरा संग्रहालय वीरान पड़ा है.

वीडियो में देखें पूरी खबर

मामले पर जब बात की जाती है तो विभागीय अधिकारी चुप्पी साध लेते है, जबकि इस संग्रहालय के प्रबंधक कहते हैं कि बार-बार प्रचार प्रसार संबंधी पत्र भेजे जाने के वाबजूद इस ओर किसी का ध्यान नहीं है. राज्य के इस एकमात्र जनजातीय संग्रहालय में झारखंड की संस्कृतियों की झलक, विभिन्न जनजातियों के साथ मूर्तियां हैं. 32 जनजातियों की कलाकृतियां हैं. उनके रहन-सहन उनकी कार्यशैली को विस्तृत रूप से बताया गया है. इसकी स्थापना 21 अक्टूबर 1953 में हुई. फिर झारखंड बनने के बाद इसका जीर्णोद्धार किया गया.जनजातीय संग्रहालय में खासकर जनजातियों की मूर्ति जैसे असुर जनजाति कच्चा लोहा गलाते हुए, बिरहोर जनजाति जाल बनाते हुए, सौरिया पहाड़िया कुर्दा खेती करते हुए, जनजातीय पंकि नाच, सहकारिता जैसे नमूने हैं, जोकि क्षेत्र की जनजाति जीवन को प्रदर्शित करते हैं.

रांची: प्रचार प्रसार की कमी के कारण राजधानी रांची स्थित झारखंड के एकमात्र जोहार जनजातीय संग्रहालय में पर्यटक नहीं पहुंच पा रहे हैं. जबकि इस संग्रहालय में झारखंड की धरोहरों से जुड़ी तमाम चीजें मौजूद हैं. जनजातियों के रहन-सहन उनके खान-पान से जुड़ी जानकारियां भी यहां आपको मिल जाएंगी, लेकिन संग्रहालय विभागीय उदासीनता की मार झेलने को मजबूर है.

क्या आपको पता है झारखंड में कितनी जनजाती है, कितनी तरह के वाद्य यंत्र है, किन-किन आभूषणों का उपयोग आदिवासी और जनजाति करते हैं, कृषि के पुराने औजार क्या होते हैं, अगर आपको जानकारी नहीं है तो आपको रांची के मोरहाबादी में मौजूद एकमात्र जनजातीय संग्रहालय में जाना चाहिए. यहां आपको झारखंड की जनजातियों के प्रारंभिक दिन और विशेष अवसर पर प्रयोग किए जाने वाले आभूषण, पोशाक, वाद्य यंत्र, कृषि के औजार, आखेट में प्रयोग किए जाने वाले तीर-धनुष, मछली, चिड़िया और बंदर पकड़ने के जाल जैसी कई चीजें देखने को मिलेंगी.

आदिम जनजाति और झारखंड की जनजातियों के बारे में तमाम जानकारियां इस संग्रहालय में उपलब्ध हैं. इसके अलावा जनजातियों द्वारा प्रयोग किए जाने वाली कई तरह की जड़ी-बूटी के नमूने भी इस संग्रहालय में मौजूद हैं. इसके अलावा जनजातीय जीवन और संस्कृति से संबंधित उनकी तमाम कलाकृतियां आपको मिल जाएंगी. लेकिन विडंबना यह है कि प्रचार प्रसार की कमी के महत्वपूर्ण जानकारियों से भरा संग्रहालय वीरान पड़ा है.

वीडियो में देखें पूरी खबर

मामले पर जब बात की जाती है तो विभागीय अधिकारी चुप्पी साध लेते है, जबकि इस संग्रहालय के प्रबंधक कहते हैं कि बार-बार प्रचार प्रसार संबंधी पत्र भेजे जाने के वाबजूद इस ओर किसी का ध्यान नहीं है. राज्य के इस एकमात्र जनजातीय संग्रहालय में झारखंड की संस्कृतियों की झलक, विभिन्न जनजातियों के साथ मूर्तियां हैं. 32 जनजातियों की कलाकृतियां हैं. उनके रहन-सहन उनकी कार्यशैली को विस्तृत रूप से बताया गया है. इसकी स्थापना 21 अक्टूबर 1953 में हुई. फिर झारखंड बनने के बाद इसका जीर्णोद्धार किया गया.जनजातीय संग्रहालय में खासकर जनजातियों की मूर्ति जैसे असुर जनजाति कच्चा लोहा गलाते हुए, बिरहोर जनजाति जाल बनाते हुए, सौरिया पहाड़िया कुर्दा खेती करते हुए, जनजातीय पंकि नाच, सहकारिता जैसे नमूने हैं, जोकि क्षेत्र की जनजाति जीवन को प्रदर्शित करते हैं.

Intro:प्रचार प्रसार की कमी के कारण राजधानी रांची स्थित झारखंड का एकमात्र जनजातीय संग्रहालय में पर्यटक नहीं पहुंच पाते हैं. जबकि इस संग्रहालय में झारखंड के धरोहरों से जुड़ी तमाम चीजें मौजूद है ,जनजातियों के रहन सहन उनके खान-पान से जुड़ी जानकारियां भी यहां आपको मिल जाएंगे लेकिन विभागीय उदासीनता का मार यह संग्रहालय इन दिनों झेलने को विवश है.


Body:क्या आपको पता है झारखंड में कितने जनजाती है ,कितने तरह के वाद्य यंत्र है किन किन आभूषणों का उपयोग आदिवासी और जनजाति करते हैं ,कृषि के पुराने औजार क्या होते हैं ,अगर आपको जानकारी नहीं है तो आइए राजधानी रांची स्थित मोराबादी के झारखंड के एकमात्र जनजातीय संग्रहालय में .यहां आपको झारखंड के जनजातियों के प्रारंभिक प्रतिदिन और विशेष अवसर पर प्रयोग किए जाने वाले आभूषण ,पोशाक, वाद्य यंत्र ,कृषि के औजार ,आखेट में प्रयोग किए जाने वाले तीर धनुष मछली चिड़िया और बंदर पकड़ने का जाल जैसे कई चीजें उपलब्ध है .आदिम जनजाति और झारखंड के जनजातियों के बारे में तमाम जानकारियां इस संग्रहालय में उपलब्ध है .इसके अलावे जनजातियों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के जड़ी -बूटी के नमूना भी इस संग्रहालय में उपलब्ध है. इसके अतिरिक्त जनजातीय जीवन और संस्कृति से संबंधित उनके तमाम कलाकृतियां आपको मिल जाएंगे .लेकिन विडंबना तो यह है कि प्रचार प्रसार की कमी के कारण इन दिनों ये महत्वपूर्ण जानकारियों से भरा संग्रहालय वीरान पड़ा है ,यहां इक्के दुक्के लोग ही पहुंचते हैं .जबकि यहां जानकारियों की असीम खजाना मौजूद है. मामले पर विभागीय अधिकारी चुप्पी साध लेते है जबकि ,इस संग्रहालय के प्रबंधक कहते है बार बार प्रचार प्रसार संबंधी पत्र भेजे जाने के वाबजूद इस ओर किसी का ध्यान नही है। बाइट-हरिओम पांडेय। संग्रहालय प्रबंधक। जबकि संग्रालय पंहुचे कुछ पर्यटकों ने भी प्रचार प्रसार बढ़ाने की बात कह रहे है। बाइट-विभा देवी,रजनी सरकार,पर्यटक।


Conclusion:राज्य के इस एकमात्र जनजातीय संग्रहालय में झारखंड की संस्कृतियों की झलकी ,विभिन्न जनजातियों के साथ मूर्तियां हैं .32 जनजातियों की कलाकृतियां . उनके रहन-सहन उनके कार्य शैली को विस्तृत रूप से बताया गया है इसकी स्थापना 21 अक्टूबर 1953 में हुई थी फिर झारखंड बनने के बाद इसका जीर्णोद्धार किया गया. जनजातीय संग्रहालय में खासकर जनजातियों की मूर्ति जैसे असुर जनजाति कच्चा लोहा गलाते हुए, बिरहोर जनजाति जाल बनाते हुए ,सौरिया पहाड़िया कुर्दा खेती करते हुए, जनजातीय पंकि नाच ,सहकारिता जैसे नमूने है जोकि क्षेत्र के जनजाति जीवन को प्रदर्शित करते हैं .जनजातियों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के जड़ी बूटी का नमूना भी संग्रहालय में उपलब्ध है इसके अतिरिक्त जनजातीय जीवन और संस्कृति से संबंधित उनके छायाचित्र उपलब्ध है इस जनजातीय संग्रहालय में खासकर राज्य के 32 जनजातीय से जुड़ी जानकारियां आपको उपलब्ध हो जाएगी
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