रांची: राजधानी के प्रसिद्ध और ऐतिहासिक पहाड़ी मंदिर खतरे में आ गया है. पहाड़ी मंदिर में देश के सबसे ऊंचे तिरंगे के लिए लगा पोल इस खतरे की सबसे बड़ी वजह बनी हुई है, तो मिट्टी कटाव इसमें आग में घी डालने का काम कर रहा है. पर्यावरणविद का मानना है कि बड़े पैमाने पर हुए कंस्ट्रक्शन और मिट्टी कटाव के कारण पहाड़ी मंदिर का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है.
मानसून से पहले ही पहाड़ी मंदिर पर खतरा मंडराने लगा है. घनी आबादी के बीच ऐतिहासिक पहाड़ी मंदिर में भू-स्खलन होने की संभावना बन रही है. जो बड़े खतरे की तरफ इशारा कर रहा है. क्योंकि अगर बड़े पैमाने पर यह होता है तो आसपास में रहने वाले लोगों को भविष्य में इसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है. पर्यावरणविद नीतीश प्रियदर्शी का मानना है कि पहाड़ी मंदिर परिसर में बड़े कंस्ट्रक्शन का काम और मिट्टी कटाव के कारण खतरा बढ़ता जा रहा है.
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नीतीश प्रियदर्शी का मानना है कि पहाड़ी मंदिर ऐसा प्राकृतिक पहाड़ है जो सिर्फ मैसूर, कोणार्क और कोयंबटूर में पाए जाते हैं. इन पहाड़ों को 'खोडाला-इट' श्रेणी में गिना जाता है. इन पहाड़ों की मिट्टी में फर्टिलिटी खत्म होती जाती है. यही वजह है कि पहाड़ी मंदिर के पत्थरों की प्रकृति भुरभुरी होती जा रही है और इसके संरक्षण के लिए बड़े कंस्ट्रक्शन और मिट्टी कटाव को रोकना सबसे ज्यादा जरूरी है.
पहाड़ी मंदिर को वर्षों से जानने वाले भी मानते हैं कि बड़े कंस्ट्रक्शन और मिट्टी कटाव के कारण मंदिर परिसर का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है. पहाड़ी मंदिर के पुजारी मनोज मिश्र का कहना है कि जिला प्रशासन को पहाड़ी मंदिर के संरक्षण के लिए लगातार अवगत कराया गया है. लेकिन जिला प्रशासन द्वारा गंभीर रूप से इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. वहीं, श्रद्धालु भी मानते हैं कि फ्लैग पोल और मिट्टी कटाव पहाड़ी मंदिर को खतरे की ओर ले जा रहा है. खासकर पहाड़ी मंदिर के बाउंड्री वाल के अंदर झोपड़ी बना कर रहने वाले लोगों द्वारा मिट्टी उठाव किया जाता है जो पहाड़ी की नींव को कमजोर कर रहा है, इसे रोकना सबसे ज्यादा जरूरी है.