रांची: प्रकृति पर्व सरहुल आदिवासियों का प्रमुख त्यौहार है. इस बार सरहुल 8 अप्रैल को है. जिसे लेकर राजधानी के कई इलाकों में सरना स्थलों की साफ-सफाई के साथ रंग-रोगन और सरना झंडा लगाने का काम किया जा रहा है.
प्रकृति के महापर्व सरहुल की शुरुआत चैत माह के आगमन से ही हो जाती है. इस समय साल के वृक्षों में फूल लगने लगते हैं. जिसे आदिवासी प्रतीकात्मक रूप से नया साल का सूचक मानते हैं. सरहुल पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. यह झारखंड के अलावे अन्य आदिवासी क्षेत्रों में भी मनाया जाता है.
राजधानी में सरहुल के दौरान आदिवासियों की परम्परा, प्रकृति प्रेम देखने को मिलती है. प्रकृति से प्रति जुड़ाव की वजह से ही इन्हें प्रकृति का पूजक कहा जाता है. 3 दिनों तक मनाए जाने वाले इस पर्व की अपनी खासियत है.
इस पर्व में गांव के पाहन द्वारा विशेष अनुष्ठान किया जाता है. जिसमें ग्राम देवता की पूजा की जाती है और कामना की जाती है कि आने वाला साल अच्छा हो. पाहन द्वारा सरना स्थल में मिट्टी के घड़ों में पानी रखा जाता है. पानी के स्तर से आने वाले समय में बारिश का अनुमान लगाया जाता है. पूजा के बाद दूसरे दिन गांव के पाहन घर घर जाकर फूल खोसी करते हैं ताकि वो घर और समाज संपन्न रहे.