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झारखंड का भव्य उत्सव है प्रकृति पर्व सरहुल, जाने क्यों है खास ? - Sarhul Puja

झारखंड का महापर्व सरहुल इस बार 8 अप्रैल को है. इसके लिए प्रदेश के सभी सरना स्थलों पर साफ सफाई की जा रही है.

देखें स्पेशल स्टोरी.
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Published : Apr 7, 2019, 5:56 PM IST

रांची: प्रकृति पर्व सरहुल आदिवासियों का प्रमुख त्यौहार है. इस बार सरहुल 8 अप्रैल को है. जिसे लेकर राजधानी के कई इलाकों में सरना स्थलों की साफ-सफाई के साथ रंग-रोगन और सरना झंडा लगाने का काम किया जा रहा है.

देखें स्पेशल स्टोरी.

प्रकृति के महापर्व सरहुल की शुरुआत चैत माह के आगमन से ही हो जाती है. इस समय साल के वृक्षों में फूल लगने लगते हैं. जिसे आदिवासी प्रतीकात्मक रूप से नया साल का सूचक मानते हैं. सरहुल पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. यह झारखंड के अलावे अन्य आदिवासी क्षेत्रों में भी मनाया जाता है.

राजधानी में सरहुल के दौरान आदिवासियों की परम्परा, प्रकृति प्रेम देखने को मिलती है. प्रकृति से प्रति जुड़ाव की वजह से ही इन्हें प्रकृति का पूजक कहा जाता है. 3 दिनों तक मनाए जाने वाले इस पर्व की अपनी खासियत है.

इस पर्व में गांव के पाहन द्वारा विशेष अनुष्ठान किया जाता है. जिसमें ग्राम देवता की पूजा की जाती है और कामना की जाती है कि आने वाला साल अच्छा हो. पाहन द्वारा सरना स्थल में मिट्टी के घड़ों में पानी रखा जाता है. पानी के स्तर से आने वाले समय में बारिश का अनुमान लगाया जाता है. पूजा के बाद दूसरे दिन गांव के पाहन घर घर जाकर फूल खोसी करते हैं ताकि वो घर और समाज संपन्न रहे.

रांची: प्रकृति पर्व सरहुल आदिवासियों का प्रमुख त्यौहार है. इस बार सरहुल 8 अप्रैल को है. जिसे लेकर राजधानी के कई इलाकों में सरना स्थलों की साफ-सफाई के साथ रंग-रोगन और सरना झंडा लगाने का काम किया जा रहा है.

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प्रकृति के महापर्व सरहुल की शुरुआत चैत माह के आगमन से ही हो जाती है. इस समय साल के वृक्षों में फूल लगने लगते हैं. जिसे आदिवासी प्रतीकात्मक रूप से नया साल का सूचक मानते हैं. सरहुल पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. यह झारखंड के अलावे अन्य आदिवासी क्षेत्रों में भी मनाया जाता है.

राजधानी में सरहुल के दौरान आदिवासियों की परम्परा, प्रकृति प्रेम देखने को मिलती है. प्रकृति से प्रति जुड़ाव की वजह से ही इन्हें प्रकृति का पूजक कहा जाता है. 3 दिनों तक मनाए जाने वाले इस पर्व की अपनी खासियत है.

इस पर्व में गांव के पाहन द्वारा विशेष अनुष्ठान किया जाता है. जिसमें ग्राम देवता की पूजा की जाती है और कामना की जाती है कि आने वाला साल अच्छा हो. पाहन द्वारा सरना स्थल में मिट्टी के घड़ों में पानी रखा जाता है. पानी के स्तर से आने वाले समय में बारिश का अनुमान लगाया जाता है. पूजा के बाद दूसरे दिन गांव के पाहन घर घर जाकर फूल खोसी करते हैं ताकि वो घर और समाज संपन्न रहे.

Intro:रांची
बाइट---जगलाल पहान पुजारी
डे प्लान....


प्राकृतिक का महापर्व सरहुल की शुरुआत चैत माह के आगमन से ही होती है इस समय साल के वृक्षों में फुल लग जाता है जिसे आदिवासियों ने प्रतीकात्मक रूप से नया साल सूचक मानते हुए और सरहुल पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं सरहुल आदिवासियों की प्रमुख त्यौहार में से एक है इस बार सरहुल पूजा 8 अप्रैल को है जिसको लेकर राजधानी रांची के विभिन्न टोला मोहल्ला के शहनाई स्थलों में साफ-सफाई रंग रोगन और सरना झंडा लगाने का काम किया जा रहा है


Body:राजधानी रांची में बसने वाले आदिवासियों की सरलता और प्रकृति की अनोखी प्रेम की झलक इनके परंपराओं में देखने को मिलती है जो किसी और सभ्यता संस्कृति में देखने को नहीं मिलती यही कारण है कि आदिवासियों को प्रकृति का पूजक कहा जाता है 3 दिनों का इस पर्व की अपनी अलग कई विशेषताएं हैं इस पर्व में गांव के पहान द्वारा विशेष अनुष्ठान किया जाता है जिसमें ग्राम देवता की पूजा की जाती है और कामना किया जाता है कि आने वाले साल अच्छा हो पहान द्वारा सरना स्थल में मिट्टी के हड्डियों में पानी रखा जाता है पानी का स्तर से ही आने वाले साल में बारिश का अनुमान लगाया जाता है पूजा समाप्त होने के दूसरे दिन गांव के पहाड़ द्वारा समाज के घर घर जाकर फुल खोशी किया जाता है ताकि उस घर और समाज में खुशी संपन्न रहें


Conclusion:झारखंड में सरहुल महा पर बहुत ही बड़े स्तर पर मनाया जाता है जिसमें राज्य के विभिन्न हिस्सों में बसने वाले आदिवासी समाज के लोग बड़े ही उत्साह के साथ भाग लेते हैं और शोभायात्रा में विभिन्न टोला मोहल्ला से जुलूस निकाली जाती है जिसमें अपनी सभ्यता और संस्कृति को झांकियों के माध्यम से दर्शाया जाता है लेकिन इस साल के शोभायात्रा में अपनी सभ्यता संस्कृति के अलावा आदिवासियों के वर्तमान जन्म मुद्दा झांकियों के माध्यम से देखने को मिलेगी साथ ही विशाल एकजुटता के माध्यम से सरकार को अपनी मांग से अवगत कराया जाएगा। आदिकाल से मनुष्य और प्रकृति के बीच अनोखा जुड़ाव रहा है जिसका झलक सरहुल महापर्व में देखने को मिलता है आदिवासी समुदाय के लोग इस पर्व को इतना महत्वपूर्ण मानते हैं कि अपने सारे शुभ कार्य की शुरुआत इसी दिन से करते हैं
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