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इस गांव में तैयार होता है भोलेनाथ का मोर मुकुट, जानिए क्या है मान्यताएं

बाबा नगरी की अपनी एक अपनी अलग ही परंपरा है. शिवरात्रि के दिन भगवान शिव के लिए मोर मुकुट तैयार किया जाता है. जिसकी अपनी कई परंपरा है.

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Published : Mar 4, 2019, 1:42 PM IST

इस गांव में तैयार होता है भोलेनाथ का मोर मुकुट

देवघर: एक तरफ जहां शिवरात्रि की धूम है वहीं, दूसरी तरफ शिव बारात को लेकर जबरदस्त उत्साह है. देवघर को जिस तरह से परंपराओं का शहर कहा जाता है. यहां के रीति-रिवाज और भी अलौकिक होते हैं.

इस गांव में तैयार होता है भोलेनाथ का मोर मुकुट

देवघर के बाबा मंदिर की परंपरा और जगहों से बेहद अलग है. शिवरात्रि के दिन बाबा भोले पर मोर मुकुट चढ़ाने की एक अनोखी परंपरा निभाई जाती ही. यह रिवाज प्राचीनकाल से चली आ रही है. माना जाता है कि कन्याओं की शादी की मन्नत पूरी करने के लिए बाबा पर मोर मुकुट चढ़ाया जाता है.

वहीं, जब मनोकामना पूरी हो जाती है, या नई-नई शादी होती है तो विवाहित जोड़े भगवान शिव को मुकुट चढ़ाते हैं. ऐसे में शिवरात्रि के दिन मोर मुकुट की डिमांड काफी बढ़ जाती है. बताया जाता है कि देवघर से 7 किलोमीटर दूर बसा रोहिणी गांव मोर मुकुट के कारण काफी प्रसिद्ध है. रोहिणी घटवाल के द्वारा भगवान शिव पर मुकुट चढ़ाया जाता है. जिसे यहां के स्थानीय बनाते हैं.

रोहिणी को देवघर शहर का सबसे पुराना गांव माना जाता है और आज भी यहां के कई परिवार इस परंपरा को निभाते चले आए हैं. यहां कागज और बांस के सहारे मोर मुकुट बनाए जाते हैं और सबसे बड़ा मुकुट बाबा भोले के लिए होता है. वहीं, छोटे-छोटे मुखोटे आम लोगों के लिए होता है. जिसे भक्त भोले बाबा पर चढ़ाते हैं. वहीं, बाबा मंदिर में मोर मुकुट चढ़ाने कि परंपरा आज भी रोहिणी ग्राम में जिंदा है.

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देवघर: एक तरफ जहां शिवरात्रि की धूम है वहीं, दूसरी तरफ शिव बारात को लेकर जबरदस्त उत्साह है. देवघर को जिस तरह से परंपराओं का शहर कहा जाता है. यहां के रीति-रिवाज और भी अलौकिक होते हैं.

इस गांव में तैयार होता है भोलेनाथ का मोर मुकुट

देवघर के बाबा मंदिर की परंपरा और जगहों से बेहद अलग है. शिवरात्रि के दिन बाबा भोले पर मोर मुकुट चढ़ाने की एक अनोखी परंपरा निभाई जाती ही. यह रिवाज प्राचीनकाल से चली आ रही है. माना जाता है कि कन्याओं की शादी की मन्नत पूरी करने के लिए बाबा पर मोर मुकुट चढ़ाया जाता है.

वहीं, जब मनोकामना पूरी हो जाती है, या नई-नई शादी होती है तो विवाहित जोड़े भगवान शिव को मुकुट चढ़ाते हैं. ऐसे में शिवरात्रि के दिन मोर मुकुट की डिमांड काफी बढ़ जाती है. बताया जाता है कि देवघर से 7 किलोमीटर दूर बसा रोहिणी गांव मोर मुकुट के कारण काफी प्रसिद्ध है. रोहिणी घटवाल के द्वारा भगवान शिव पर मुकुट चढ़ाया जाता है. जिसे यहां के स्थानीय बनाते हैं.

रोहिणी को देवघर शहर का सबसे पुराना गांव माना जाता है और आज भी यहां के कई परिवार इस परंपरा को निभाते चले आए हैं. यहां कागज और बांस के सहारे मोर मुकुट बनाए जाते हैं और सबसे बड़ा मुकुट बाबा भोले के लिए होता है. वहीं, छोटे-छोटे मुखोटे आम लोगों के लिए होता है. जिसे भक्त भोले बाबा पर चढ़ाते हैं. वहीं, बाबा मंदिर में मोर मुकुट चढ़ाने कि परंपरा आज भी रोहिणी ग्राम में जिंदा है.

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Intro:देवघर बाबा भोले का मोर मुकुट रोहिणी में होता है तैयार, रोहिणी स्टेट द्वारा भेजा जाता है बाबा मंदिर,फिर होती है बाबा भोले का विवाह।


Body:एंकर देवघर में एक तरफ जहां शिवरात्रि की धूम है वहीं दूसरी तरफ शिव बारात को लेकर जबरदस्त उत्साह है देवघर को जिस तरह से परंपराओं का शहर कहा जाता है यहां के रीति-रिवाज भी और मंदिरों और दूसरे शहरों से भिन्न है देवघर के बाबा मंदिर में एक अनूठी परंपरा निभाई जाती है शिवरात्रि के दिन बाबा भोले पर मोर मुकुट चढ़ाया जाता है जिसे आम बोलचाल की भाषा में शादी में प्रयोग आने वाले सेहरा को कहा जाता है बाबा पर मोर मुकुट चढ़ाने की बहुत प्राचीन परंपरा रही है कन्याओं की शादी की मनोतिया पूरी करने के लिए बाबा पर मोर मुकुट चढ़ाया जाता है वही जब मनोकामना पूरी हो जाती है। या नई-नई शादी होती है तो बाबा को मुकुट चढ़ाने की परंपरा रही है ऐसे में शिवरात्रि के दिन मोर मुकुट की डिमांड काफी रहती है देवघर से 7 किलोमीटर दूर बसा रोहिणी ग्राम इस मोर मुकुट के कारण ही प्रसिद्ध है। रोहिणी घटवाल के द्वारा बाबा भोले पर मुकुट चढ़ाया जाता है। जिसे यहां के स्थानीय बनाते हैं रोहिणी को देवघर शहर का सबसे पुराना गांव माना जाता है और आज भी यहां पर कई परिवार इस परंपरा को निभाते चले आए हैं आज भी यहां कागज और बांस के सहारे मोर मुकुट बनाए जाते हैं सबसे बड़ा मुकुट बाबा भोले के लिए होता है और छोटे-छोटे मुखोटे आम लोगों के लिए होता है जिसे खरीद कर भक्त बाबा भोले पर चढ़ाते हैं मंदिर में बाबा के सिर पर मुकुट चढ़ाने की भी परंपरा रही है बाबा मंदिर की सबसे पुरानी परंपरा है मोर मुकुट चढ़ाने कि आज भी रोहिणी ग्राम में जिंदा है।

वाइट स्थानीय 

वाइट पुरोहित 

वाइट मोर मुकुट बनाने वाले शिल्पी




Conclusion:बताते चले कि काफी पुरानी परंपरा है कि बाबा मंदिर में रोहिणी स्टेट द्वारा डाला और मोर मुकुट भेजा जाता है और फिर बाबा मंदिर में इसी सेहरा को बाबा पर चढ़ाया जाता फिर बाबा भोले ओर माता पार्वती का विवाह संपन्न होता है।

बाइट अजित झा स्थानीय पुरोहित ओर जानकर।
बाइट मालाकार।
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